AIN NEWS 1 नई दिल्ली: ज़मीन-जायदाद खरीदना या घर खरीदना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पैसे का इस्तेमाल काफी ज़्यादा होता ही है, और प्रत्येक खरीदार को ही बहुत ज़्यादा रकम इसपर खर्च करनी पड़ती है. लेकिन जब भी आप कोई मकान, यानी घर के मालिक बन जाते हैं, तब भी आपके खर्चे रुकते नहीं, क्योंकि घर के रखरखाव पर भी लगातार आपका धन खर्च होता ही रहता है, भले ही वह उसकी रंगाई-पुताई पर हो, कभी-कभार होने वाली मरम्मत पर हो, एक्स्ट्रा बाल्कनी या कमरा बनवने पर हो, या सिर्फ छत पर एक और झूला लगवाने पर हो. खैर यह सब तो आम बात ही है, लेकिन इन सभी के अलावा भी एक और खर्चा है, जिसे घर का मालिक नज़रअंदाज़ कभी नहीं कर ही नहीं सकता, और वह है – स्थानीय नगर निगम या प्राधिकरण को दिया जाने वाला उसका संपत्ति कर (Property Tax या प्रॉपर्टी टैक्स) या गृहकर (House Tax या हाउस टैक्स).
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जाने क्या है यह हाउस टैक्स…?
पार्क, सीवर सिस्टम, सड़कें, स्ट्रीट लाइट जैसी बहुत-सी सुविधाओं और सामान्य ज़रूरतों को आपकों उपलब्ध कराते रहने के लिए स्थानीय नगर निकाय आपसे कुछ प्रॉपर्टी टैक्स वसूल किया करते हैं. यह टैक्स संपत्ति के मालिक से ही वसूला जाता है. भारत में तो, ऐसे खाली पड़े हुए प्लॉटों से कोई कर या टैक्स नहीं वसूला जाता, जिनसे सटा हुआ कोई भी निर्माण नहीं हुआ हो. चूंकि यह टैक्स केवल स्थानीय निकाय ही वसूल किया करते हैं, इसलिए इनकी दरें राज्यों, शहरों और इलाकों (Zones) पर ही निर्भर करती हैं.
जान ले इसका कैलकुलेशन आख़िर कैसे किया जाता है…?
इस टैक्स की दरों की ही तरह प्रॉपर्टी टैक्स का भी कैलकुलेशन विभिन्न नगर निकायों में अलग-अलग तरीको से होता है. आमतौर पर तीन व्यवस्थाएं इसमें ज्यादा प्रचलित हैं, जिनके तहत यह प्रॉपर्टी टैक्स वसूल किया जाता है.
1.वार्षिक किराया मूल्य प्रणाली (Annual Rental Value System)
इस व्यवस्था के तहत, संपत्ति कर का निर्धारण प्रॉपर्टी के वार्षिक किराया मूल्य के आधार पर ही किया जाता है. वैसे, इसका प्रॉपर्टी पर वास्तव में हासिल हुए किराये से कोई भी लेना-देना नहीं होता. इसके बदले, किसी भी संपत्ति का निश्चित किराया मूल्य नगर निकाय ही अपने हिसाब से तय करता है, जो संपत्ति की लोकेशन, आकार, हालत पर पूरी तरह से निर्भर करता है.
2.पूंजी मूल्य प्रणाली (Capital Value System)
इसमें, नगर निकाय प्रॉपर्टी के बाज़ार के मूल्य के हिसाब से उस पर लगाए जाने वाले टैक्स का पूरी तरह से निर्धारण करता है. इस व्यवस्था के अंतर्गत भी आपकी संपत्ति का मूल्य सरकार तय करती है, और प्रॉपर्टी की लोकेशन के हिसाब से इसमें वार्षिक रूप से संशोधन भी किया जाता है.
3.इकाई मूल्य प्रणाली (Unit Value System)
इस व्यवस्था के अंतर्गत भी प्रॉपर्टी पर निर्मित क्षेत्र, जिसे बिल्ट-अप एरिया या कारपेट एरिया भी कहा जाता है, के प्रति इकाई मूल्य पर ही प्रॉपर्टी टैक्स लगाया जाता है. संपत्ति के मूल्य, उसके उपयोग और लोकेशन के आधार पर ही प्रॉपर्टी से अपेक्षित रिटर्न के आधार पर ही यह प्रॉपर्टी टैक्स तय किया जाता है.
जान ले आख़िर कहां फाइल करें अपना प्रॉपर्टी टैक्स…?
संपत्ति कर, या प्रॉपर्टी टैक्स जमा करवाने के लिए किसी भी मकान मालिक को वहा के स्थानीय नगर निकाय कार्यालय या नगर निकाय द्वारा नामित बैंकों में ही जाना होगा. प्रॉपर्टी टैक्स जमा करवाने वाले शख्स को प्रॉपर्टी टैक्स नंबर तथा अपना खाता नंबर बताना होगा, ताकि उस प्रॉपर्टी की सही पहचान की जा सके, जिस पर आपकों टैक्स जमा करवाना है. मकान मालिक अपना यह प्रॉपर्टी टैक्स ऑनलाइन भी आसानी से जमा करवा सकते हैं, जिसके लिए संबंधित राज्य सरकार या स्थानीय नगर निकाय की वेबसाइट पर आपकों जाना होगा.