AIN NEWS 1: इस आज के आधुनिक भारत के इन सभी शिल्पकारों में से एक बाबासाहब भीमराव आंबेडकर भी देश के एक बड़े महान राजनेताओं में से एक हैं. बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार हुए भीमराव ने समाज को छूआछूत और अस्पृश्यता से भी छुटकारा दिलाने में ही अपना पूरा जीवन लगा दिया. उन्होंने पाया कि हमारे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को नीचा और पिछड़ा बताकर विकास की धार से ही अलग रखा जा रहा है. उन्होंने कानून के तहत, हर जाति के लोगों को पढ़ाई और नौकरी में भी आरक्षण दिलाने का एक बड़ा काम किया. और आज उनकी जयंती के मौके पर हम आपको बताते हैं की आख़िर उनके बचपन का वो किस्सा केसा था, जिसका उनके जीवन पर काफ़ी गहरा असर पड़ा. क्रिस्तोफ़ जाफ़लो द्वारा लिखी गई उनकी जीवनी के अनुसार ही, बचपन में एक बार भीमराव अपने भाई और बहन के साथ भारतीय रेल में सवार होकर अपने पिता से मिलने के लिए रवाना हुए. उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में एक सिपाही थे और वह एक छावनी में ही काम करते थे. जब वह ट्रेन से उतरे तो स्टेशन मास्टर ने उन्हें अपने पास बुलाकर उनसे कुछ पूछताछ की. और जैसे ही स्टेशन मास्टर को उनकी जाति का पता चला, वह उनसे 5 कदम पीछे हट गया.स्टेशन से आगे जाने के लिए उन्होंने तांगा लेने की कोशिश की, मगर कोई तांगेवाला उनकी जाति के , चलते ही उन्हें ले जाने को वहा तैयार नहीं होता था. एक तांगावाला तैयार हुआ मगर उसने उनसे एक शर्त रखी कि तांगा बच्चों को खुद ही हांकना होगा. तो भीमराव खुद ही तांगे को हांककर ले गए. बीच रस्ते तांगेवाला तो खुद ही उतरकर एक ढाबे पर जाकर भोजन करने लगा, मगर इस बच्चों को ढाबे में अंदर नहीं घुसने दिया गया. उन्हें पास ही बह रही एक रेतीली धारा से ही अपनी प्यास बुझानी पड़ी.भीमराव के दिलो-ज़ेहन में अपने हालात का यह भीषण एहसास बेहद ज्यादा तीखा घाव कर गया. वह समझ गए कि छूआछूत की दीवार को गिराने के लिए शिक्षा की चोट करनी कितनी ज्यादा जरूरी है. उन्होंने बम्बई से मेट्रिकुलेशन की और फिर वजीफ़ा पाकर BA भी किया. छात्रवृत्ति के दम पर ही वह अमेरिका और फिर लंदन भी पढ़ने गए. उनकी अकादमिक उपलब्धियों के चलते ही उन्होंने अंग्रेजो का ध्यान अपनी ओर खींचा और आगे चलकर देश की राजनीति को उन्होने बदलकर रख दिया.