Thursday, November 14, 2024

हिंदू-मुस्लिम विवाद में खाली ना रह जाए हिंदुओं और मुस्लिमों की जेब! त्योहारों का मजा फीका कर सकता है सांप्रदायिक तनाव

- Advertisement -
Ads
- Advertisement -
Ads

AIN NEWS 1: त्योहारों का मौका और हिंदू-मुस्लिम के विवाद से हो रहे नुकसान का अंदाजा कितना भयानक हो सकता है इन आंकड़ों से समझिए।
1. भारत में सालभर में होने वाली कुल बिक्री का 33% तीज (जुलाई-अगस्त में आने वाली हरियाली तीज) से लेकर दिवाली के बीच करीब 3 महीनों में होता है (मासिक आधार पर देखा जाए तो 25% होनी चाहिए)
2. खास बात है कि बिक्री के दूसरे सबसे बड़े मौके यानी ‘द ग्रेट इंडियन वेडिंग बाजार’ का एक भी शुभ मुहूर्त इस दौरान नहीं पड़ता है।
3. इस बार व्यापारी संगठनों नें दिवाली के मौके पर (नवरात्र से दिवाली तक) 1.25 लाख करोड़ की बिक्री का अनुमान जताया है। इसमें जुलाई से नवरात्र के पहले तक का आंकड़ा शामिल नहीं है।
4. नवरात्र से दशहरा तक की ई-कॉमर्स सेल को देखें तो 40 हज़ार करोड़ की बिक्री हुई है जो पिछले साल से 27% ज्यादा है। हर घंटे 56 हज़ार स्मार्टफोन बिके हैं। फैशन प्रॉडक्ट्स की बिक्री 48% ज्यादा हुई है। छोटे शहरों में सबसे ज्यादा ऑनलाइन खरीदारी हुई है।
5. यानी दिवाली तक 1.25 लाख करोड़ का अनुमान कहीं पीछे छूट सकता है क्योंकि अभी करवा चौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस, भाई दूज समेत कई खरीदारी के मौके आने हैं और ऑनलाइन सेल भी वापस आएंगी।
6. अब समझिए ये अनुमान केवल संगठित बाजारों में होने वाली बिक्री का है। हाट-बाजार, सड़क किनारे नवरात्र में पूजा का सामान बेचने वाले ठेले, कुम्हार के दिए, करवाचौथ पर मिट्टी के सागर, दिवाली की साज-सज्जा का सामान इसमें शामिल नहीं है वो सब असंगठित बाजार है।

7. ऐसा ही असंगठित बाजार दुर्गा पूजों के पंडालों के इर्द गिर्द और दशहरा मेलों में थे। इनमें झूले वाले, छोटे दुकानदार वगैरह शामिल हैं।
8. UBS की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में डिमांड को बढ़ाने का काम केवल 20% आबादी कर रही है क्योंकि बाकी लोग अभी तक कोरोना की जद्दोजहद से उबरने में लगे हैं।
9. अगर ये त्योहार अच्छे से निकल जाएं क्योंकि यहां सबसे ज्यादा पैसा असंगठित क्षेत्र के लोगों के हाथों में ही पहुंचेगा। यही वो मौका है जब सबसे ज्यादा अस्थाई जॉब जैसे डिलीवरी बॉय वगैरह की वैकेंसी निकलती हैं।
10. इन मेलों, दुकानदारों में हर धर्म जाति के लोग कमाते हैं और सभी जगह वो शामिल रहते हैं। लोग भी बिना भेदभाव के सबसे खरीदारी करते हैं।
11. लेकिन गरबा पर अगर कुछ उपद्रवी पत्थर फेंकते हैं या मस्जिद में उपद्रवी गलत हरकत करते हैं तो ये जरुर कुछ समय के लिए उन आयोजनों और उस खर्च पर रोक लगा सकता है। कम से कम उस इलाके में तो इससे असर पड़ेगा ही पड़ेगा।
12. मेले में मौत का कुआं देखा इस बार बचपन के बाद तो वहां पर काम करने वाले अलग अलग धर्मों के थे। वो मिलकर कमा सकते हैं और काम कर सकते हैं तो फिर क्यों अर्थव्यवस्था से ज्यादा स्वयं की आमदनी पर पत्थर बरसा रहे हैं लोग?
13. इस देश में अनुमान है कि नौकरी करने वाले लोगों में से 95% असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। ये केवल नौकरी करने वालों का आंकड़ा है, दुकानदार, व्यापारी, किसानों का नहीं है।
14. अगर असंगठित क्षेत्र को कमाने के लिए इस तरह का मौका मिल रहा है तो ये डिमांड बढ़ाएगा, कंपनियों की बिक्री बढ़ेगी, नौकरियों के नए मौके मिलेंगे और सैलरी में बंपर इंक्रीमेंट होगा।
15. अगर अभी 20% इकॉनमी को चला रहे हैं (शहरों में 66% और ग्रामीण इलाकों में 59% बिक्री इनकी वजह से हो रही है) तो फिर बाकी 80% भी इन त्योहारों में समर्थ हो सकते हैं और देश को आगे बढ़ाने में सब मिलकर योगदान दे सकते हैं।
लेकिन ये उपद्रवी चाहे किसी भी धर्म के हों इनको रोकना जरुरी है। इनको बढ़ावा देने का काम चाहे जो करे, रोकने का काम हम सबकी जिम्मेदारी है। अगर मेले में हर धर्म जाति के लोग मिलकर काम करके कमा रहे हैं तो फिर क्यों नहीं असल जिंदगी में भी इसी मेल जोल से रहा जा सकता है? इसके साथ ये भी जरुरी है कि मेलों में जाइए, सामर्थ्य के मुताबिक खर्च कीजिए और दूसरों को भी समर्थ बनाने में योगदान निभाइए।

- Advertisement -
Ads
AIN NEWS 1
AIN NEWS 1https://ainnews1.com
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
Ads

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Advertisement
Polls
Trending
Rashifal
Live Cricket Score
Weather Forecast
Latest news
Related news
- Advertisement -
Ads