चमगादड़ों की आबादी में कमी
कीटनाशकों का छिड़काव बना वजह
खेती के लिए बढ़ी मुश्किल
AIN NEWS 1: आने वाले महीनों में शाम के समय आसमान में सिर्फ कुछ ही चमगादड़ उड़ते दिखेंगे। वर्षभर में यही वो वक्त होता है जब चमगादड़ों की कुछ प्रजातियां आंखों के सामने से गायब हो जाती हैं। जाड़ों के इन महीनों में वो चट्टानों की संकरी दरारों या गुफाओं में आराम करते हैं। अच्छी बात ये है कि चमगादड़ों का इस तरह नदारद होना कुछ वक्त के लिए होता है। चमगादड़ स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। वो पर्यावरण में पोषक तत्वों के प्रसार और पौधों के परागण में सहायता करते हैं। चमगादड़ कीड़ों को भी खाते हैं, जिससे खेती में कीटनाशकों की जरुरत कम हो जाती है। चमगादड़ हमारे पारिस्थितिक तंत्र को बहुत ज्यादा फायदा पहुंचाते हैं। वो अंधेरे में अपनी गतिविधियां करते हैं, इसलिए इंसान उनकी ओर से मिलने वाली सहायता का अहसास नहीं कर पाते। मौसमी तौर पर चमगादड़ों के नदारद होने से ज्यादा चिंता की बात ये है कि दशकों से उत्तरी अमेरिका में चमगादड़ों की संख्या में गिरावट आ रही है। जंगलों के कटने से उनके आश्रय स्थल घट रहे हैं। शहरीकरण और खेती की भूमि के विस्तार से चमगादड़ों के लिए उपयुक्त स्थान की कमी हो रही है। इसके साथ ही, फसलों पर कीटनाशकों के छिड़काव की वजह से काफी चमगादड़ों की मौत भी हो जाती है।
चमगादड़ों की संख्या में गिरावट
चमगादड़ों की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि फंगस और ‘स्यूडोगाइमनोस्कस’ की वजह से ‘व्हाइट नोज सिंड्रोम’ फैलता है। इस घातक फंगस के चलते उत्तर अमेरिका में 60 लाख से ज्यादा चमगादड़ों की मौत हो चुकी है। पूर्वी कनाडा में ‘व्हाइट नोज सिंड्रोम’ खासकर विनाशकारी साबित हुआ है, जहां इसके चलते भूरे रंग के छोटे मायोटिस और नॉर्दर्न मायोटिस की संख्या में 90 परसेंट से ज्यादा की गिरावट आई है। फंगस का प्रकोप पश्चिमी देशों में भी बढ़ रहा है जहां जुलाई में सस्केचेवान में इसका पहला केस सामने आया था। ‘व्हाइट नोज सिंड्रोम’ ब्रिटिश कोलंबिया में नहीं पाया गया है, लेकिन इसका खतरा मंडरा रहा है। ब्रिटिश कोलंबिया में रहने वाले चमगादड़ों की 15 प्रजातियों के सामने आने वाले खतरों को समझने के लिए 2015 और 2020 के बीच मारे गए 275 चमगादड़ों पर स्टडी की गई थी। इसमें पाया गया कि मौत की सबसे सामान्य वजह मानव गतिविधि से जुड़ी है। ये जानकारी इस वक्त शहरीकरण और जलवायु बदलाव के बीच चमगादड़ों की संख्या मालूम करने में सहायता कर सकती है। चमगादड़ की ज़िदंगी बचाने के लिए ये पता करना होगा कि उनकी मौत कैसे होती है।
चमगादड़ को मार रही बिल्लियां
जिन चमगादड़ों पर स्टडी की गई थी उनमें से 25 फीसदी को बिल्लियों ने मारा था। ये हैरान करने वाली बात नहीं है क्योंकि पालतू बिल्लियां वन्यजीवों की जान लेने के मामले में कुख्यात हैं। ऑस्ट्रेलिया में एक अनुमान के मुताबिक आजाद घूमती पालतू बिल्लियां हर साल 39 करोड़ जंतुओं को मार डालती हैं। ये बिल्लियां चमगादड़ों के साथ ही जैव विविधता के लिए भी खतरा पैदा करती हैं। आइसलैंड के कुछ शहरों में पक्षियों की घटती आबादी को बचाने के लिए ‘कैट कर्फ्यू’ लागू किया है। ऐसे में चमगादड़ों और दूसरे पक्षियों की जान बचाने का सबसे आसान उपाय पालतू बिल्लियों को घर के भीतर रखना और उनके बाहर घूमने पर निगाह रखना है। बिल्लियां अपने शिकार का लगभग 20 फीसदी ही घर लाती हैं इसलिए मालिकों को अपनी बिल्ली द्वारा किये जाने वाले शिकार के बारे में मालूम ही नहीं होता। हालिया रिसर्च से पता चलता है कि जंगल के इलाकों के करीब ये क्रियाएं सबसे महत्वपूर्ण हैं। रिसर्च में मालूम चला है कि बिल्लियां जंगलों में 500 मीटर में ही वन्यजीवों का शिकार करती हैं। जंगल के इलाकों के पास रहने वाली बिल्लियों पर फोकस करके वन्यजीवों पर मंडराने वाले खतरे को कम किया जा सकता है।
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इंसानों की वजह से मर रहे हैं चमगादड़
बिल्लियों को घरों के अंदर रखना खुद उनके लिए भी फायदेमंद है। घर के अंदर रहने वाली बिल्लियों की औसत आयु बाहर घूमने वाली बिल्लियों के मुकाबले ज्यादा होता है। स्टडी के मुताबिक आधे चमगादड़ों की मौत मानव गतिविधियों की वजह से हुई। स्टडी में शामिल 90 फीसदी चमगादड़ ‘सिनथ्रोपिक प्रजाति’ के थे जो इंसानों के बीच रहते हैं। स्टडी में मालूम चला है कि 25 परसेंट चमगादड़ों की मौत इंसान के उपोग में आने वाली सामान जैसे कारों या इमारतों से टकराने की वजह से हुई है। दिलचस्प बात है कि इस तरह से मरने वाले चमगादड़ों में ज्यादातर के नर होने की संभावना है। ये पूरी तरह से साफ नहीं है कि ऐसा क्यों है, लेकिन रिसर्च से मालू चला है कि नर चमगादड़ मादा चमगादड़ों के मुकाबले दूर तक उड़ान भर सकते हैं जिससे इनके वाहन या इमारतों से टकराने की आशंका बढ़ जाती है।
मुश्किल है जंगली जानवरों-पक्षियों का अध्ययन
जंग की ज़िंदगी की स्टडी सरल नहीं है। सुरंगों से लेकर खलिहान और अटारी तक विभिन्न स्थानों पर चमगादड़ रहते हैं और वैज्ञानिक हर वक्त सभी स्थानों पर चमगादड़ों की निगरानी नहीं कर सकते। लोगों की तरफ से मिली जानकारी चमगादड़ों के बारे में जानकारी जमा करने और इनकी लोकल संख्या के स्वास्थ्य को समझने में सहायता करती है।