Sunday, November 24, 2024

फ्लाइंग ऑफिसर इतिशा चौहान का ये जज्बा कायल कर देगा आपको! सरकार से अकेले लड़ाई लेकिन फिर भी ज़िंदगी जीने का निराला है इनका अंदाज।

इतिशा नाम का अर्थ है 'शुरुआत का अंत' और इसका एक और भी अर्थ है 'खूबसूरत'। ऐसा बहुत कम होता है जब कोई अपने नाम का अर्थ सार्थक सिद्ध करता है। इसमें भी ऐसा तो कई विरला ही मिलेगा जो नाम के एक से ज्यादा अर्थों को सार्थक साबित कर दे।

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वन रैंक वन पेंशन के लिए इतिशा का संघर्ष जारी

एयर फोर्स में फ्लाइंग ऑफिसर थीं इतिशा

संघर्ष के साथ जीवन जीना जानती हैं ये फौजी

AIN NEWS 1: इतिशा नाम का अर्थ है ‘शुरुआत का अंत’ और इसका एक और भी अर्थ है ‘खूबसूरत’। ऐसा बहुत कम होता है जब कोई अपने नाम का अर्थ सार्थक सिद्ध करता है। इसमें भी ऐसा तो कई विरला ही मिलेगा जो नाम के एक से ज्यादा अर्थों को सार्थक साबित कर दे। लेकिन ऐसे विरले कम ही सही, पर होते अवश्य हैं। ऐसी ही एक शानदार शख्सियत हैं इतिशा माधव चौहान। इनकी सबसे बड़ी पहचान तो है कि ये एक फौजी घराने से ताल्लुक रखती हैं। ये अपने परिवार में पांचवी पीढ़ी की फौजी हैं। यहीं नहीं इनकी बहन भी भारतीय सेना में अफसर हैं।

पराक्रमी परिवार की जोशीली इतिशा ने पहनी फौजी वर्दी

परिवार में वीरता और भारतीय सेनाओं के शौर्य और पराक्रम की कहानियां सुन सुनकर बड़ी हुईं इतिशा के मन में हमेशा से फौजी वर्दी को पहनने की ललक थी। इतिशा अपनी मंजिल को हासिल करने में भी कामयाब रहीं और भारतीय वायुसेना में फ्लाइंग ऑफिसर बन गईं। वायुसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन की नियुक्ति की वजह से 5 साल में वो एयरफोर्स से रिटायर हो गईं। इसके बावजूद भीतर से आज भी फौजी हैं और उनका मानना है कि ‘once a soldier will always be a slodier’ यानी जो एक बार सैनिक बन गया तो वो मरते दम तक सैनिक बना रहेगा। लेकिन वर्दी की सबसे बड़ी प्रेरणा इतिशा को अपने पिता से मिली जो खुद एक एयरफोर्स ऑफिसर रहे हैं। वैसे तो इतिशा का भारतीय सेना, कोस्ट गार्ड और वायुसेना में एक साथ हो गया था लेकिन बचपन से नीली वर्दी के लिए जो प्यार इतिशा ने अपने मन में पलते देखा था वो उनके वायुसेना ज्वाइन करने की वजह बना। वहां पर उनकी शादी एयरफोर्स में बतौर डॉक्टर पोस्टेड माधव से हुई। उनकी बहन जो फिलहाल जोधपुर में लेफ्टिनेंट कर्नल हैं उनके पति भी सेनाधिकारी हैं। इतिशा एयर ट्रैफिक कंट्रोलकर रही हैं। अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने करगिल में सक्रियता से बतौर ATC जिम्मेदारी संभाली है। 2001-02 में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वो 6 महीने तक पाकिस्तान बॉर्डर पर रही थीं।

अन्याय के खिलाफ इतिशा की जंग जारी है

कुछ इसी सोच के साथ जीने वाली इतिशा को वैसे तो अपनी फौजी ज़िदगी पर गर्व है लेकिन उन्हें केवल एक बात का मलाल है कि आखिर सेना में काम करने वाले सभी को रिटायर होने के बाद बराबर पेंशन क्यों नहीं मिलती है? यहां पर इतिशा ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है और शॉर्ट सर्विस कमीशन वालों को भी फुल सर्विस वालों की तरह वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर इतिशा की जंग जारी है। इस लड़ाई में इतिशा को पूर्व फौजियों के साथ ही आम जनता, मीडिया समेत तमाम जगहों से समर्थन मिल रहा है। ऐसे में इतिशा को भरोसा है कि इस शुरुआत का खूबसूरत अंत ज़रुर होगा और सरकार से उन्हें इंसाफ मिलकर रहेगा।

ज़िंदगी जीने में कंजूसी नहीं करती इतिशा

अब जब यहां बात खूबसूरती की हो गई है तो बता दें कि इतिशा खुद अपने नाम के मुताबिक ही खूबसूरती में भी किसी से कम नहीं हैं। उनका पहनने और ओढ़ने का अंदाज एकदम आकर्षक है और वो पारंपरिक परिधानों को पहन सकती हैं तो फिर आधुनिक वस्त्र भी उन पर खूब जंचते हैं। अपने संघर्ष का असर उन्होंने अपने निजी जीवन पर नहीं आने दिया है। वो खुलकर म्यूजिक रील्स बनाती हैं जहां बड़ी संख्या में उनकी फैन फॉलोइंग है। सौम्यता के साथ उनके थिरकने पर बने ये रील्स किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इन्हें देखकर अहसास ही नहीं होता है कि ये किसी पूर्व फौजी की बनाई गई रील्स हैं। अब एक बैंकर की तरह काम करने वाली इतिशा का ज़िंदगी जीने का अंदाज दुनियाभर के लोगों के लिए एक प्रेरणा की तरह है।

50 देशों में घूमने का सपना है

इतिशा बेहद घुमक्कड़ हैं। घूमने का तो इनको इस कदर शौक है कि सोलो ट्रैवलर की कसौटी पर एकदम फिट बैठती हैं। देश-विदेश में यात्रा करने के इनको मौके भी मिलते हैं और ये खुद भी घूमने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं। हाल ही में फिजी यात्रा से वापस आईं इतिशा खुद से ये वादा करके आई हैं कि जल्द ही दोबारा इस खूबसूरत देश में वो ज़रुर वापस आएंगी। उनका मानना है कि उम्मीद से बेहतर है की ‘ठान लो’ और ‘जिद्द को जबरदस्ती’ पूरा करके रहो। यहीं ज़िंदगी में आगे बढ़ने का दस्तूर है। फिजी यात्रा से लौटकर उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भी लिखा हर खूबसूरत चीज का अंत होता है और यही उनकी सोच में उनके नाम की सार्थकता को जाहिर करता है कि कैसे एक शुरुआत को वो अंत तक लेकर आती हैं। अभी तक इतिशा 29 देशों में घूम चुकी हैं और 21 देश इनकी लिस्ट में बाकी हैं।

10 साल विदेश में रही हैं इतिशा

इतिशा ने विदेशों में अपने जीवन के 10 साल बिताए हैं। इन 10 साले के दौरान वो 3 देशों में रही हैं। यहां से भी उनको कई दूसरे देशों में घूमने जाने का मौका मिला था। 4 साल इतिशा दुबई में रही हैं जबकि इन्होंने 5 साल बोतस्वाना में बिताए हैं। इसके अलावा एक साल ये न्यूजीलैंड में भी रही हैं।

घूमने के संग है खाने का भी शौक

इतिशा खाने की भी बेहद शौकीन हैं या कहें खाना उनकी कमजोरी है तो भी गलत नहीं होगा। नई नई डिश ट्राई करना और अलग अलग तरह का खाना उनके रुटीन का हिस्सा है। सभी भारतीय त्योहारों को इतिशा जमकर मनाती हैं और खाने पीने से भी कोई परेहज नहीं करती हैं। लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि वो सेहत और शरीर का ध्यान नहीं रखती हैं। बाहर जाकर भी घूमना फिरना और घर में रहकर व्यायाम और योग करना वो कभी नहीं भूलती हैं। इनका कहना है कि शरीर एक मशीन है और अगर इसकी देखभाल नहीं की तो फिर इसमें जंग लग सकता है। डोसा सांभर इतिशा का फेवरेट फूड है। इसको शौक से खाने के अलावा ये बेहद स्वादिष्ट डोसा भी बनाती हैं। इसको बनाने की विधि इतिशा ने अपनी तमिल सास से सीखी है।

मां-पत्नी समेत सभी फर्ज निभाने में माहिर

यही नहीं अपने परिवार के बाकी सदस्यों पति और बेटे की भी हर जरुरत का ख्याल रखती हैं। यानी एक फौजी, पत्नी और मां होकर भी इतिशा दुनिया के सामने एक मिसाल बन गई हैं कि कैसे ज़िंदगी के मकसद हासिल करने की जद्दोजहद के बीच एक बार मिले इस जीवन को जीना है और हंसी खुशी रहना है।

बाइकर हैं इतिशा माधव चौहान

अपने नाम में ये माधव अपने पति का नाम लिखती हैं इतिशा। तमिलनाडु के रहने वाले माधव बच्चों के डॉक्टर हैं। इनका सहयोग इतिशा को अपने घूमने से लेकर सामाजिक कार्यों तक के शौक को पूरा करने में काफी मददगार होता है। इतिशा एक शानदार बाइकर भी हैं और राजस्थान की सड़कों पर इन्होंने बाइक से खूब सफर किया है।

 

मंडल के बाद से जाति का जिक्र करना बंद किया

मंडल कमीशन के वक्त इतिशा मुश्किल से 14 साल की रही होंगी। लेकिन उस वक्त जातिगत आरक्षण को लेकर देश में जो बवाल हुआ था उससे इतिशा ही नहीं उनकी बहन ने भी फैसला किया कि वो अपने नाम के बाद सरनेम नहीं लिखेंगी। राजपूत परिवार में पैदा हुईं इतिशा मानती हैं कि देश से जाति व्यवस्था खत्म होनी चाहिए। इसी से देश का विकास होगा और देश में छाई आर्थिक और सामाजिक असमानता दूर होगी। उनका मानना है कि अगर मैं क्षत्रिय होकर गर्व से सुरक्षा का अपने पसंदीदा पेशा चुन सकती हों तो कोई भी किसी भी पेशे को चुने उसको हीन नजर से देखना गलत है। साथ ही किसी भी पेशे को जाति से जोड़कर देखना और भी गलत है।

ट्वीटर पोस्ट मे पवन चौधरी ने भी इनकी तारीफ़ मे एक सुन्दर कविता लिखी है देखे।

सामाजिक कार्यों के लिए भी निकालती हैं वक्त

इतिशा रिटायर्ड फौजियों के लिए बढ़ चढ़कर काम करती हैं। उनकी ज़रुरतों को पूरा करने वाले तमाम कार्यक्रमों में इतिशा की भागीदारी रहती है। इसके अलावा कुत्तों को पालने के साथ ही उनका इलाज कराने और देखभाल में भी आगे रहती हैं। फिलहाल उनके पास एक पॉमेरियन है जो उन्होंने कहीं से बचाई थी और आज वो उसको नया जीवन दे चुकी हैं।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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