AIN NEWS 1 : बता दें पहले मुगल बादशाह बाबर (Babur) को खानपान के बहुत ज्यादा शौकीन होते थे। उनका मानना था कि भारत में न अच्छा मीट मिलता है, न कोई अच्छा फल ही होता है, न ही बाजारों में अच्छी रोटी और बढ़िया खाना भी नहीं मिलता।
बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा की शुरुआत फ़रगना (उजबेकिस्तान का एक शहर) के वर्णन से ही की है। यह एक मध्य एशियाई प्रांत है, जहां उनका जन्म हुआ था। बाबर के मुताबिक, वहां बहुत मोटे तीतर मिलते थे, जिससे बने व्यंजन को चार लोग भी मिलकर भी खत्म नहीं कर सकते थे। वह वहां के अनार और खुबानी की भी काफ़ी तारीफ करते हैं।
जाने फिर बाबर को पता चली भारत की सच्चाई
2006 में प्रकाशित अपनी किताब Curry: A Tale of Cooks and Conquerors में इतिहासकार लिजी कोलिंगहम लिखते हैं, ”अपने जीवन के अंत में बाबर ने पाया कि भारत में भी अंगूर और खरबूजे की खेती संभव है। भारत में उगाए गए खरबूजे के स्वाद ने उन्हें अपने घर की याद दिला दी थी और उनकी आंखों से आंसू आ गए।
जाने ”सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी रहते थे अकबर
खानपान का इतिहास लिखने वाली सलमा हुसैन ने अपनी किताब ‘द एम्पायर ऑफ द ग्रेट मुगल्स: हिस्ट्री, आर्ट एंड कल्चर’ में बताया है कि मुगल सम्राट अकबर सप्ताह में तीन दिन बिलकुल शाकाहारी रहते थे। उनके महल की मुर्गियों का रोजाना सरसों के तेल और चंदन से मसाज किया जाता था।
जाने ज़हरीला खाना डालते ही टूट जाती थी शाहजहाँ की प्लेट
अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध मुगल बादशाह शाहजहाँ ने कई ऐतिहासिक इमारतें भी बनवाई थीं। उनकी शाही रसोई में ऐसी तश्तरियाँ भी थीं, जिनमें ज़हरीला खाना डालते ही या तो उसका रंग बदल जाता था या फिर वह अपने आप टूट जाती थी।