AIN NEWS 1: बता दें उत्तर प्रदेश में चली बुलडोजर की राजनीति ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को भी एक बहुत ही पेचीदा स्थिति में डाल दिया है. 2022 के विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार में बीजेपी पर पलटवार करने के लिए उस पर बुलडोजर की राजनीति करने का गम्भीर आरोप लगाया था और अखिलेश यादव ने अपने हर भाषण में ही बुलडोजर को बीजेपी नेतृत्व की एक तानाशाही की मिसाल के तौर पर पेश भी किया.यहाँ तक के सपा नेताओं ने भी बुलडोजर और आपातकाल की ज्यादतियों के बीच तुलना की लेकिन उसकी चाल काम नहीं आई. और उनका दांव उल्टा पड़ गया.

इससे सबसे ज्यादा नुकसान तो समाजवादी पार्टी को हुआ. मतदाताओं ने तो इस बुलडोजर की राजनीति को अपने खुले दिल से स्वीकार किया. जबकि चुनाव के बाद, समाजवादी नेताओं ने बुलडोजर के बारे में बात करना लगभग बंद ही कर दिया और योगी आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधने के लिए अपराध की घटनाओं और खराब कानून व्यवस्था की स्थिति पर ही लौट आए.सपा के एक वरिष्ठ नेता ने यहां तक कहा, भाजपा अपने सभी गैरकानूनी कामों को ही एक सांप्रदायिक रंग देने की कला भली भांति जानती है. उन्होंने इस बुलडोजर को भी हिंदू गौरव के प्रतीक के रूप में बदल दिया है. बुलडोजर के बाद यह ऐसे एनकाउंटर हैं जिनका उपयोग उसी उद्देश्य के लिए ही किया जा रहा है. बुलडोजर और पुलिस मुठभेड़ों के शिकार हिंदू क्यों नहीं होते? क्या एक भी हिन्दू समाज में ऐसा नहीं है जिसने गलत किया हो? उन्होंने कहा, जो कोई भी इसका विरोध करता है उसे तुरंत ही हिंदू विरोधी करार दिया जाता है. हमारे पास तब तक चुप रहने के अलावा और कोई भी विकल्प नहीं बचता है जब तक कि लोगों को अच्छे से सच्चाई का एहसास न हो जाए.और तो और विपक्षी दल भी बुलडोजर का मुकाबला करने से बच रहे हैं।जाने कांग्रेस को भी कुछ ऐसी ही मुश्किल का सामना अभी करना पड़ रहा है. कांग्रेस की राज्य इकाई जो लगभग समाप्त ही हो चुकी है, बुलडोजर की राजनीति पर अपना प्रेस बयान जारी करने पर भी आगे नहीं बढ़ रही है. पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं, ”अगर हमारे नेताओं ने इस मुद्दे पर अभी कोई स्पष्ट लाइन परिभाषित नहीं की है तो आख़िर हम क्या कर सकते हैं. प्रियंका गांधी, जो अभी यूपी की पार्टी प्रभारी हैं, उन्होंने पिछले एक साल से यहां कदम ही नहीं रखा है. नतीजतन, हमने भी ऐसे विवादास्पद मुद्दों पर सार्वजनिक बात करना बंद कर दिया है.”चूंकि विपक्षी दल स्पष्ट रूप से बुलडोजर का मुकाबला करने से काफी हद तक बच रहे हैं, ऐसे में लगता है कि आने वाले महीनों में निस्संदेह बुलडोजर राजनीति को और अधिक मजबूती मिलेगी.

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