Friday, January 3, 2025

नरक चतुर्दशी 2024: क्यों जलाया जाता है यम दीया और कैसे मनाएं रूप चौदस

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AIN NEWS 1 | नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस भी कहा जाता है, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखने और विशेष पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि रूप चौदस पर व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद मिलता है, जिससे सौंदर्य और तेज प्राप्त होता है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तिल के तेल की मालिश करना और चिरचिरी के पत्तों वाले जल से स्नान करना शुभ माना जाता है। स्नान के बाद भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के दर्शन कर उनकी आराधना करने से पापों का नाश होता है और सुंदरता प्राप्त होती है।

यम दीये का महत्व और परंपरा

रूप चौदस की रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य घर में एक जलता हुआ दीया पूरे घर में घुमाता है और अंत में उसे घर से बाहर कहीं दूर रख देता है। इसे यम दीया कहा जाता है। मान्यता है कि इस दीये को घर से बाहर रखने से सभी नकारात्मक शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस दौरान परिवार के अन्य सदस्य घर के भीतर ही रहते हैं।

नरकासुर वध की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, प्रागज्योतिषपुर के राजा नरकासुर नामक एक अत्याचारी दैत्य था, जिसने अपनी शक्तियों से इंद्र, वरुण, अग्नि और वायु जैसे देवताओं को परेशान कर रखा था। वह संतों को भी त्रास देता था और महिलाओं पर अत्याचार करता था। जब उसके अत्याचार बहुत बढ़ गए, तो देवता और ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास गए और उनसे मदद की प्रार्थना की।

भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। चूंकि नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को अपने सारथी के रूप में लिया और उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध किया। इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं और संतों को उसकी दुष्टता से मुक्त किया। इसी प्रसंग की स्मृति में अगले दिन यानी कार्तिक अमावस्या पर दीप जलाकर दीपावली का पर्व मनाया जाता है।

नरक चतुर्दशी और दीपावली का शुभ संदेश

नरक चतुर्दशी का पर्व यह संदेश देता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर उससे मुक्ति पाई जा सकती है। यम दीये की परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि नकारात्मकता को दूर भगाकर अपने घर में सकारात्मकता और सौंदर्य का स्वागत करना चाहिए।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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