AIN NEWS 1 प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाजियाबाद निवासी मौलाना मोहम्मद शाने आलम की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि इस्लाम अपनाने का दबाव डालकर निकाह कराना प्रथम दृष्टया धर्मांतरण का अपराध है। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने इस आदेश के साथ मौलाना को जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया।
मामले का विवरण :
मौलाना मोहम्मद शाने आलम पर आरोप है कि उन्होंने एक महिला को धर्म बदलने के लिए दबाव डालकर उसका निकाह कराया। पीड़िता, जो एक कंपनी में काम करती है, ने बयान दिया है कि मौलाना ने उसे इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया और उसके साथ जबरन निकाह कराया। कोर्ट ने कहा कि मौलाना ने जिलाधिकारी की अनुमति के बिना निकाहनामा बनाया, जो कि कानूनी रूप से दंडनीय अपराध है। उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून 2021 की धारा 8 के अंतर्गत बलपूर्वक, धोखाधड़ी, या प्रलोभन के माध्यम से धर्मांतरण कराने पर कार्रवाई की जा सकती है।
मौलाना का बचाव :
मौलाना का कहना है कि उसने केवल निकाह कराया और धर्मांतरण कराने में उसकी कोई भूमिका नहीं है। हालांकि, पीड़िता के बयान के अनुसार, उसका शारीरिक शोषण किया गया और इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डाला गया। कोर्ट ने कहा कि संविधान हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार देता है और किसी भी धर्म को दूसरे धर्म पर वरीयता नहीं दी जा सकती।
संविधान और सामाजिक समानता :
कोर्ट ने भारतीय संविधान का हवाला देते हुए कहा कि संविधान सभी धर्मों को समान मानता है और किसी धर्म को अन्य धर्मों पर वरीयता नहीं दी जा सकती। संविधान की धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी भारतीय समाज की सामाजिक सद्भाव और भावना को दर्शाती है।
हाल के दिनों में धर्मांतरण के कई मामलों में गलतबयानी, बल, या धोखाधड़ी के माध्यम से लोगों को धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया है। यह मामला भी ऐसा ही प्रतीत होता है।
अंतिम निर्णय:
कोर्ट ने मौलाना को जमानत पर रिहा करने से इनकार करते हुए कहा कि जबरन निकाह कराने की स्थिति में वह धर्मांतरण कराने वाला माना जाएगा और उसे जमानत नहीं दी जा सकती।
इस प्रकार, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतरण के मामलों में सख्त रुख अपनाया है और संविधान की धार्मिक स्वतंत्रता की मूल भावना को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।