AIN NEWS 1: आज का भारत संविधान के मूल सिद्धांतों को बचाने की जंग में है। डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित संविधान ने समानता और न्याय का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन हाल के वर्षों में कुछ प्रावधानों में बदलाव और नए तत्वों का समावेश हो रहा है, जो इस संविधान की आत्मा को कमजोर कर रहे हैं।
डॉ. अंबेडकर का संविधान
डॉ. अंबेडकर का मूल संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देने पर आधारित था। इसमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं का समावेश था:
1. समानता के अधिकार: सभी महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार दिए गए थे।
2. अल्पसंख्यकों के विशेष अधिकारों का अभाव: इसमें वक्फ बोर्ड, मुस्लिम पर्सनल बोर्ड, और अल्पसंख्यक बोर्ड जैसे प्रावधान नहीं थे।
3. सरकारी सहायता का अभाव: मदरसों को सरकारी धन या मौलवियों को सरकारी तनख्वाह नहीं दी जाती थी।
नेहरू-गांधी परिवार का संविधान
इसके विपरीत, नेहरू-गांधी परिवार के प्रभाव में कुछ बदलाव किए गए हैं, जिनसे अंबेडकर के संविधान की भावना कमजोर हुई है:
1. वक्फ बोर्ड और मुस्लिम पर्सनल बोर्ड का निर्माण: इन बोर्डों ने विशेष अधिकार दिए हैं, जो समानता के सिद्धांत को प्रभावित करते हैं।
2. सरकारी सहायता: मदरसों को सरकारी धन और मौलवियों को तनख्वाह दी जाती है, जिससे धर्म आधारित भेदभाव बढ़ता है।
3. अधिकारों में असमानता: मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता जैसे अधिकार नहीं दिए गए हैं, और पुरुषों के लिए भी समान अधिकार नहीं हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू पुरुषों को दो शादी करने पर सजा होती है, जबकि मुस्लिम पुरुष चार शादियां कर सकते हैं।
हमारी जिद
हम एक बार फिर से डॉ. अंबेडकर के संविधान की ओर लौटना चाहते हैं। ST, SC, और OBC वर्गों को धोखा देकर गजवाय-हिंद जैसे सपने देखने से बचना होगा। अब भारत को मदीना बनने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
निष्कर्ष
संविधान की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि हम डॉ. अंबेडकर के मूल सिद्धांतों को पुनर्स्थापित करें। हमें सभी नागरिकों को समान अधिकार देने के लिए एकजुट होना होगा और किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध करना होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने देश को एक समानता और न्याय के मार्ग पर आगे बढ़ाएं।