लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जनाधार लगातार कमजोर होता जा रहा है। यूपी के हालिया उपचुनाव में बसपा को मात्र 7% वोट मिले, जिससे साफ हो गया है कि पार्टी का कोर वोट बैंक—खासकर दलित समुदाय—किसी और की ओर खिसक रहा है।
चंद्रशेखर आजाद बने नई चुनौती
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मायावती के वोट बैंक पर नगीना से सांसद और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है। उनकी सक्रियता और दलितों के बीच मजबूत पकड़ ने बसपा के पारंपरिक वोटरों को आकर्षित किया है।
बीजेपी की रणनीति भी असरदार
सिर्फ चंद्रशेखर ही नहीं, भाजपा भी अपने दलित वोट बैंक को फिर से संगठित करने में सफल होती दिख रही है। केंद्र और राज्य स्तर पर भाजपा की कल्याणकारी योजनाओं और जातीय समीकरणों ने बसपा के जनाधार को और कमजोर किया है।
बसपा के गिरते ग्राफ की कहानी
पिछले कुछ चुनावों में बसपा का प्रदर्शन लगातार गिरता गया है:
- 2012 विधानसभा चुनाव: 25.91% वोट और 80 सीटें।
- 2017 विधानसभा चुनाव: 22.23% वोट।
- 2019 लोकसभा चुनाव: सपा के साथ गठबंधन में 10 सीटें।
- 2022 विधानसभा चुनाव: अकेले 12.83% वोट।
- 2024 उपचुनाव: मात्र 7% वोट।
उपचुनाव से दूरी का ऐलान
पिछले प्रदर्शन से सबक लेते हुए मायावती ने घोषणा की है कि बसपा अब उपचुनाव नहीं लड़ेगी। उनका कहना है कि चुनावी धांधलियों के कारण पार्टी को नुकसान होता है।
क्या बसपा का अस्तित्व संकट में है?
गिरते वोट शेयर और नेतृत्व की चुनौतियों के बीच बसपा का अस्तित्व खतरे में दिख रहा है। दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा अब नए विकल्पों की ओर बढ़ रहा है। चंद्रशेखर आजाद और भाजपा की यह दोहरी चुनौती मायावती के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
निष्कर्ष: मायावती के लिए यह समय पार्टी के पुनर्गठन और नई रणनीति बनाने का है। बिना ठोस कदम उठाए बसपा का अस्तित्व बचाना मुश्किल हो सकता है।