AIN NEWS 1: बांग्लादेश में हाल ही में हुए तख्तापलट के पीछे एक साल की साजिश सामने आई है। इस साजिश में बांग्लादेश के राष्ट्रपति, सेना प्रमुख, और माइक्रोफाइनेंस बैंकिंग एक्सपर्ट मोहम्मद यूनुस शामिल थे, जो वर्तमान में लंदन में रह रहे हैं। इसके अतिरिक्त, खालिदा जिया का बेटा और पाकिस्तान की ISI भी इस साजिश में शामिल रहे हैं।
साजिश की पृष्ठभूमि
साजिश की शुरुआत तब हुई जब विदेशी दबाव की वजह से बांग्लादेश में विपक्ष की किसी भी पार्टी ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया। इस स्थिति का फायदा उठाकर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को तानाशाह के रूप में पेश किया गया। चुनाव में विपक्ष की अनुपस्थिति के कारण शेख हसीना ने अधिकांश सीटें जीत लीं।
साजिश की योजना
1. आरक्षण की याचिका : चुनाव के बाद, एक याचिका बांग्लादेश की कोर्ट में दायर की गई, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आरक्षण को फिर से लागू करने की मांग की गई। कोर्ट ने अचानक इसे स्वीकार कर लिया, जबकि किसी ने इसकी मांग नहीं की थी।
2. आरक्षण समाप्ति : जब हिंसा भड़की, तो बांग्लादेश की कोर्ट ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आरक्षण, विकलांग कोटा, महिला कोटा और पिछड़े जिलों के कोटे को खत्म कर दिया। इससे हिंसा और भी बढ़ गई।
3. सेना की एंट्री : स्थिति को संभालने के बजाय, सेना और राष्ट्रपति ने कुछ नहीं किया। अंततः सेना प्रमुख ने शेख हसीना को धमकी दी कि या तो वह देश छोड़ दें या भीड़ के हाथों उनकी हत्या करवा दी जाएगी। शेख हसीना ने इस्तीफा देने की कोशिश की, लेकिन सेना प्रमुख ने इसे भी ठुकरा दिया। अंततः, शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा।
अंतरराष्ट्रीय भूमिका
इस साजिश के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने फंडिंग की और बाइडेन सरकार और ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने इस योजना की मंजूरी दी। जब लेबर पार्टी सत्ता में आई, तो इस साजिश को तेजी से अंजाम दिया गया। जॉर्ज सोरेस और अन्य अंतरराष्ट्रीय ताकतों ने इसके लिए धन मुहैया कराया।
भारत में साजिश का संकेत
इस साजिश की योजना में भारत में अस्थिरता पैदा करने की भी कोशिश की गई है। जैसे स्वीडन में ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के समय एक टूलकिट लीक किया था, और भारत में मियां खलीफा और रिहन्ना जैसी हस्तियां अचानक सक्रिय हो गईं। ये सब संकेत हैं कि अंतरराष्ट्रीय ताकतें भारत में भी अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रही हैं।
निष्कर्ष
भारत में लोकतंत्र की रक्षा तब तक संभव है जब तक हिंदू बहुसंख्यक हैं। जिस दिन हिंदू जनसंख्या कम होगी, उस दिन भारत में लोकतंत्र और संविधान पर संकट आएगा। विभिन्न देशों में जहां मुस्लिम आबादी बढ़ी है, वहां लोकतंत्र और संविधान की स्थिति दयनीय हो गई है। यह एक कड़वी सच्चाई है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।