Monday, February 10, 2025

आठ प्रहर: समय विभाजन और उनका धार्मिक एवं व्यावहारिक महत्व?

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AIN NEWS 1: हिंदू कालगणना के अनुसार, दिन-रात को आठ प्रहरों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक प्रहर की अवधि तीन घंटे की होती है और इसका अपना विशेष महत्व होता है। यह विभाजन न केवल धार्मिक कार्यों से जुड़ा है, बल्कि दैनिक जीवन की क्रियाओं और परंपराओं पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इस लेख में हम आठों प्रहरों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि किस समय कौन सा कार्य करना शुभ या अशुभ होता है।

1. पहला प्रहर (शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक) – प्रदोष काल

पहला प्रहर सूर्यास्त के बाद प्रारंभ होता है, जिसे प्रदोष काल कहा जाता है। यह समय धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दौरान भगवान शिव, विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होता है। यह समय ध्यान, साधना और आध्यात्मिक क्रियाओं के लिए उत्तम होता है।

2. दूसरा प्रहर (रात 9 बजे से रात 12 बजे तक)

इस समय को रात्रि का मध्यारंभ माना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह काल खरीदारी और कुछ विशेष कार्यों के लिए शुभ माना जाता है, लेकिन इस दौरान पेड़-पौधों को छूने से बचना चाहिए। इसे अधिकतर विश्राम और मन को शांत करने के लिए उपयोग करना चाहिए।

3. तीसरा प्रहर (रात 12 बजे से सुबह 3 बजे तक) – निशीथ काल

तीसरा प्रहर निशीथ काल के रूप में जाना जाता है। यह समय तांत्रिक और तामसिक साधनाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस समय अधिकतर लोग गहरी नींद में होते हैं, लेकिन कुछ साधक इस अवधि में विशेष अनुष्ठान करते हैं। आमतौर पर, इस प्रहर में नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है, इसलिए इसे अशुभ माना जाता है।

4. चौथा प्रहर (सुबह 3 बजे से सुबह 6 बजे तक) – ब्रह्म मुहूर्त

चौथा प्रहर, जिसे ब्रह्म मुहूर्त या ऊषा काल भी कहते हैं, सबसे शुभ माना जाता है। इस समय उठकर ध्यान, योग और धार्मिक अनुष्ठान करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। ऋषि-मुनि और योगी इस समय को आध्यात्मिक साधना के लिए सर्वोत्तम मानते हैं।

5. पांचवां प्रहर (सुबह 6 बजे से सुबह 9 बजे तक)

यह दिन का पहला प्रहर माना जाता है। इस दौरान सूर्योदय होता है, जो नए कार्यों की शुरुआत के लिए अनुकूल समय होता है। इस समय पूजा-पाठ और सत्संग करने से जीवन में शुभता बनी रहती है। कार्यक्षेत्र और व्यवसाय से जुड़े लोग इस दौरान अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं।

6. छठा प्रहर (सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक)

यह समय व्यावसायिक गतिविधियों और दैनंदिन कार्यों के लिए उपयुक्त होता है, लेकिन धार्मिक दृष्टि से इसे कुछ हद तक निषेध किया गया है। इस समय मांगलिक कार्यों को करने से बचना चाहिए। यह प्रहर मुख्य रूप से कर्म प्रधान होता है, यानी इस दौरान मेहनत और कार्य करना लाभकारी होता है।

7. सातवां प्रहर (दोपहर 12 बजे से शाम 3 बजे तक)

सातवां प्रहर शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान विवाह, व्यापारिक समझौते और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों की शुरुआत करना अच्छा होता है। यह समय दोपहर के भोजन और हल्के विश्राम के लिए भी उपयुक्त होता है।

8. आठवां प्रहर (शाम 3 बजे से शाम 6 बजे तक)

यह दिन का अंतिम प्रहर होता है। इस समय शरीर को आराम देने और शाम की गतिविधियों की योजना बनाने का समय होता है। इस दौरान सोने से बचना चाहिए, क्योंकि यह सुस्ती और आलस्य को बढ़ा सकता है। धार्मिक दृष्टि से भी इस समय का विशेष महत्व होता है, और यह संध्या वंदन के लिए उपयुक्त होता है।

हिंदू कालगणना में आठ प्रहरों का विशेष महत्व है, क्योंकि यह न केवल धार्मिक अनुष्ठानों बल्कि दैनिक जीवन की आदतों को भी प्रभावित करते हैं। यदि हम अपने कार्यों को उचित समय पर करें तो हमें अधिक लाभ मिल सकता है। प्रदोष काल (पहला प्रहर) पूजा के लिए उत्तम है, जबकि ब्रह्म मुहूर्त (चौथा प्रहर) ध्यान और साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इसी तरह, निशीथ काल (तीसरा प्रहर) से बचना चाहिए क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जाओं से भरा होता है।

अगर हम अपने दैनिक जीवन में इन प्रहरों के अनुसार कार्य करें, तो जीवन अधिक व्यवस्थित और सफल बन सकता है।

The Hindu time division system (Aath Prahar) divides the day into eight equal parts, each with its own religious and practical significance. The Brahma Muhurta (3 AM – 6 AM) is considered the best time for meditation and spiritual practices, while Pradosh Kaal (6 PM – 9 PM) is ideal for worshiping deities. Nishith Kaal (12 AM – 3 AM) is associated with tantric rituals and is best avoided for auspicious activities. Understanding these eight prahars can help one lead a more structured and spiritually aligned life.

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।

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