बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर लगातार बढ़ते हमलों और अत्याचारों को लेकर भारत ने कड़ा ऐतराज जताया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि बांग्लादेश में हिंदू नेताओं के खिलाफ कार्रवाई चिंता का विषय है। मंत्रालय का कहना है कि हिंदू नेताओं को सिर्फ उनके अधिकारों की मांग करने की वजह से गिरफ्तार किया जा रहा है, जबकि हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं। भारत ने बांग्लादेश सरकार से इस स्थिति का तत्काल समाधान करने की अपील की है।
चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी: बांग्लादेश सरकार का बयान
चिन्मय प्रभु, जो सनातनी जागरण जोत संगठन के प्रवक्ता हैं, को बांग्लादेश सरकार ने 27 नवंबर को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनका आरोप है कि प्रभु ने राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का मामला उठाया था, जिसके कारण उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। बांग्लादेश सरकार ने इस गिरफ्तारी को आंतरिक मामला बताते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान पर आपत्ति जताई है। बांग्लादेश का कहना है कि भारत को अपनी सीमाओं में रहकर बयानबाजी करनी चाहिए, इससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ सकती है।
जमानत अर्जी खारिज: कोर्ट का आदेश
मंगलवार को चटगांव की अदालत ने चिन्मय प्रभु की जमानत अर्जी खारिज करते हुए उन्हें जेल भेजने का आदेश दिया। यह आदेश आने के बाद, उनके समर्थकों ने कोर्ट परिसर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और प्रभु की तत्काल रिहाई की मांग की। यह प्रदर्शन हिंसक रूप ले लिया, जब पुलिस ने अचानक लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। इस संघर्ष में 20 से अधिक लोग घायल हो गए, और पथराव भी हुआ, जिसमें एक वकील, सैफुल की मौत हो गई। इस घटना के बाद यूनुस सरकार ने वकील की मौत के कारणों की जांच का आदेश दिया है।
हिंसक घटनाएं: मंदिरों और हिंदू बस्तियों पर हमला
चटगांव में कट्टरपंथियों ने हिंदू मंदिरों और बस्तियों पर हमला किया। कोतवाली इलाके में स्थित लोकनाथ मंदिर और हजारीलेन में काली माता मंदिर को निशाना बनाया गया। हमलावरों ने धार्मिक नारे लगाते हुए मंदिरों में तोड़फोड़ की और आगजनी की। इसी दौरान चटगांव के एक हिंदू बस्ती पर भी हमला हुआ, जिसमें सात लोग घायल हो गए। हिंदू संगठनों का आरोप है कि इस हमले में बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी के कट्टरपंथियों का हाथ है। इन घटनाओं ने हिंदू समुदाय में दहशत पैदा कर दी है, और उनके खिलाफ हिंसा को लेकर चिंता और बढ़ गई है।
इस्कॉन पर दबाव: प्रभु को संगठन से निकाला गया
चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी और विवाद के बाद बांग्लादेश सरकार ने इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस) पर दबाव डालना शुरू कर दिया है। 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के मामले में देशद्रोह का केस होने के बाद इस्कॉन ने चिन्मय प्रभु को संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से हटा दिया था। गिरफ्तारी के बाद मंगलवार को उन्हें चटगांव इस्कॉन इकाई के सचिव पद से भी हटा दिया गया। इस्कॉन का यह कदम बांग्लादेश सरकार के दबाव में माना जा रहा है, ताकि बड़े देशों की नाराजगी से बचा जा सके।
भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर
भारत ने बांग्लादेश सरकार से अपील की है कि वह अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की सुरक्षा को सुनिश्चित करे और उनके अधिकारों का उल्लंघन न होने दे। भारत का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय को अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने का हक है और उन्हें सुरक्षा मिलनी चाहिए। भारत की ओर से बांग्लादेश सरकार को कड़ी चेतावनी दी गई है, जबकि बांग्लादेश ने इसे अपने आंतरिक मामलों से जोड़ते हुए भारत के हस्तक्षेप की आलोचना की है।
भारत और बांग्लादेश के बीच इस मुद्दे को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है, और अगर जल्द ही स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो यह दोनों देशों के रिश्तों पर गहरा असर डाल सकता है।
निष्कर्ष:
बांग्लादेश में हिंदू नेताओं के खिलाफ बढ़ती कार्रवाई और समुदाय के खिलाफ हो रहे हमले भारतीयों के लिए चिंता का कारण बन चुके हैं। चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी और उसके बाद के हिंसक घटनाओं ने बांग्लादेश में धार्मिक असहमति को और गहरा कर दिया है। भारत का कहना है कि यह बांग्लादेश की जिम्मेदारी है कि वह अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा करे। इस घटना ने बांग्लादेश में धार्मिक और राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है, जिसे काबू करना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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