AIN NEWS 1: महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में छत्रपति शिवाजी महाराज की 35 फीट ऊंची मूर्ति के ढहने को लेकर राज्य में सियासत तेज हो गई है। यह घटना तब सामने आई जब यह मूर्ति, जो कि पहले 6 फीट ऊंची बनाने के लिए अनुमोदित थी, अचानक 35 फीट ऊंची बन गई और विभिन्न सामग्रियों से तैयार की गई। इस मुद्दे पर कई अधिकारियों और संगठनों की भूमिका की जांच की जा रही है।
मूर्ति निर्माण के नियम और प्रक्रिया
मूर्ति निर्माण के लिए महाराष्ट्र कला निदेशालय से अनुमोदन लेना अनिवार्य होता है। इस विभाग की भूमिका मूर्ति की कलात्मक विशेषताओं, चेहरे की समानता और शारीरिक अनुपात को देखना होता है। मूर्ति की ऊंचाई और निर्माण सामग्री के बारे में विभाग को सूचित करने का कोई नियम नहीं है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति के निर्माण के लिए जयदीप आप्टे ने पहले 6 फीट ऊंची मिट्टी की मूर्ति बनाई थी, जिसे कला निदेशालय ने मंजूरी दे दी थी। लेकिन बाद में इस मूर्ति की ऊंचाई बढ़ाकर 35 फीट कर दी गई और इसे स्टेनलेस स्टील और अन्य सामग्रियों से तैयार किया गया।
नौसेना की भूमिका
भारतीय नौसेना ने मूर्ति निर्माण का आदेश दिया था और जयदीप आप्टे को वर्क ऑर्डर जारी किया था। मूर्ति के बेस के लिए पीडब्ल्यूडी से अनुमति ली गई थी, जबकि निर्माण और निगरानी का कार्य भारतीय नौसेना द्वारा किया गया था।
मूर्ति निर्माण के लिए चेतन पाटिल को स्ट्रक्चर कंसलटेंट नियुक्त किया गया था, जिन्होंने पीडब्ल्यूडी से बेस के लिए अनुमति प्राप्त की थी। निर्माण की निगरानी भारतीय नौसेना ने की, लेकिन उद्घाटन के बाद की मरम्मत और रखरखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकार की एजेंसियों को दी गई थी।
विपक्ष और सरकार की प्रतिक्रिया
विपक्ष ने इस मामले में बड़े घोटाले का आरोप लगाया है और महाराष्ट्र सरकार से इस्तीफे की मांग की है। प्रधानमंत्री मोदी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार ने इस घटना के लिए माफी मांग ली है।
वर्तमान स्थिति
इस मामले की जांच जारी है और भारतीय नौसेना ने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया है, यह कहकर कि जांच पूरी होने के बाद तथ्य सामने आएंगे।
इस प्रकार, छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति के निर्माण और ढहने की घटना में कई सरकारी और निजी संगठनों की भूमिकाएं सामने आई हैं, जो आगे की जांच के लिए महत्वपूर्ण होंगी।