AIN NEWS 1 | मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव और उनके ईशा फाउंडेशन के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। कोर्ट ने सद्गुरु से सवाल किया कि जब उन्होंने अपनी बेटी की शादी कर दी है, तो वे दूसरों की बेटियों को संन्यासी बनने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं। यह मामला तब सामने आया जब कोयंबटूर के तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने आरोप लगाया कि उनकी दो बेटियां ईशा फाउंडेशन में कैद हैं।
आरोप क्या हैं?
- याचिकाकर्ता एस कामराज ने दावा किया कि उनकी दो बेटियां, गीता और लता, को ईशा योग सेंटर में जबरन रखा गया है।
- उनका आरोप है कि फाउंडेशन ने उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश कर दिया, जिससे वे संन्यासी बन गईं।
- कामराज का कहना है कि बेटियों को कुछ ऐसी दवाइयां और भोजन दिया जा रहा है, जो उनकी सोचने-समझने की क्षमता को कमजोर कर रहे हैं।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
- मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवगणनम की बेंच ने सद्गुरु से सीधा सवाल किया, “जब आपने अपनी बेटी की शादी कर दी, तो दूसरों की बेटियों को संन्यासी बनाने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं?”
- कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश दिए और ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी मामलों की लिस्ट तैयार करने को कहा।
पुलिस ने की तलाशी
हाईकोर्ट के आदेश के बाद, पुलिस की 150 लोगों की टीम ने ईशा फाउंडेशन के आश्रम की तलाशी ली। इस तलाशी में तीन डीएसपी भी शामिल थे। तलाशी के दौरान पुलिस ने वहां रहने वाले लोगों और आश्रम के कमरों की जांच की। इस पर ईशा योग सेंटर ने कहा कि यह सिर्फ एक सामान्य जांच थी।
मामले का विस्तृत विवरण
पिता का दावा
- कामराज ने कोर्ट को बताया कि उनकी बड़ी बेटी गीता, जो यूके की एक यूनिवर्सिटी से एम.टेक कर चुकी है, 2004 में वहां एक लाख रुपए के वेतन पर नौकरी कर रही थी।
- 2008 में तलाक के बाद, गीता ने ईशा फाउंडेशन की योग क्लासेस में भाग लेना शुरू किया।
- धीरे-धीरे गीता की छोटी बहन लता भी उसके साथ ईशा फाउंडेशन में रहने लगी।
- कामराज ने दावा किया कि उनकी बेटियों ने अपना नाम बदल लिया और उनसे मिलने से इनकार कर दिया। उनके अनुसार, उनकी बेटियों ने उन्हें छोड़ने के बाद से उनका जीवन नर्क बन गया है।
बेटियों का पक्ष
- कोर्ट में पेशी: 30 सितंबर को, कामराज की दोनों बेटियां, गीता और लता, कोर्ट में पेश हुईं। उन्होंने कहा कि वे अपनी मर्जी से ईशा फाउंडेशन में रह रही हैं और उन्हें जबरन नहीं रखा गया है।
- फाउंडेशन का बयान: ईशा फाउंडेशन ने भी दावा किया कि महिलाएं स्वेच्छा से वहां रह रही हैं और वे किसी भी प्रकार की कैद में नहीं हैं।
फाउंडेशन का तर्क
- फाउंडेशन ने कहा कि वयस्क व्यक्तियों को अपनी जीवनशैली चुनने का अधिकार है। वे शादी या संन्यास पर जोर नहीं देते।
- वहां हजारों लोग आते हैं, जिनमें से कुछ संन्यासी नहीं हैं, जबकि कुछ ने ब्रह्मचर्य का पालन करने का निर्णय लिया है।
हाईकोर्ट की राय
कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और जांच के आदेश दिए, हालांकि फाउंडेशन ने अदालत से कहा कि वह मामले का दायरा न बढ़ाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह न तो किसी पक्ष में है और न ही किसी के खिलाफ। न्याय केवल याचिकाकर्ता को न्याय दिलाने के लिए किया जा रहा है।