AIN NEWS 1: रक्षा बंधन, जिसे आमतौर पर राखी के नाम से जाना जाता है, एक ऐसा पर्व है जो हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर एक विशेष धागा बांधती हैं और भाइयों से यह संकल्प लेती हैं कि वे उनकी हमेशा रक्षा करेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राखी की परंपरा कितनी पुरानी है और इसका आरंभ कैसे हुआ? आइए जानते हैं इसके इतिहास, पुरानी मान्यताओं और विभिन्न परंपराओं के बारे में विस्तार से।
राखी की प्राचीन परंपरा
रक्षा बंधन की परंपरा का कोई निश्चित प्राचीन ग्रंथ में उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन इसके संदर्भ कई पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलते हैं। इस परंपरा का मूल विचार ‘रक्षा’ और ‘सुरक्षा’ से जुड़ा हुआ है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य भाइयों और बहनों के रिश्ते को मजबूत करना और एक दूसरे की सुरक्षा का संकल्प लेना है।
वेद और पुराणों में राखी का संदर्भ
वेदों या पुराणों में सीधे तौर पर ‘रक्षा बंधन’ या ‘राखी’ का जिक्र नहीं मिलता, लेकिन इससे संबंधित कई कथाएँ और श्लोक मिलते हैं।
1. यज्ञोपवीत की परंपरा : श्रावण मास की पूर्णिमा को ब्राह्मण वर्ग यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदलते हैं। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है जो समाज के उच्च वर्ग द्वारा किया जाता है। इसी दिन, समाज के अन्य वर्गों में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर एक नया धागा बांधती हैं। यह एक पुरानी लोक परंपरा है, जिसका विस्तृत इतिहास पता लगाना कठिन है।
2. कुंती और अभिमन्यु : महाभारत में कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था, जिससे उसे अजेय होने का वरदान मिला। कृष्ण ने उस रक्षा सूत्र को चूहे के रूप में काट दिया, जिससे अभिमन्यु की मौत हो गई।
3. युधिष्ठिर और कृष्ण : महाभारत में युधिष्ठिर ने कृष्ण से युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए सलाह मांगी थी। कृष्ण ने सेना की रक्षा के लिए कलाई पर सूत्र बांधने की सलाह दी थी।
राखी से जुड़े प्रमुख प्रसंग
1. द्रौपदी और कृष्ण : शिशुपाल वध के समय कृष्ण की अंगुली में लगी चोट पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर बंधी थी। कृष्ण ने द्रौपदी से विपत्ति के समय उसकी रक्षा का वचन दिया था।
2. राजा बलि और लक्ष्मी : भागवत पुराण में वर्णित है कि लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। इस रक्षा सूत्र के जरिए लक्ष्मी ने बलि से यह वादा लिया कि वह विष्णु की उपस्थिति को हमेशा बनाए रखेगा।
3. यमराज और यमुना : भविष्य पुराण में वर्णित है कि यमुना ने अपने भाई यमराज को श्रावण पूर्णिमा के दिन राखी बांधी थी। इसके साथ ही यमराज ने वादा किया कि वे हर साल अपनी बहन से मिलने आएंगे।
ऐतिहासिक संदर्भ
1. सिकंदर और पोरस : 1968 में प्रकाशित ‘इंडिया कल्चर्स क्वार्टरली’ के अनुसार, ग्रीक राजा सिकंदर ने भारत पर चढ़ाई करने से पहले बैक्ट्रिया की राजकुमारी रुक्साना से विवाह किया था। जब सिकंदर ने झेलम नदी पार की, तो पोरस ने रुक्साना की राखी स्वीकार की और उसे युद्ध में मारने के बजाय हार मान ली।
2. रानी कर्णावती और हुमायूं : 1832 में प्रकाशित ‘ओरिएंटल सीन्स’ में वर्णित है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने बहादुरशाह के आक्रमण के समय मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने मदद का वचन दिया और रानी की रक्षा की।
विभिन्न क्षेत्रों में राखी के उत्सव
भारत के विभिन्न हिस्सों में श्रावण मास की पूर्णिमा को विभिन्न त्योहारों के रूप में मनाया जाता है:
1. अवनिअट्टम : तमिलनाडु में इसे अवनी कहा जाता है। इस दिन ब्राह्मण वर्ग यज्ञोपवीत बदलते हैं और अन्य वर्गों में राखी बांधने की परंपरा होती है।
2. झूलन पूर्णिमा : बंगाल और पूर्वोत्तर में इसे झूलन पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। राधा और कृष्ण की मूर्तियों को झूले में झुलाया जाता है।
3. चूड़ा राखी : राजस्थान में चूड़ा राखी या लुंबा राखी की परंपरा है। इस दिन बहनें भाइयों के साथ-साथ अपनी भाभियों को भी राखी बांधती हैं।
4. नराली पूर्णिमा: महाराष्ट्र और वेस्टर्न घाट में समुद्र के देवता वरुण की पूजा की जाती है। बहनें भाइयों को राखी बांधने के बाद नारियल समुद्र में बहाती हैं।
5. पवित्रोपना : गुजरात में इस दिन भगवान शिव को राखी बांधी जाती है। यदि श्रावण पूर्णिमा सोमवार के दिन पड़े, तो यह पर्व विशेष महत्व रखता है।
निष्कर्ष
रक्षा बंधन का पर्व भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें भाई-बहन के रिश्ते की गरिमा और सुरक्षा का संकल्प लिया जाता है। हालांकि इसके प्राचीन मूल और परंपरा के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और ऐतिहासिक संदर्भों से हमें इसके महत्व और विकास का पता चलता है। यह पर्व न केवल भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों में इसकी विविधता को भी दर्शाता है।