AIN NEWS 1: महाकुंभ 2025 में सनातन धर्म में घर वापसी करने वालों के लिए शरणागत, भागवत और धर्मपूत नामक तीन नई जातियों की स्थापना की जाएगी। ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने यह घोषणा परमधर्म संसद में की। उन्होंने कहा कि जो लोग भय, लोभ या बहकावे में आकर सनातन धर्म छोड़ चुके थे, लेकिन अब अपनी गलती सुधारकर लौटना चाहते हैं, उन्हें उचित स्थान दिया जाएगा।
12 वर्षों की परीक्षण अवधि
शंकराचार्य के अनुसार, घर वापसी करने वालों को 12 वर्षों की परीक्षण अवधि में रखा जाएगा, जिसमें वे सनातन धर्म के नियमों और परंपराओं का पालन करेंगे। इस अवधि के दौरान उन्हें शरणागत, भागवत और धर्मपूत जातियों में रखा जाएगा। इस अवधि के सफलतापूर्वक पूर्ण होने पर, उन्हें उनकी मूल जाति में मिलाने की व्यवस्था की जाएगी।
घर वापसी के बाद जाति का निर्धारण कैसे होगा?
सनातन धर्म में लौटने वालों के लिए सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि वे किस जाति में शामिल होंगे। परमधर्म संसद ने इसका समाधान देते हुए स्पष्ट किया कि उन्हें पहले शरणागत जाति में शामिल किया जाएगा। यदि वे 12 वर्षों तक सनातन धर्म के नियमों का पालन करते हैं, तो उन्हें भागवत या धर्मपूत जातियों में शामिल किया जा सकता है और अंततः उनकी मूल जाति में लौटने का विकल्प दिया जाएगा।
सनातन ही एकमात्र धर्म
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म शब्द का प्रयोग केवल सनातन धर्म के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कई मत-पंथों को धर्म की संज्ञा दे दी गई है, जो अनुचित है। उनके अनुसार, हिंदू, वैदिक, आर्य, जैन, बौद्ध और सिख धर्म ही वास्तविक धर्म हैं, जबकि ईसाई, इस्लाम और अन्य अब्राहमिक परंपराएं मजहब या रिलीजन के अंतर्गत आती हैं।
धर्मांतरण का सिद्धांत नहीं हो सकता
शंकराचार्य ने कहा कि यदि धर्म केवल एक है, तो धर्मांतरण संभव ही नहीं है। उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में लगभग 4300 मत-पंथ हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर को स्वयं उनके अनुयायी धर्म नहीं मानते। यहूदी और ईसाई परंपराएं स्वयं को रिलीजन, जबकि इस्लाम स्वयं को मजहब कहता है। इसलिए, सनातन धर्म से अलग किसी अन्य मत-पंथ को धर्म कहना गलत होगा।
अब्राहमिक परंपराओं के लिए अलग पहचान की मांग
परमधर्म संसद ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कहा कि ईसाइयत और इस्लाम के अनुयायियों को धार्मिक नहीं बल्कि रिलीजन अथवा मजहबी कहा जाए। उन्होंने कहा कि यह किसी का अपमान करने के लिए नहीं बल्कि अपनी पहचान को स्पष्ट करने के लिए किया जा रहा है।
सनातन धर्म की रक्षा का संकल्प
परमधर्म संसद में शंकराचार्य के नेतृत्व में सभी धर्मगुरुओं ने यह संकल्प लिया कि हिंदू धर्म और भारतीय मूल के मत-पंथों की रक्षा की जाएगी। सनातन धर्म से जुड़े सभी मतों को धर्म और उनके अनुयायियों को धार्मिक कहा जाएगा, जबकि अन्य को उनके मूल नामों जैसे रिलीजन या मजहब से संबोधित किया जाएगा।
संतों और प्रतिनिधियों की उपस्थिति
इस परमधर्म संसद में साध्वी पूर्णांबा ने विषय की स्थापना की। वाराणसी के मैत्री भवन के फादर यान ने ईसाई प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया, जबकि धर्म संसद का संचालन देवेंद्र पांडेय ने किया।
महाकुंभ 2025 में होने वाली यह व्यवस्था सनातन धर्म में लौटने वालों के लिए एक नई पहल होगी। इसके माध्यम से घर वापसी करने वालों को उचित स्थान मिलेगा और उन्हें सनातन धर्म की परंपराओं को समझने और अपनाने का अवसर मिलेगा। परमधर्म संसद के निर्णयों का उद्देश्य सनातन धर्म की स्पष्ट पहचान को बनाए रखना और घालमेल से बचना है।
Mahakumbh 2025 will witness the establishment of three new castes – Sharanagat, Bhagwat, and Dharmaput – for those returning to Sanatan Dharma. According to Shankaracharya Avimukteshwaranand Saraswati, those who left Hinduism due to fear, greed, or misinformation will get a chance to return. They will be under a 12-year probation period, following which they may be reintegrated into their original caste. The Dharma Parliament (Param Dharma Sansad) has declared that only Sanatan Dharma, including Hinduism, Jainism, Buddhism, and Sikhism, should be recognized as Dharma, while Christianity and Islam should be identified as Religion or Mazhab. This move aims to preserve Sanatan Dharma’s identity and clarity in religious terminologies.