Monday, October 7, 2024

राजनीति का आदर्श और नैतिकता: सत्ता की चुनौती?

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AIN NEWS 1: (वरिष्ठ पत्रकार नीरज महेरे)राजनीति एक व्यवहारिक प्रक्रिया है, जिसमें राजनैतिक व्यक्तियों या समूहों की क्षमता और प्रभाव के साथ-साथ उनके आदर्श और नीतियों को कार्यरूप में प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। जैसे-जैसे किसी नेता का प्रभाव बढ़ता है, सिद्धांत और व्यवहार के बीच तालमेल बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है।

आदर्श बनाम सत्ता

जब कोई नेता सत्ता से दूर होता है, तब वह आदर्शों और नैतिकता की बात करता है। लेकिन जैसे ही सत्ता के समीप पहुँचता है, उसकी असली परीक्षा शुरू होती है। आदर्श की चुनौती और स्खलन का आकर्षण—ये दोनों पहलू विवेकशील राजनेता के लिए एक सतर्कता का कारण बनते हैं। सत्ता के समीप रहने पर, नेता को अपनी प्रतिबद्धताओं और नैतिक संस्कारों का सामना करना पड़ता है। यही प्रतिबद्धताएँ और संस्कार सत्ताभोग के काल में उसके लिए कवच का कार्य करते हैं।

लम्बी अवधि की सत्ता और नैतिकता

राजनीति में लंबे समय तक सत्ता में बने रहना हमेशा उचित नहीं होता। जब कोई नेता सत्ता में लंबे समय तक रह जाता है, तो उसकी आदर्शवादी बातें धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगती हैं। इसलिए सफल और प्रभावी राजनेताओं को चाहिए कि वे स्वेच्छा से कुछ समय के लिए सत्ता की इच्छा पर संयम रखें।

राजनीति की नैतिक प्रेरणा

सत्ता की इच्छा रहित राजनीति में कोई विशेष आकर्षण नहीं होता। लेकिन यदि नेता सत्ता की इच्छा पर संयम नहीं रखता है, तो इससे राजनीति की नैतिक प्रेरणा समाप्त हो जाती है। एक विवेकशील नेता को यह समझना चाहिए कि सत्ता केवल एक साधन है, जिसका उपयोग समाज के उत्थान और विकास के लिए किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

राजनीति में आदर्श और नैतिकता को बनाए रखना कठिन है, लेकिन यह असंभव नहीं है। विवेकशीलता, संयम और नैतिक प्रतिबद्धता के माध्यम से नेता सत्ता के प्रभाव को सही दिशा में ले जा सकते हैं। इस प्रकार, राजनीति में आदर्श और नैतिकता का संतुलन बनाए रखना ही समाज की भलाई के लिए आवश्यक है।

 

इस प्रकार, राजनीति केवल सत्ता की लड़ाई नहीं है; यह समाज के लिए एक जिम्मेदारी भी है। नेताओं को इस जिम्मेदारी का एहसास करना चाहिए और आदर्शों को प्राथमिकता देकर अपने कार्यों को

आगे बढ़ाना चाहिए।

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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