Tuesday, December 3, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने किशोरियों को सेक्स की इच्छा पर काबू रखने की सलाह देने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किया?

- Advertisement -
Ads
- Advertisement -
Ads

AIN NEWS 1: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें किशोरियों को सेक्स की इच्छा पर काबू रखने की सलाह दी गई थी। इस फैसले ने एक महत्वपूर्ण कानूनी और सामाजिक मुद्दे को सामने रखा है।

मामला

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 18 अक्टूबर 2023 को एक आदेश जारी करते हुए किशोरियों को सलाह दी थी कि उन्हें अपनी यौन इच्छाओं पर काबू रखना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा था कि यदि किशोरियां अपनी इच्छाओं का पालन करती हैं, तो समाज की नजरों में उन्हें नकारात्मक रूप से देखा जाता है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को बरी कर दिया था, जबकि निचली अदालत ने उसे दोषी करार दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताते हुए उसे रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने नाबालिग के बलात्कार के आरोपी को फिर से दोषी करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किशोरियों को सेक्स की इच्छा पर काबू रखने की सलाह देना पूरी तरह से आपत्तिजनक और अनुचित है। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पहले दिए गए दोषी करार को बहाल किया।

कोर्ट की कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए जेजे (जुवेनाइल जस्टिस) बोर्ड को निर्देशित किया कि वह मामले को सही तरीके से देखें। कोर्ट ने कहा कि एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाएगी जो पीड़िता से बात करेगी और यह पता लगाएगी कि वह आरोपी के साथ रहना चाहती है या नहीं। इस रिपोर्ट के आधार पर सजा का निर्धारण किया जाएगा।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने यह भी निर्देशित किया कि सभी राज्यों को जेजे एक्ट की धारा 19(6) का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही, तीन विशेषज्ञों की समिति का गठन भी किया गया है जो मामले की गहराई से जांच करेगी।

विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी। यह संदेश देता है कि किशोरियों को उनके यौन अधिकारों के संबंध में किसी भी प्रकार की सलाह या नियमों से नहीं बांधा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि न्यायाधीशों के निर्णय में सामाजिक मान्यताओं और पूर्वाग्रहों की बजाय कानूनी और मानवाधिकार की दृष्टि पर जोर दिया जाए।

यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे न्यायपालिका को संवेदनशील मामलों में अपने फैसलों में सावधानी बरतनी चाहिए और किसी भी तरह की सामाजिक पूर्वाग्रह से बचना चाहिए।

- Advertisement -
Ads
AIN NEWS 1
AIN NEWS 1https://ainnews1.com
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
Ads

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Advertisement
Polls
Trending
Rashifal
Live Cricket Score
Weather Forecast
Latest news
Related news
- Advertisement -
Ads