AIN NEWS 1 | देश में रियल एस्टेट के हर सेगमेंट यानी रेजिडेंशियल और कमर्शियल प्रॉपर्टी की कीमतों में कोरोना के बाद से जबरदस्त तेजी का माहौल बना हुआ है। बीते दो साल के दौरान देश के ज्यादातर इलाकों में प्रॉपर्टी के दाम बढ़कर दोगुने या इससे भी ज्यादा हो गए हैं। इस तेजी के पीछे सबसे बड़ी वजह अचानक से बढ़ी डिमांड रही जिसने सप्लाई को पीछे छोड़ दिया। जबकि कोरोना के पहले तक प्रॉपर्टी मार्केट में घरों की भरमार थी और खरीदार कम… ऐसे में जैसे ही खरीदारों की संख्या बढ़ी तो घरों की सप्लाई कम पड़ने लगी और ज्यादा डिमांड के चलते घरों के दाम भी दौड़ लगाने लगे। लेकिन अब कीमतों में इतनी बढ़ोतरी हो चुकी है कि आम आदमी के बजट में अब घर खरीदना संभव नहीं हो पा रहा है। लेकिन शायद अब घरों के दाम आगे इस तेजी से नहीं बढ़ेंगे। इसकी वजह है कि रियल एस्टेट सलाहकार जेएलएल इंडिया की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के सात बड़े शहरों में फ्लैट की सप्लाई बढ़ने से अनसोल्न्ड घरों की संख्या 2019 के मुकाबले 24 फीसदी बढ़कर 4.68 लाख हो गई है। इस बढ़ोतरी का मतलब है कि अब इन घरों की बिक्री में डेवलपर्स को 7 तिमाही से ज्यादा यानी 22 महीने का समय लगेगा।
ज्यादा सप्लाई, कम डिमांड से घटेंगे दाम!
ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि कहीं डेवलपर्स और ब्रोकर्स जानकर तो कीमतों को नहीं बढ़ रहे हैं। इसके जवाब में जानकारों का कहना है कि हर मार्केट के लिए ये फॉर्मूला तय करना सही नहीं होगा। मिसाल के तौर पर नोएडा जैसे मार्केट्स में
नई सप्लाई ना आने और डिमांड बने रहने से दाम कम होने के आसार नहीं हैं। वहीं गुरुग्राम में द्वारका एक्सप्रेसवे पर मौजूद सप्लाई की वजह से अब प्रॉपर्टी की बिक्री पर दबाव पड़ने लगा है और वहां पर दाम घटने या कम से कम रुकने के तो अनुमान लगाए जा रहे हैं। जिन मार्केट्स में सप्लाई डिमांड के मुकाबले ज्यादा है वहां पर ही घरों की कीमतों में कमी आ सकती है। जिन 7 शहरों का जिक्र जेएलएल इंडिया की रिपोर्ट में किया गया है उनमें शामिल हैं दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता।
घरों को बेचने में लग रहा है कम समय!
इसके अलावा जिन शहरों में घरों की सप्लाई अभी भी डिमांड से कम है वहां पर दाम कम होने के आसार नहीं हैं। वैसे भी बिना बिके घरों को बेचने में लगने वाले समय में 31 फीसदी की गिरावट जनवरी-मार्च तिमाही में दर्ज की गई है जो 2019 के आखिर के 32 महीनों से घटकर अब 22 महीने रह गई है। इस गिरावट को बीते 8 तिमाहियों में दर्ज औसत बिक्री के आधार पर निकाला गया है। ऐसे में समझा जा सकता है कि सभी 7 शहरों के संयुक्त आंकड़ों के आधार पर रियल एस्टेट की चाल का अनुमान लगा पाना मुश्किल होगा। इसके लिए माइक्रो मार्केट्स को समझना होगा तभी कीमतों में गिरावट या तेजी का कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है।