Friday, February 7, 2025

उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने वेदांत को वैश्विक स्तर पर अपनाने की दी अपील, कहा- “यह हमारी प्राचीन ज्ञान धरोहर है”?

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AIN NEWS 1 नई दिल्ली: दिल्ली में आयोजित 27वीं अंतर्राष्ट्रीय वेदांत कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने वेदांत दर्शन और भारतीय प्राचीन ज्ञान को लेकर अहम बयान दिया। उन्होंने कहा कि आज के वैश्विक शैक्षिक और चिकित्सीय क्षेत्र में वेदांत दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका बन रही है। धनखड़ ने कहा, “आज वैश्विक क्षेत्र वेदांत के दर्शन को अपना रहे हैं और हमारे प्राचीन ज्ञान से लाभ उठा रहे हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारी यह धरोहर अब दुनिया भर में मान्यता प्राप्त कर रही है।”

वेदांत दर्शन के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने विशेष रूप से ‘आत्मा’ और ‘स्वास्थ्य’ से जुड़े संदर्भों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, ‘अथर्व वेद’ की प्रासंगिकता सामने आई थी, क्योंकि इसमें स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान संकलित है। वेदों में जीवन से जुड़े सभी पहलुओं का समग्र ज्ञान मिलता है, जो आज भी प्रासंगिक है।

उप-राष्ट्रपति ने यह भी टिप्पणी की कि कुछ लोग भारत में ही इस महान ज्ञान धरोहर को नजरअंदाज करते हैं। उन्होंने कहा, “हमारे ही देश में कुछ लोग, जो इस आध्यात्मिक भूमि के निवासी हैं, वे वेदांत और सनातनी ग्रंथों को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह लोग बिना किसी उचित समझ के और बिना इन ग्रंथों का अध्ययन किए इस ज्ञान को प्रगति विरोधी मानते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”

धनखड़ ने इस प्रकार के दृष्टिकोण को ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ और हमारे बौद्धिक धरोहर के प्रति गलत समझ का परिणाम बताया। उन्होंने कहा, “यह मानसिकता हमारी असली पहचान को नकारती है और हमसे हमारे इतिहास और ज्ञान की सच्चाई छिपाने की कोशिश करती है। यह एक प्रकार की त्रासदी है।”

उप-राष्ट्रपति ने इस संदर्भ में भारतीय समाज से अपील की कि वे अपने प्राचीन ज्ञान को समझें और इसकी महत्वता को स्वीकार करें। उन्होंने कहा, “हमें अपनी महान धरोहर पर गर्व होना चाहिए और इसे सहेजते हुए आगे बढ़ाना चाहिए। वेदांत केवल एक दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है जो हमें आत्मज्ञान और मानवता का सही मार्ग दिखाता है।”

धनखड़ ने इस बात पर भी जोर दिया कि वेदांत का ज्ञान न केवल भारत, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी तेजी से फैल रहा है और इसे अपनाया जा रहा है। यह समय की आवश्यकता है कि हम अपनी प्राचीन परंपराओं को न केवल बचाए रखें, बल्कि उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं।

 

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।

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