AIN NEWS 1: मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जिसमें शिया मुसलमान इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम मनाते हैं। यह दिन कर्बला की जंग की याद दिलाता है, जिसमें इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत हुई थी। भारत में मुहर्रम का इतिहास और औरंगज़ेब का इस पर बैन लगाने का कारण जानना महत्वपूर्ण है।
मुहर्रम का इतिहास और कर्बला की जंग
मुहर्रम की दसवीं तारीख को आशूरा कहा जाता है। इस दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला में शहादत हुई थी। कर्बला इराक का एक शहर है और शिया मुसलमान इसे अत्यधिक पवित्र मानते हैं। 680 ईस्वी में उमय्यद खलीफा यजीद ने इमाम हुसैन से अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा, जिसे हुसैन ने ठुकरा दिया। इसके बाद, यजीद ने हुसैन के काफिले की घेराबंदी कर दी, पानी और भोजन की आपूर्ति रोक दी और अंततः जंग की घोषणा कर दी। इस जंग में हुसैन, उनके परिवार और साथियों को शहीद कर दिया गया, जिसमें हुसैन के छह माह के बेटे अली असगर की भी हत्या शामिल है।
भारत में मुहर्रम का इतिहास
भारत में मुहर्रम की परंपरा अकबर के समय से शुरू हुई, जब शिया मुसलमानों की संख्या बढ़ी और मुहर्रम के जुलूस बड़े पैमाने पर आयोजित होने लगे। अकबर के दरबार में शिया समुदाय के एक प्रमुख सदस्य का भी स्थान था। उनके बाद जहांगीर और शाहजहां के समय में भी मुहर्रम का आयोजन होता रहा। लेकिन औरंगज़ेब के शासनकाल में स्थिति बदल गई।
औरंगज़ेब का बैन और उसके कारण
साल 1669 में औरंगज़ेब ने मुहर्रम के जुलूसों पर बैन लगा दिया। इसका कारण यह था कि इस समय शिया और सुन्नी समुदायों के बीच कई झगड़े और दंगे हो रहे थे। औरंगज़ेब की सख्त नीतियों और धार्मिक असहिष्णुता ने इस परंपरा को प्रभावित किया।
ब्रिटिश काल और मुहर्रम
ब्रिटिश काल में, अंग्रेजों ने भारतीय परंपराओं को लेकर अपनी समझ विकसित की। उन्होंने मुहर्रम के जुलूसों की उपेक्षा की और इन्हें ‘हॉब्सन-जॉब्सन’ के नाम से पुकारा, जो कि उनकी समझ की सीमाओं को दर्शाता है।
नवाबों का युग और लखनऊ का महत्व
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद अवध के नवाबों ने शिया परंपराओं को संरक्षित किया। लखनऊ में मुहर्रम के जुलूस बड़े धूमधाम से मनाए जाते थे। नवाब आसफउद्दौला ने लखनऊ में एक भव्य इमामबाड़ा बनवाया और मुहर्रम के दौरान इसका महत्व बढ़ गया। उनके शासन में, मुहर्रम के जुलूसों और ताजियों की भव्यता बढ़ी।
निष्कर्ष
भारत में मुहर्रम का इतिहास धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं को दर्शाता है। औरंगज़ेब के द्वारा लगाया गया बैन और नवाबों के समय में इसे दिए गए महत्व ने इस पर्व की यात्रा को अलग-अलग चरणों में देखा। मुहर्रम के दौरान आयोजित होने वाले जुलूस और मातम की परंपराएं शिया समुदाय की धार्मिक भावनाओं और ऐतिहासिक घटनाओं की याद दिलाती हैं।