AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से जुड़े बहुचर्चित मोहम्मद अखलाक मॉब लिंचिंग केस में एक बार फिर न्याय की प्रक्रिया तेज होती नजर आ रही है। करीब दस साल पुराने इस मामले में अदालत ने यूपी सरकार को बड़ा झटका देते हुए मुकदमा वापस लेने की याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत के इस फैसले के बाद अब इस केस की प्रतिदिन सुनवाई होगी, जिससे पीड़ित परिवार को जल्द इंसाफ मिलने की उम्मीद जगी है।
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यह मामला न सिर्फ कानून और व्यवस्था से जुड़ा रहा है, बल्कि सामाजिक सौहार्द, अफवाहों की ताकत और भीड़ हिंसा जैसे गंभीर मुद्दों पर भी सवाल खड़े करता रहा है। अब अदालत के ताजा रुख से यह साफ हो गया है कि मामला बिना किसी दबाव के अपने तार्किक अंजाम तक पहुंचेगा।
क्या कहा अदालत ने?
ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित फास्ट ट्रैक कोर्ट में इस मामले की अहम सुनवाई हुई। इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर उस याचिका पर विचार किया गया, जिसमें आरोपियों के खिलाफ चल रहे मुकदमे को वापस लेने की मांग की गई थी।
अदालत ने सरकारी वकील की दलीलों को सुनने के बाद याचिका को “निराधार” करार देते हुए साफ शब्दों में खारिज कर दिया। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने कहा कि केस की प्रकृति गंभीर है और इसे इस स्तर पर वापस लेना न्याय के हित में नहीं होगा।
कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 6 जनवरी तय करते हुए यह भी निर्देश दिया कि अब इस मामले में रोजाना सुनवाई की जाएगी।
पीड़ित पक्ष को क्यों है उम्मीद?
पीड़ित परिवार के वकील यूसुफ सैफी के मुताबिक, यह फैसला अखलाक के परिवार के लिए राहत भरा है। उनका कहना है कि केस लंबे समय से टलता रहा, लेकिन अब रोजाना सुनवाई से सच्चाई सामने आएगी और न्याय मिलने की संभावना मजबूत हुई है।
अब तक इस मामले में अखलाक की बेटी शाइस्ता, जो कि घटना की चश्मदीद गवाह हैं, उनकी गवाही दर्ज हो चुकी है। आने वाले दिनों में अखलाक की पत्नी इकरामन, बेटे दानिश और अन्य महत्वपूर्ण गवाहों की गवाही होनी बाकी है।
क्या था अखलाक मॉब लिंचिंग मामला?
यह मामला 28 सितंबर 2015 की रात का है। उत्तर प्रदेश के दादरी क्षेत्र से सटे बिसाहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक अपने परिवार के साथ रहते थे। उनका परिवार करीब 70 सालों से उसी गांव में रह रहा था और किसी से कोई पुरानी रंजिश नहीं थी।
उस समय अखलाक के बड़े बेटे मोहम्मद सरताज भारतीय वायु सेना में कार्यरत थे और चेन्नई में तैनात थे। परिवार सामान्य जीवन जी रहा था, लेकिन एक अफवाह ने सब कुछ बदल दिया।
अफवाह से हिंसा तक का सफर
घटना की शाम गांव में अचानक गौहत्या की अफवाह फैल गई। कहा गया कि अखलाक के घर में गाय का मांस रखा गया है। इसके बाद गांव के मंदिर के लाउडस्पीकर से एलान किया गया, जिससे माहौल और ज्यादा तनावपूर्ण हो गया।
धीरे-धीरे गांव के लोग इकट्ठा होने लगे। रात करीब 10:30 बजे एक उग्र भीड़ अखलाक के घर पहुंच गई। उस वक्त परिवार खाना खाकर आराम की तैयारी कर रहा था और अखलाक अपने बेटे दानिश के साथ सो रहे थे।
घर में घुसकर की गई बर्बरता
भीड़ ने जबरन घर में घुसकर फ्रिज से मांस निकाला और विवाद शुरू कर दिया। परिवार ने बार-बार समझाने की कोशिश की कि वह मांस मटन है, न कि गौमांस। लेकिन उग्र भीड़ ने उनकी एक नहीं सुनी।
इसके बाद अखलाक और उनके बेटे दानिश को घर से बाहर खींच लिया गया और बेरहमी से पीटा गया। इस हिंसक हमले में अखलाक की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दानिश गंभीर रूप से घायल हो गए। दानिश का इलाज लंबे समय तक चला और वह आज भी उस रात के जख्मों को ढो रहे हैं।
अब तक कानून ने क्या किया?
घटना के बाद पुलिस ने मामले में हत्या समेत आईपीसी की कई धाराओं में केस दर्ज किया। शुरुआत में 10 नामजद आरोपी और कई अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ।
जांच आगे बढ़ने पर आरोपियों की संख्या बढ़कर 18 हो गई, जिनमें तीन नाबालिग भी शामिल पाए गए। इस बीच दो आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि बाकी सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।
चार्जशीट और लंबा इंतजार
दिसंबर 2015 में पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी थी। हालांकि, नियमित सुनवाई फरवरी 2021 से ही शुरू हो पाई।
कोविड-19 महामारी, तारीखों का बार-बार टलना और प्रशासनिक कारणों के चलते यह केस वर्षों तक लटका रहा। पीड़ित परिवार को बार-बार अदालत के चक्कर लगाने पड़े, लेकिन इंसाफ दूर नजर आता रहा।
सरकार की याचिका पर क्यों उठा सवाल?
यूपी सरकार द्वारा मुकदमा वापस लेने की याचिका दायर किए जाने पर कई सवाल खड़े हुए। विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने इसे न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप बताया।
हालांकि अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि इस तरह के गंभीर मामलों में सरकार की मंशा से ज्यादा न्याय और साक्ष्य महत्वपूर्ण हैं।
अब आगे क्या?
अब जबकि अदालत ने याचिका खारिज कर दी है और दैनिक सुनवाई का आदेश दिया है, उम्मीद की जा रही है कि यह केस जल्द अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंचेगा।
पीड़ित परिवार को भरोसा है कि अदालत की यह सख्ती उन्हें उस रात का जवाब दिलाएगी, जिसने उनका सब कुछ छीन लिया।
अखलाक मॉब लिंचिंग केस सिर्फ एक हत्या का मामला नहीं है, बल्कि यह भीड़ हिंसा, अफवाह और न्याय व्यवस्था की परीक्षा का प्रतीक बन चुका है। अदालत का ताजा फैसला यह संकेत देता है कि चाहे कितना भी समय क्यों न लग जाए, न्याय की प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए।
अब देखना यह होगा कि रोजाना सुनवाई के बाद अदालत इस ऐतिहासिक और संवेदनशील मामले में क्या फैसला सुनाती है।
The Akhlaq mob lynching case from Dadri, Uttar Pradesh, has once again come into focus after the court rejected the state government’s plea to withdraw the case. The court’s decision to conduct daily hearings has renewed hope for justice in this high-profile mob lynching case, which has remained pending for nearly a decade.



















