क्या होती है डेट सीलिंग?
डिफॉल्ट के बाद क्या होगा?
प्रोट्रैक्टेड डिफॉल्ट से बिगड़ेंगे हालात!
AIN NEWS 1: हाल ही में अमेरिकी वित्त मंत्री ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर डेट सीलिंग यानी कर्ज की सीमा नहीं बढ़ाई गई तो अमेरिका पहली बार डिफॉल्ट कर सकता है. अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने चेतावनी दी है कि डेट सीलिंग ना बढ़ाने पर देश 1 जून को डिफॉल्ट कर सकता है. अगर ये आशंका सच निकली और अमेरिका वाकई में डिफॉल्ट कर गया तो अमेरिका समेत पूरी दुनिया इसके नतीजों से कांप सकती है. इसके बाद मंदी-छंटनी का ऐसा दौर आएगा कि उससे उबरने में बरसों बरस भी लग सकते हैं.
क्या होती है डेट सीलिंग?
डेट सीलिंग वो लिमिट होती है जहां तक सरकार कर्ज ले सकती है. अब अमेरिका इस महीने के बाद कर्ज की मौजूदा सीमा को पार कर जाएगा. ऐसे में अगर इसे नहीं बढ़ाया गया तो फिर डिफॉल्ट की आशंका सच साबित हो जाएगी. हालांकि ये पहला मौका नहीं होगा जब इसे बढ़ाया जाएगा. 1960 से डेट सीलिंग की सीमा में 78 बार इजाफा किया गया है. इसके पहले आखिरी बार दिसंबर 2021 में अमेरिका ने कर्ज लेने की सीमा में वृद्धि करके इसे 31.4 ट्रिलियन डॉलर कर दिया था. लेकिन अब सरकार की उधारी इस सीमा को भी पार कर चुकी है.
डिफॉल्ट के बाद क्या होगा?
अगर डेट सीलिंग नहीं बढ़ाई जाती है तो अमेरिका को खतरनाक आर्थिक संकट का सामना करना होगा. इससे बेरोजगारी तेज रफ्तार से बढ़ेगी और देश की अर्थव्यवस्था हिल सकती है. अमेरिका के डिफॉल्ट होने के बाद वहां पर बेरोजगारी की दर 5 फीसदी बढ़ने की आशंका है. इससे अमेरिका में 83 लाख नौकरियां खत्म हो सकती हैं. अमेरिकी शेयर बाजार घटकर आधा रह सकता है और US की GDP 6.1 फीसदी तक लुढ़क सकती है. जाहिर है डिफॉल्ट के बाद अगला झटका अमेरिका में मंदी के तौर पर देखने को मिल सकता है. वैसे भी US में मंदी आने की आशंका 65 फीसदी जताई गई है. अमेरिका पहले ही फेड के लगातार 10 बार ब्याज दरों को बढ़ाने से 2006 के बाद की उच्चतम ब्याज दरों पर पहुंच गया है. हाल ही में यहां 3 बैंक डूब चुके हैं और बैंकिंग संकट का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. अपनी करंसी डॉलर पर इतराने वाला अमेरिका अब इसके कमजोर होने से भी परेशान है.
क्या होगा असर?
अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने डिफॉल्ट को भी 3 कैटेगरी में बांटा है. ऊपर बताए गए हालात केवल तब पैदा हो सकते हैं अगर प्रोट्रैक्टेड डिफॉल्ट की स्थिति आ जाएगी. जो डिफॉल्ट का सबसे खतरनाक स्वरुप है. लेकिन इसके अलावा भी बाकी 2 डिफॉल्ट की सूरतों में भी हालात नाजुक होने की भरपूर आशंका है. अगर ब्रिंकमैनशिप की हालत आती है तो डिफॉल्ट से बचने के बावजूद 2 लाख नौकरियों के खत्म होने का डर है. यही नहीं इससे GDP में भी 0.3 फीसदी तक की गिरावट आने की आशंका है. इसके बाद अगली स्थिति शॉर्ट डिफॉल्ट की बनती है जिसमें 5 लाख लोगों के बेरोजगार होने का खतरा है. इस हालत में बेरोजगारी दर 0.3 फीसदी बढ़ सकती है.
प्रोट्रैक्टेड डिफॉल्ट से बिगड़ेंगे हालात!
प्रोट्रैक्टेड डिफॉल्ट की हालत में कम से कम एक तिमाही तक हालात काफी खराब रहने की आशंका है. इस दौरान गतिरोध की स्थिति बनी रहेगी जिससे अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान होगा. मार्च में मूडीज एनालिटिक्स ने भी आशंका जताई थी कि लंबा डिफॉल्ट होने पर अमेरिका में 70 लाख से ज्यादा नौकरियों पर तलवार लटक सकती है और US 2008 जैसे गंभीर वित्तीय संकट में फंस सकता है. 2011 में भी अमेरिका डिफॉल्ट के कगार पर था और अमेरिकी सरकार की सबसे अच्छी ‘AAA’ क्रेडिट रेटिंग को पहली बार घटाया गया था. इसके बाद अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट आ गई थी.
डिफॉल्ट के बाद क्या होगा?
डिफॉल्ट होने के बाद देशों के पास कई विकल्प होते हैं. इसमें कर्ज को रिस्ट्रक्चर करने से लेकर करेंसी की डिवैल्यूएशन तक शामिल है. इससे एक्सपोर्ट किए जाने वाले उत्पाद सस्ते हो जाते हैं जिससे मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को लाभ मिलता है. डिमांड बढ़ने से अर्थव्यवस्था में तेजी आती है और लोन चुकाना आसान हो जाता है. लेकिन इस स्थिति तक पहुंचने से पहले सरकार के पेमेंट पर भी असर होता है. डिफॉल्ट करने वाले देश को बॉन्ड मार्केट से पैसा लेने से भी रोका जा सकता है. हालांकि डिफॉल्ट के मुद्दे का समाधान होने और निवेशकों को भरोसा लौटने के बाद इसकी मंजूरी मिल जाती है. लेकिन इसमें सबसे ज्यादा यकीन इस बात का दिलाना होता है कि सरकार के पास भुगतान करने की क्षमता और मंशा दोनों हैं.
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