अप्रैल में देश में भीषण गर्मी पड़ी.. इस गर्मी ने 70 साल के रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए… इसके असर से लोगों ने जैसे तैसे खुद को बचाकर रखा … लेकिन गेहूं की फसल इस गर्मी के आगे हार मान गई .. इसके असर से इस साल देश में गेहूं का उत्पादन घटने की आशंका है.. इस गिरावट की वजह से भारत अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पैदा हुए हालातों का फायदा नहीं उठा पाएगा। दरअसल, रूस और यूक्रेन दुनियाभर में बड़ी मात्रा में गेहूं का निर्यात करते हैं। लेकिन युद्ध में उलझने और रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से इन दोनों देशों के गेहूं निर्यात पर असर पड़ा है। इसके चलते भारत से गेहूं का निर्यात बढ़ने लगा था। ऐसे में भारत में सप्लाई घटने से गेहूं के दाम भी बढ़ने लगे थे। लेकिन अब पैदावार घटने से कीमतों पर ज्यादा दबाव पड़ने की आशंका है। ऐसे में सरकार जून से गेहूं का निर्यात पर बंदिशें लगाने का फैसला कर सकती है। फिलहाल गेहूं उत्पादकों को MSP के मुकाबले ज्यादा दाम बाज़ार में मिल रहा है इससे सरकारी खरीद कई राज्यों में सुस्त है। वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में जारी तेजी से किसान अपनी फसल सरकार को बेचने में ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। ऐसे में सरकार ने अपनी मौजूदा सीजन के गेहूं खरीद का अनुमान घटाकर 1.95 करोड़ टन कर दिया है। सरकारी खरीद का असल आंकड़ा जून तक साफ हो पाएगा और तब अगर निर्यात पर बंदिश लगती है तो किसानों को अपनी फसल सरकार को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। जानकारों का मानना है कि मौजूदा बाज़ार व्यवस्था में किसानों के अपनी फसल को बाहर बेचने से कीमतें कम होने की जगह निर्यातकों की ज्यादा खरीद से बढ़ रही हैं। ऐसे में अगर सरकारी खरीद कम रहेगी तो लोगों को महंगा गेहूं-आटा मिलेगा जिससे महंगाई लोगों को परेशान कर सकती है। हालांकि निर्यात पर किसी तरह की रोक लगाने का फैसला करना सरकार के लिए आसान नहीं है। इसकी वजह है कि रूस और यूक्रेन से गेहूं खरीदने वाले देशों को लुभाने की सरकार की कोशिशों को निर्यात पर रोक से झटका लगेगा। सरकार ने 2022-23 में 1 करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य तय किया है। 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से 2 महीनों में 1.4 अरब डॉलर के गेहूं निर्यात की खबर है। ऐसे में निर्यात को रोकने से नए बाज़ार टूटने का डर है और ना रोकने पर महंगाई सताने का खतरा है। लिहाजा सरकार इस पर कोई भी फैसला बहुत सोच समझकर ही कर पाएगी।