आठ राज्यों में हिंदुओं को मिल सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने बनाई विशेष समिति!

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AIN NEWS 1: देश के सामाजिक और राजनीतिक विमर्श में एक बार फिर अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर बहस तेज हो गई है। इस बार मुद्दा यह है कि भारत के आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए या नहीं। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) ने इस विषय पर गंभीरता दिखाते हुए एक विशेष समिति का गठन किया है, जो इस प्रस्ताव पर विचार करेगी।

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क्या है पूरा मामला?

भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि राज्यवार जनसंख्या के अनुपात के आधार पर तय होता है। मौजूदा समय में देश स्तर पर हिंदू बहुसंख्यक हैं, लेकिन कुछ ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां हिंदू आबादी कुल जनसंख्या का आधे से भी कम है।

2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देश के आठ ऐसे राज्य हैं जहां हिंदू समुदाय संख्यात्मक रूप से अल्पसंख्यक की स्थिति में है। बावजूद इसके, अब तक उन्हें वहां अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़ी सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पाईं।

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राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की पहल

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने इस असंतुलन को लेकर एक विशेष कमेटी बनाई है। यह समिति आयोग के उपाध्यक्ष (Vice Chairman) की अगुवाई में काम करेगी। जानकारी के अनुसार, इस विषय पर 14 जून को अहम बैठक प्रस्तावित है, जिसमें कानूनी, संवैधानिक और सामाजिक पहलुओं पर चर्चा की जाएगी।

बैठक के बाद आयोग केंद्र सरकार को अपनी सिफारिश भेज सकता है। अंतिम निर्णय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में होगा, लेकिन आयोग की सिफारिश को महत्वपूर्ण माना जाता है।

किन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं?

2011 की जनगणना के आधार पर जिन आठ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उनके आंकड़े इस प्रकार हैं:

जम्मू-कश्मीर – 28.44%

पंजाब – 38.40%

लक्षद्वीप – 2.5%

मिजोरम – 2.75%

नागालैंड – 8.75%

मेघालय – 11.53%

अरुणाचल प्रदेश – 29%

मणिपुर – 31.39%

इन राज्यों में ईसाई, मुस्लिम या सिख समुदाय बहुसंख्यक हैं और वही समुदाय वर्तमान में अल्पसंख्यक योजनाओं का लाभ भी उठाते हैं।

क्या बदल सकता है अल्पसंख्यक दर्जा मिलने से?

यदि इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलता है, तो उन्हें भी:

शैक्षणिक संस्थान खोलने में विशेष अधिकार

छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ

सांस्कृतिक संरक्षण से जुड़ी योजनाएं

सरकारी सहायता और अनुदान

जैसी सुविधाएं मिल सकती हैं।

वहीं दूसरी ओर, आशंका जताई जा रही है कि जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम समुदाय और पंजाब में सिख समुदाय का अल्पसंख्यक दर्जा प्रभावित हो सकता है, जिससे उन्हें मिलने वाली कुछ सरकारी सुविधाएं समाप्त हो सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

इस मुद्दे की जड़ें नवंबर 2017 तक जाती हैं, जब सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी उपाध्याय ने इस संबंध में एक याचिका दायर की थी। उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष यह सवाल उठाया था कि:

“जब किसी राज्य में हिंदू संख्यात्मक रूप से अल्पसंख्यक हैं, तो उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा और उससे जुड़ी सुविधाएं क्यों नहीं मिलतीं?”

उन्होंने तर्क दिया कि मौजूदा व्यवस्था संविधान की समानता की भावना के खिलाफ है।

कानूनी और संवैधानिक पहलू

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार प्रदान करते हैं। हालांकि, संविधान में यह स्पष्ट नहीं है कि अल्पसंख्यक की पहचान देश स्तर पर होगी या राज्य स्तर पर।

यही अस्पष्टता इस पूरे विवाद का मूल कारण है। आयोग की समिति इसी कानूनी पेच को सुलझाने की कोशिश कर रही है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ संगठन इसे समान अधिकारों की दिशा में कदम बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे संवेदनशील सामाजिक संतुलन से जुड़ा विषय मान रहे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी फैसला आंकड़ों, कानून और सामाजिक सौहार्द को ध्यान में रखकर लिया जाना चाहिए।

आगे क्या?

फिलहाल सभी की निगाहें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की बैठक और उसकी सिफारिशों पर टिकी हैं। यदि आयोग केंद्र सरकार को सिफारिश भेजता है और सरकार उस पर विचार करती है, तो यह फैसला देश की अल्पसंख्यक नीति में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।

India’s National Commission for Minorities is considering granting minority status to Hindus in eight Indian states where they are numerically smaller, including Jammu & Kashmir, Punjab, and several northeastern states. Based on the 2011 Census data, a special committee has been formed to examine legal and constitutional aspects of minority status in India. The decision could significantly impact minority rights, government welfare schemes, and India’s minority policy framework.

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