AIN NEWS 1: इलाहाबाद हाई कोर्ट से जुड़ी एक अहम खबर ने राजनीतिक और कानूनी हलकों में चर्चा बढ़ा दी है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली बेंच में बड़ा बदलाव हुआ है। जस्टिस समीर जैन ने खुद को इन सभी मामलों से अलग कर लिया है। यह फैसला अचानक सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसके बाद कोर्ट रूम से लेकर मीडिया जगत तक इस पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगीं।
जस्टिस ने क्या कहा?
सुनवाई शुरू होने के कुछ ही मिनटों बाद जस्टिस समीर जैन ने साफ शब्दों में कहा कि वह आज़म खान से संबंधित किसी भी मामले की सुनवाई नहीं करेंगे। उनकी बेंच में इस दिन कुल चार मामले सूचीबद्ध थे, जिनमें चर्चित यतीमखाना मामला भी शामिल था। जैसे ही मामला उनके सामने आया, उन्होंने बिना किसी विस्तृत टिप्पणी के कहा कि वह इस केस से खुद को अलग कर रहे हैं। कोर्ट की कार्यवाही तुरंत रोक दी गई और रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि ये सारे मामले किसी दूसरी उपयुक्त बेंच के सामने सूचीबद्ध किए जाएं।
यतीमखाना मामला क्यों महत्वपूर्ण है?
आज़म खान के खिलाफ चल रहे मामलों में यतीमखाना बेदखली प्रकरण काफी चर्चित रहा है। यह आरोप लगाया गया है कि रामपुर के यतीमखाना की जमीन को अवैध तरीके से कब्जा करने और निर्माण कार्य करवाने में आज़म खान की भूमिका थी। इस मामले में कई शिकायतें दर्ज हुई थीं, और लगातार कई अदालतों में सुनवाई चल रही थी। हाई कोर्ट में भी इस संबंध में दाखिल याचिकाओं पर लंबे समय से कार्यवाही जारी थी।
जस्टिस समीर जैन की बेंच इस मामले में पहले भी सुनवाई कर चुकी थी। कुछ समय पहले इसी केस में उन्हें ट्रायल कोर्ट को निर्देश देना पड़ा था कि अंतिम फैसला अगली सुनवाई तक न सुनाया जाए। इससे मामला और संवेदनशील हो चुका था। इसी वजह से जब जज ने खुद को मामले से अलग किया, तो यह खबर तुरंत सुर्खियों में आ गई।
बाकी तीन मामले कौन से थे?
हालांकि आधिकारिक तौर पर बाकी मामलों की पूरी सूची सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन कोर्ट से जुड़े सूत्रों के अनुसार, अन्य तीन मामले भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आज़म खान से जुड़े हुए थे। इनमें जमीन कब्जे, कथित धोखाधड़ी और प्रशासनिक आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाएं शामिल थीं। जस्टिस जैन ने बिना किसी अलग टिप्पणी के इन सभी से खुद को अलग करने का निर्णय लिया।
कोर्ट रूम में मौजूद वकीलों का कहना था कि यह बेहद दुर्लभ स्थिति है कि एक ही दिन में किसी जज द्वारा एक ही व्यक्ति से जुड़े चार मामलों से अलग होने का फैसला सुनाया जाए। इससे यह साफ होता है कि जस्टिस जैन इस पूरे सेट ऑफ केसेज़ में खुद को निष्पक्षता बनाए रखने के लिए दूर रखना चाहते थे।
क्या कारण बताया गया?
सबसे रोचक बात यह रही कि जस्टिस समीर जैन ने इस फैसले के पीछे कोई भी आधिकारिक कारण नहीं बताया। आमतौर पर जब कोई जज किसी मामले से खुद को अलग करता है, तो वह “personal reasons”, “not inclined” या “reasons recorded in the order” जैसे शब्दों का उपयोग करता है। लेकिन इस मामले में उन्होंने केवल इतना कहा कि वह इस मामले में सुनवाई नहीं करेंगे।
इससे विभिन्न तरीकों की अटकलें शुरू हो गईं—
क्या किसी हितों के टकराव (conflict of interest) की संभावना थी?
क्या कोई पूर्व टिप्पणी या जुड़ाव था जिसकी वजह से जज खुद को असहज महसूस कर रहे थे?
या फिर किसी प्रशासनिक कारण से यह निर्णय लिया गया?
हालांकि, इन सब सवालों का जवाब आधिकारिक आदेश में स्पष्ट नहीं है।
अगले कदम क्या होंगे?
जस्टिस जैन के अलग होने के बाद अब ये मामले इलाहाबाद हाई कोर्ट की किसी दूसरी बेंच के पास भेजे जाएंगे। कोर्ट की रजिस्ट्री इन मामलों को नए सिरे से तिथि देकर सूचीबद्ध करेगी। इसके बाद नई बेंच यह तय करेगी कि यतीमखाना मामले और अन्य संबंधित मामलों में आगे की सुनवाई किस तरह होगी।
यतीमखाना केस में पहले से लागू कोर्ट का अंतरिम आदेश—जिसमें ट्रायल कोर्ट को अंतिम फैसला न देने का निर्देश दिया गया था—अगली सुनवाई तक लागू रहेगा। इससे आज़म खान को तत्काल राहत मिलती है क्योंकि ट्रायल कोर्ट अब भी कोई अंतिम फैसला नहीं सुना सकता।
राजनीतिक प्रतिक्रिया भी शुरू
यह मामला केवल कानूनी पहलू तक सीमित नहीं रहा। समाजवादी पार्टी के कई नेताओं ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नई बेंच में सुनवाई निष्पक्ष तरीके से होगी। वहीं विपक्षी दलों ने कहा कि अदालत का निर्णय स्वागतयोग्य है और कानून अपना रास्ता लेगा।
जस्टिस समीर जैन का खुद को आज़म खान से जुड़े चार मामलों से अलग करना निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण न्यायिक घटना है। इससे न केवल इन मामलों की दिशा बदलेगी बल्कि आगे की कानूनी प्रक्रिया भी नई बेंच द्वारा निर्धारित की जाएगी। फिलहाल कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी रहेगा और सभी की निगाहें इस बात पर होंगी कि नई बेंच इन मामलों को कब और किस क्रम में सुनना शुरू करती है।
Justice Sameer Jain’s recusal from all Azam Khan cases has created a major development in the Allahabad High Court. The Yateemkhana case, pending legal appeals, and other matters connected to the SP leader will now be assigned to a different bench. This update is significant in Uttar Pradesh politics and legal proceedings involving high-profile leaders, making it important for anyone following Azam Khan’s litigation timeline or the functioning of the Indian judiciary.



















