AIN NEWS 1 नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के जिम्मेदार सरकारी अफसरों के प्रति सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त की है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ साफ़ कहा कि उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों के मन में देश की शीर्ष अदालत के प्रति जरा सा भी सम्मान नहीं है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ ख़ास कैदियों की सजा में कुछ छूट के संबंध में उसके निर्देशों के अनुपालन में हुई करीब एक साल की देरी पर अपनी काफ़ी गहरी नाराजगी जताते हुए यह सख्त टिप्पणी की. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अब यूपी के गृह सचिव को भी तलब करने की बात कही.सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्देश दिया कि अगर उत्तर प्रदेश के अधिकारी याचिकाकर्ताओं की समय पूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर चार सप्ताह में अपना फैसला नहीं करते हैं, तो उत्तर प्रदेश राज्य के गृह विभाग के प्रमुख सचिव 29 अगस्त को अगली सुनवाई के दिन कोर्ट में ही मौजूद रहेंगे. सुनवाई के दौरान ही राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि सिफारिशों के बाद सजा में छूट पर अंतिम निर्णय राज्यपाल को ही लेना होता है. इसके लिए कोर्ट का राज्यपाल को डेडलाइन देना सही नहीं होगा.हालांकि, इस पर भी सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. ऐसे लोग भी हैं, जो करीब 30 वर्षों से ही परेशान हैं. पिछले साल 16 मई को ही हमने तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया था. तब भी प्रशासन ने कई कैदियों की याचिका पर अभी तक अपना फैसला नहीं किया है. बरेली जेल में बंद कई याचिकाकर्ता कैदियों ने बिना छूट अपनी 14 साल से अधिक की वास्तविक सजा पूरी कर ली थी.सुप्रीम कोर्ट ने एडिशनल एडवोकेट जनरल अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद से भी कहा कि आपके राज्य में यही हो रहा है. आपके अफसर जितना अधिक अनादर दिखा रहे हैं, हमें लगता है कि हमे कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. पिछले साल कोर्ट पहुंचने वाले कुल 42 दोषियों में से कई को हाईकोर्ट ने माफी याचिका पर फैसले तक रिहा या बरी कर दिया था. लेकीन सात आवेदन अब भी लंबित हैं.

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