AIN NEWS 1 बाड़मेर: बता दें जब मन में कुछ करने कुछ बनने की हो तो कोई भी समस्या रास्ता नहीं रोक सकती। ऐसे ही देश की सबसे बड़ी परीक्षा के लिए एक नहीं, दो नहीं बल्कि आठ बार के प्रयास और असफलता की निराशा के बीच उस व्यक्ति के लिए उसकी पत्नी के शब्द केवल प्रेरणा और जोश को भरने वाले रहें. अपने आठवें प्रयास में उसने यूपीएससी की परीक्षा को पास कर सफलता के झंडे गाड़ ही दिए हैं. यहां हम बात कर रहे हैं भारत और पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर के एक बहुत ही छोटे से गांव झापली के मोहनदान की. जान ले मोहनदान ने 710वीं रैंकिंग के साथ यूपीएससी परीक्षा को पास कर एक इतिहास रच दिया है.अपनी इस सफलता से पहले भी वह तीन सरकारी नौकरी पर कार्य कर चुके हैं. सरहदी बाड़मेर जिले के झांपली खुर्द गांव के रहने वाले मोहनदान पिछले चार वर्ष से सिविल सेवा की तैयारी कर रहे थे. इससे पहले भी तीन सरकारी नौकरी हासिल की है. वर्ष 2012 में द्वितीय श्रेणी अध्यापक, 2016 में स्कूली शिक्षा में व्याख्याता व 2018 में अपने कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर उनका चयन हुआ.असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत वह वर्तमान में राजकीय महाविद्यालय कल्याणपुरा में ही असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत है.लेकिन उनकी पत्नी वंदना चारण ने मोहनदान को एक आईएएस बनने तक नहीं रुकते हुए कड़ी मेहनत करने के लिए काफ़ी ज्यादा प्रेरित किया. वंदना चारण भी अभी जोधपुर में ही सहायक लेखाधिकारी है. वैसे तो 10वीं में मोहन दान के महज 64 प्रतिशत ही नंबर ही थे. मोहनदान का कहना है कि उन्होंने तीन बार आरएएस के लिए इंटरव्यू भी दिए, लेकिन उनका चयन उसमे नहीं हुआ. मोहनदान के कदम यूपीएससी में 7वें अटैम्प्ट के बाद पूरी तरह से रुक जाते, लेकिन उनकी पत्नी ने आखिरी दौर में भी पूरे जोश और तैयारी के साथ जुटने के लिए उन्हे प्रोत्साहित किया. मोहनदान बताते है कि आठवीं बार मे ही उन्हें यह सफलता मिली है.
उन्होने बताया की पत्नी का बड़ा सहयोग
लगातार मेहनत के बावजूद भी कुछ कमियां रह जाती थी. वह बताते है कि उनकी पत्नी का उन्हे बड़ा सहयोग रहा है. वह उन्हें बार-बार मोटिवेट करती रहती थी. ऐसे में उन्होंने बार-बार मिल रही असफलताओ के बावजूद भी हार बिलकुल नहीं मानी और यूपीएससी क्रैक किया है. वह युवाओं को किसी असफ़लता से रुक जाने के बजाए जुटे रहने की बात कहते हुए नजर आते है. मोहनदान के पिता कैलाशदान कवि है, जिनका प्रमुख व्यवसाय ही खेती है. मोहनदान का एक भाई अध्यापक है. आज मोहनदान की सफलता के बाद आज सरहदी बाड़मेर में उनके संघर्ष के काफ़ी ज्यादा चर्चे हैं.