राष्ट्रीय राजधानी से सटे गाजियाबाद में ऑनलाइन धर्मांतरण गिरोह का खुलासा होने के बाद एक तरफ पुलिस ने बड़े स्तर पर जांच पड़ताल शुरू की है, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है.
अब तक अभिभावकों को लगता था कि उनका बच्चा मोबाइल फोन पर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहा है, लेकिन इस धर्मांतरण मामले के बाद उन्हें डर है कि कहीं उनका भी बच्चा तो इस गिरोह का शिकार नहीं हो गया. स्थिति यहां तक आ गई है कि अब लोग बच्चों के हाथ में मोबाइल देने से भी डरने लगे हैं. मोबाइल यदि दे भी रहे हैं तो नजर रख रहे हैं कि उनका बच्चा मोबाइल पर पढ़ाई कर रहा है या फिर गेम खेल रहा है. यदि गेम खेल भी रहा है तो कौन सा गेम है.
ज्यादातर अभिभावकों का कहना है कि उनके बच्चे भी छिप छिपकर और देर तक मोबाइल पर गेम खेलते हैं. चूंकि उन्हें यह पता ही नहीं कि उनका बच्चा कौन सा गेम खेलता है, इसलिए उन्हें भी डर है कि कहीं वह इस धर्मांतरण गिरोह की चपेट में ना आ जाए. मौजूदा स्थिति को देखते हुए TV9 भारतवर्ष की टीम ने शहर के कुछ अभिभावकों से बात की और स्थिति को समझने का प्रयास किया. इस दौरान लगभग सभी अभिभावकों ने इस डर को स्वीकार किया. कहा कि वह चाहते हैं कि उनका बच्चा मोबाइल फोन का इस्तेमाल ना करे, लेकिन पढ़ाई की मजबूरी के चलते उन्हें बच्चों को मोबाइल देना पड़ रहा है. ऑनलाइन गेमिंग एप के जरिए धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद तो अभिभावकों के लिए और बड़ी चुनौती आ गई है.
गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी महिला करुणा त्यागी कहती है कि ऑनलाइन धर्मांतरण की घटना सुनने के बाद हम काफी गंभीर हैं. खसतौर पर बच्चों को लेकर डर की स्थिति बन गई है. उन्होंने कहा कि कई बार हमारे बच्चे एकांत में मोबाइल देखते हैं. ऐसे हालात में उनके गलत लोगों के संपर्क में आने की आशंका बढ़ जाती है. कहा कि अब ध्यान रखने लगे हैं के हाथ में मोबाइल है तो वह क्या कर रहा है. वसुंधरा में रहने वाली सुनैना भारद्वाज के मुताबिक धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद से चिंता बढ़ गई है. बच्चे ऑनलाइन गेम खेल रहे हैं, और उस के माध्यम से चैट भी करते हैं.
मनोचिकित्सक आर चंद्रा कहते हैं कि कई गेम ऐसे होते हैं जिसमें आपस में लोगों का इंटरेक्शन होता है. इनमें चैटिंग भी होती है. वह चैटिंग किसी और को नहीं पता चलती क्योंकि इसमें प्राइवेसी भी होती है. कई बार यह इलीगल तरीके से भी होता है. कई बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी पर्सनैलिटी स्ट्रांग होती है वह किसी के बहकावे में नहीं आते. लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो बहुत जल्दी बहकावे में आ जाते हैं. इस तरह की दिक्कतों से बचने के लिए बच्चों के साथ उनके माता पिता को दोस्ताना व्यवहार करना होगा. आर चंद्रा कहत हैं कि बच्चे अपने स्कूली दोस्त या फिर दूसरे दोस्तों को भी अपनी बातें बताते हैं. उन दोस्तों से भी अगर बच्चों के अभिभावक बात करें तो बच्चे के बारे में काफी जानकारी ली जा सकती है. यह भी पता लगाया जा सकता है कि बच्चा कहीं किसी अनजान व्यक्ति से बातचीत नहीं करता है.