कभी जूते की फैक्‍ट्री में किया काम कभी होटल रिसेप्शन पर, फिर भी खड़ा किया 12,700 करोड़ का होटल कारोबार!

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उन्‍होंने अपने काम की शुरुआत शिमला में स्थित एक सेसिल होटल के की थी.

उनके पिता की जल्‍दी मौत हो जाने की वजह से परिवार की जिम्‍मेदारियों का बोझ भी आ गया.

पेट पालने के लिए अपने चाचा की जूते की फैक्‍ट्री में काम करना उन्होने शुरू कर दिया.

AIN NEWS 1 नई दिल्‍ली : सोच लो अगर कोई एक आदमी जो खुद किसी होटल के रिसेप्‍शन पर ही सालों तक काम करता रहा हो. और वह एक दिन खुद का होटल खोलता है और अपनी कड़ी मेहनत व लगन से देशभर में ही 5 स्‍टार होटल की एक पूरी बड़ी चेन खड़ी कर देता है और आज 12,700 करोड़ रुपये का एक बहुत बड़ा होटल का ग्रुप चला रहा हो. पहली नजर में इसे पढ़कर तो आपको भी यह किसी फिल्‍म की स्क्रिप्‍ट ही लगी होगी. लेकिन, यह कहानी बिलकुल नहीं संघर्ष और सफलता की जीती-जागती एक मिसाल है. इस होटल की नींव की एक-एक ईंट उनके मेहनत के पसीने से सींची गई है.

दरअसल, हम इस समय बात कर रहे हैं मोहन सिंह ओबरॉय की जो अब ओबरॉय ग्रुप ऑफ होटल्‍स के अकेले मालिक हैं. उन्‍होंने अपने काम की शुरुआत शिमला में स्थित सेसिल होटल से ही की थी, जहां एक डेस्‍क क्‍लर्क के रूप में वह काम किया करते थे. भारत विभाजन से पहले ही उनका जन्‍म झेलम जिले (जो अब पाकिस्‍तान) में स्थित है वहा हुआ था. उनके पिता की काफ़ी जल्‍दी मौत हो जाने की वजह से उनके ऊपर परिवार की जिम्‍मेदारियों का बोझ भी काफ़ी आ गया.

उस समय उन्होने जूते की फैक्‍ट्री में किया काम

मोहन ओबरॉय ने अपने परिवार का पेट पालने के लिए अपने चाचा की जूते की फैक्‍ट्री में ही काम करना शुरू कर दिया. कुछ ही दिन बाद हुए भारत-पाक विभाजन के दौरान दंगों की वजह से वह फैक्‍ट्री भी बंद हो गई. फिर वह वहा से शिमला चले आए और यहां पर सेसिल होटल में ही क्‍लर्क की नौकरी करने लगे. उन्‍हें पता भी नहीं था कि यही हुनर एक दिन उन्‍हें भारत देश के सबसे सफल होटल चेन बनाने में भी मदद करेगा.

और फिर खेला उन्होने बड़ा दांव

मोहन सिंह ओबरॉय ने सेसिल होटल से ही पैसा और हुनर दोनों ही कमाया और साल 1934 में अपनी पहली प्रॉपर्टी ‘द क्‍लार्क होटल’ (The Clarkes Hotel) के रूप में उन्होने बनाई. इस प्रॉपर्टी को खरीदने के लिए उन्‍होंने अपनी पत्‍नी के जेवर सहित अपनी सभी संपत्तियों को गिरवी तक रख दिया. लेकीन उनके मेहनत ने जल्‍द ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. मात्र 5 साल के भीतर ही उन्‍होंने होटल से कमाई करके अपना पूरा कर्जा उतार दिया.

फिर इसके बाद उनके नहीं रुके कभी कदम

इस दौरान मोहन सिंह ओबरॉय को पता चल चुका था कि उनकी किस्‍मत उन्होने सही जगह लग गई है. इसके बाद उन्‍होंने कोलकाता के एक ग्रैंड होटल को खरीदने की ओर अपना कदम बढ़ाया. उस दौरान कोलकाता में कालरा महामारी के फैली होने के बावजूद भी मोहन सिंह ने यह अपनी डील पूरी की और आखिर उनका नाम एक विजनरी होटलियर के रूप में काफ़ी ज्यादा फेमस हो गया.

उसके बाद से खड़ा हो गया साम्राज्‍य

इसके बाद तो जैसे ओबरॉय के अपने विजन को पंख लग गया. उन्‍होंने भारत और दुनिया के भी कई देशों में एक के बाद एक होटल खरीदने शुरू कर दिए. वर्तमान में ओबरॉय ग्रुप के पास अब तक कुल 31 लग्‍जरी होटल और रिजॉर्ट हैं. इन सभी में ग्‍लोबल स्‍टैंडर्ड वाली सुविधा और सेवा ग्राहकों को मिलती है. भारतीय होटल उद्योग में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने भी उन्हे साल 2001 में ही पद्म भूषण से सम्‍मानित किया. उन्‍हें भारतीय होटल उद्योग का पिता भी कहा जाता है. अभी ओबरॉय ग्रुप की मार्केट वैल्‍यू करीब 12,700 करोड़ रुपये है. इस समूह के होटल भारत के अलावा चीन, यूएई, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका के अलावा और भी कई सारे देशों में फैले हैं.

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