कोरोमंडल एक्सप्रेस एक्सीडेंट: सबसे पहले पटरी में हुई गड़बड़ी, फिर क्यों हो गया ‘कवच’ भी फेल! इस हादसे में रेल सुरक्षा की खोल दी पोल!

0
654

हाइलाइट्स

1.कोरोमंडल एक्सप्रेस हुई ओडिशा के बालासोर में दुर्घटनाग्रस्त

2.इस हादसे में 280 से अधिक यात्रियों की मौत, 900 घायल

3.इस हादसे ने रेलवे के सेफ्टी के दावों की पूरी तरह खोली पोल

AIN NEWS 1 नई दिल्ली: ओडिशा के ही बालासोर जिले में शुक्रवार को एक बहुत भीषण रेल हादसा हुआ। कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन के अचानक से बेपटरी होने और एक मालगाड़ी के उससे टकराने से जुड़े त्रिपक्षीय रेल हादसे में कम से कम 280 लोगों की मौत हो गई जबकि लगभग 900 लोग इसमें घायल हो गए। रेलवे अधिकारियों ने यह पूरी जानकारी दी। रेलवे के एक अधिकारी ने कहा कि हावड़ा जा रही 12864 बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के एक साथ कई डिब्बे बाहानगा बाजार में पटरी से उतर गए और दूसरी पटरी पर जा कर गिरे। पटरी से उतरे ये डिब्बे 12841 शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस से भी टकरा गए और जिससे इसके डिब्बे भी वहा पर पलट गए। अधिकारी ने कहा कि कोरोमंडल एक्सप्रेस के ये डिब्बे पटरी से उतरने के बाद वहां एक मालगाड़ी से भी टकरा गए, जिससे मालगाड़ी भी इस दुर्घटना की चपेट में आ गई। उन्होंने बताया कि यह हादसा शाम को करीब सात बजे, हावड़ा से करीब 255 किलोमीटर दूर बाहानगा बाजार के स्टेशन पर ही हुआ। इस हादसे ने रेल मंत्रालय ने रेल मंत्रालय के सेफ्टी के दावों की पूरी तरह से ही पोल खोल दी है। इस सिस्टम के जरिए ही रेलवे ने अपना जीरो एक्सीडेंट का दावा किया था। इसके लिए रेलवे ने एक कवच (Kavach) समेत कई सारे सेफ्टी टेक्नोलॉजी को भी लागू करने का दावा किया गया था।रेल मंत्रालय ने इसके लिए पिछले साल ही कवच टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग भी की थी। और जोरशोर से इसका काफ़ी प्रचार किया गया था। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Rail Minister Ashwini Vaishnaw) इस दौरान खुद ही एक ट्रेन पर सवार हुए थे। यह कवच एक टक्कर रोधी तकनीक है। रेलवे का साफ़ दावा है कि इस टेक्नोलॉजी से उसे जीरो एक्सीडेंट के अपने लक्ष्य को अब हासिल करने में मदद मिलेगी। कवच को साल 2020 में नेशनल ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम के तौर पर ही अपनाया गया था। कवच एक SIL-4 प्रमाणित टेक्नोलॉजी ही है, यह भी एक सेफ्टी का हाइएस्ट लेवल है। रेलवे का भी दावा है कि यह एक टेक्नोलॉजी माइक्रो प्रोसेसर, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम और रेडियो संचार के माध्यमों से ही जुड़ी रहती है।

जान ले क्या है यह कवच सिस्टम

दावा तो यह भी किया गया है कि यह तकनीक एक निश्चित दूरी के भीतर केवल उसी ट्रैक पर ही दूसरी ट्रेन का पता लगाती है, उससे तो ट्रेन के इंजन में लगे उपकरण के माध्यम से ही निरंतर सचेत करते हुए स्वचालित ब्रेक लगाने में पूरी तरह से सक्षम है। इसका ट्रायल पिछले साल रेल मंत्री की मौजूदगी में ही किया गया था। यह ट्रायल दक्षिण मध्य रेलवे के लिंगमपल्ली-विकाराबाद सेक्शन पर ही किया गया था। स्वदेश में विकसित इस सिस्टम का मकसद केवल ट्रेनों की टक्कर को रोकना है। रेलवे का दावा यह है कि अगर एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें किसी भी कारण वश आमने सामने हों तो कवच टेक्नोलॉजी ट्रेन की स्पीड को कम कर इंजन में तुरंत ब्रेक लगाती है। इससे ये दोनों ट्रेनें ही आपस में टकराने से बच जाएंगी।सरकार ने वर्ष 2012 में ही इस सिस्टम को विकसित करने की प्रक्रिया को शुरू की थी और इसका ट्रायल 2014 में ही शुरू हुआ था। इसके अत्याधुनिक अवतार को हाइऐस्ट सेफ्टी और रिलायबिलिटी स्टैंडर्ड में ही रखा गया है।

अब सवाल यह है कि क्या कोरोमंडल एक्सप्रेस में यह सिस्टम फिट था या नहीं?

अगर था तो कवच ने अपना काम आखिर क्यों नहीं किया। अगर नहीं था तो आख़िर इतनी अहम ट्रेन में अब तक इसे क्यों नहीं लगाया गया है। यह हमारे देश की सबसे बेहतरीन ट्रेनों में से एक मानी जाती है। कोरोमंडल एक्सप्रेस के हादसे ने एक बार फिर से ट्रेनों की सेफ्टी पर काफ़ी बड़े सवालिया निशान लगा दिए हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here