AIN NEWS 1: बता दें रूस-यूक्रेन के बीच 9 महीनों से जंग जारी है…मगर इस जंग का एक फायदा भारत को ये है कि भारत सरकार को रूस से काफ़ी सस्ता पेट्रोलियम क्रूड ऑयल अभी मिल रहा है। लेकिन क्रूड ऑयल सस्ते में मिलने के बावजूद आम आदमी के लिए पेट्रोल-डीजल अभी भी सस्ता नहीं हुआ है।
हां, हिमाचल और गुजरात में चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद अब राहत की उम्मीद काफ़ी बढ़ गई है।
रूस सस्ते में अपना क्रूड ऑयल बेच रहा है, और हमारी सरकार जमकर इसे खरीद रही है। हमने 2021-22 में पूरे साल में रूस से जितना क्रूड खरीदा था, 2022-23 के सिर्फ 6 महीनों में उससे 386% ज्यादा क्रूड रूस से खरीदा है। अक्टूबर माह में तो इराक के बजाय रूस हमारा सबसे बड़ा क्रूड ऑयल का सप्लायर बन गया।
सिर्फ यही नहीं, यह खरीद भी अब बड़ी तेजी से चल रही है। आमतौर पर कारोबारी साल के शुरुआती 6 महीनों में सरकार देश की जरूरत के क्रूड ऑयल का 47-48% ही आयात किया करती है। अमूमन आयात बाद के 6 महीनों में ज्यादा तेज होता है। मगर इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच में सरकार 54% से ज्यादा क्रूड का आयात भारत सरकार कर चुकी है।
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— 𝐀𝐈𝐍 𝐍𝐄𝐖𝐒 𝟏 (@ainnews1_) November 10, 2022
मगर सस्ते क्रूड ऑयल से भरते देश के तेल भंडारों का फायदा आम आदमी की जेब तक अभी भी नहीं पहुंच रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध फरवरी से ही शुरू हुआ था। मगर फरवरी से अक्टूबर के बीच सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम में सिर्फ एक बार ही कटौती की है।
22 मई को एक्साइज ड्यूटी घटाकर केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों में अब राहत दी थी। हालांकि अब ये उम्मीद जरूर है कि तेल कंपनियों का बढ़ता प्रॉफिट मार्जिन देख पेट्रोल और डीजल की कीमत में 2 रुपए प्रति लीटर तक की भी राहत दी जा सकती है।
हम आपको बताते हैं, कैसे भारत के क्रूड ऑयल आयात पर रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पड़ा है और आम आदमी को इससे राहत मिलने की उम्मीद क्यों जगी है।
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पहले समझिए, कैसे बढ़ रहा है रूस से क्रूड ऑयल का अभी आयात
इस साल लगभग 12.69% बढ़ चुका है रूस से क्रूड का आयात
भारत हर साल औसतन 21 करोड़ मीट्रिक टन से 23 करोड़ मीट्रिक टन के बीच ही क्रूड ऑयल का आयात करता है।
सरकार की नीति है कि किसी एक सप्लायर से आयात के बजाय इसे कई देशों में बांटा जाए, ताकि कीमतों में भी फायदा मिल सके। मगर 2017-18 से 2019-20 के बीच भारत के कुल क्रूड आयात में रूस की हिस्सेदारी कभी भी 2% तक भी नहीं पहुंची थी।
2020-21 में यह हिस्सेदारी 2.01% तक पहली बार पहुंची और 2022-23 में तो यह हिस्सेदारी 6 महीने में ही 14.7% तक पहुंच चुकी है। यानी एक साल में ही 12.69% की इसमें बढ़ोतरी हुई है।
2021-22 के पूरे साल में हमने रूस से 18 हजार करोड़ रुपए का क्रूड ऑयल खरीदा था। इस दौरान हमने अपने सबसे बड़े सप्लायर इराक से कुल 2.26 लाख करोड़ रुपए का क्रूड खरीदा था।
2022-23 के 6 महीनों में ही हम रूस से 89 हजार करोड़ रुपए का क्रूड ऑयल खरीद चुके हैं। यानी पिछले साल के मुकाबले 386% ज्यादा।
सरकार इस साल तेजी से खरीद रही है क्रूड ऑयल, 6 महीने में ही 54% से ज्यादा का आयात अभी हो चुका है
भारत सरकार के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के आंकड़ों से पता चलता है कि हमने 2020-21 के कोरोना काल में 19.65 करोड़ मीट्रिक टन का कुल क्रूड का आयात किया था जो पिछले 5 साल में सबसे कम था।
वहीं 2019-20 में 22.70 करोड़ मीट्रिक टन का क्रूड आयात 5 साल में सर्वाधिक था। 2021-22 में हमने 21.24 करोड़ मीट्रिक टन क्रूड ही मंगाया है।
2022-23 के अप्रैल से सितंबर तक यानी 6 महीनों में हम 11.54 करोड़ मीट्रिक टन क्रूड का आयात कर चुके हैं। अगर 2021-22 के आयात को ही इस साल का भी आयात लक्ष्य मानें तो अपनी जरूरत का 54% से ज्यादा क्रूड हम अभी तक मंगवा चुके हैं।
खरीद की यह स्पीड बहुत तेज है। 2017-18 से 2019-20 तक के आंकड़ों की पड़ताल बताती है कि अमूमन कारोबारी साल के शुरुआती 6 महीनों में कुल आयात लक्ष्य का 45 से 49% क्रूड ही अब तक मंगाया जाता है।
इसी प्रकार आयात बिल में क्रूड की हिस्सेदारी भी अभी ज्यादा
सरकार का ध्यान अभी सस्ते क्रूड से अपने तेल भंडार भरने पर ज्यादा है, इस बात का एक प्रमाण और है।
मिनिस्ट्री ऑफ ट्रेड एंड कॉमर्स के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 सालों में कभी भी भारत के कुल आयात बिल में क्रूड ऑयल की हिस्सेदारी 22% से ज्यादा नहीं रही थी। मगर 2022-23 के 6 महीनों में ही हम क्रूड ऑयल के आयात पर जो रकम खर्च कर चुके हैं, वह अब तक के आयात बिल का लगभग 24% से भी ज्यादा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेंट क्रूड 100 डॉलर प्रति बैरल तक…रूस मात्र 25 डॉलर प्रति बैरल दे रहा है
रूस पर प्रतिबंध के क्रम में अमेरिका व यूरोपीय देश उसके क्रूड ऑयल की प्रति बैरल अधिकतम कीमत फिक्स करने की तैयारी में लगा है। इसीलिए रूस जल्दी से जल्दी अन्य देशों को अपना क्रूड ऑयल बेचना चाहता है।
रूस पर प्रतिबंध के क्रम में अमेरिका व यूरोपीय देश उसके क्रूड ऑयल की प्रति बैरल अधिकतम कीमत फिक्स करने की तैयारी में है। इसीलिए रूस जल्दी से जल्दी अन्य देशों को अपना क्रूड ऑयल बेचना चाहता है।
और अभी रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पेट्रोलियम क्रूड ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों जबरदस्त उथल-पुथल मची हुई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी बेंचमार्क बेंट क्रूड ऑयल की कीमत 90 से 100 डॉलर प्रति बैरल तक है। अलग-अलग देशों से आयात करने में यह कीमत 75 से 80 डॉलर प्रति बैरल तक भी मिल जाती है। मगर अमूमन कीमतें इसके नीचे नहीं जातीं।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के चलते रूस ने अपने क्रूड ऑयल की कीमतें घटाकर 18 से 25 डॉलर प्रति बैरल तक कर दी हैं।
इस कम कीमत की वजह से भारत ने रूस से क्रूड का आयात काफ़ी बढ़ा दिया है। अब तक भारत का सबसे बड़ा क्रूड सप्लायर इराक रहा है।
रूस से आयात बढ़ाने के बाद इराक पर भी दबाव बढ़ गया है। पिछले दिनों इराक ने भी अपने क्रूड ऑयल की कीमतें भारत के लिए काफ़ी कम की हैं। कुछ क्रूड ऑयल्स तो वह रूस से भी 9 डॉलर प्रति बैरल कम कीमत पर हमे दे रहा है।
वैसे तो चुनाव आते ही चलने लगी पेट्रोल-डीजल कीमतें घटाने की हवा
आज की तारीख में भारत में पेट्रोल की कीमत मुंबई में 111.35 रुपए प्रति लीटर, कोलकाता में 106.03 रुपए प्रति लीटर और चेन्नई में 102.63 रुपए प्रति लीटर है। महानगरों में सबसे कम कीमत दिल्ली में है और यहां भी पेट्रोल 96.72 रुपए प्रति लीटर है।
आज की तारीख में भारत में पेट्रोल की कीमत मुंबई में 111.35 रुपए प्रति लीटर, कोलकाता में 106.03 रुपए प्रति लीटर और चेन्नई में 102.63 रुपए प्रति लीटर है। महानगरों में सबसे कम कीमत दिल्ली में है और यहां भी पेट्रोल 96.72 रुपए प्रति लीटर है।
भारत सरकार ने मार्च के अंत से ही रूस से क्रूड का आयात बढ़ाना शुरू कर दिया था। मगर सस्ते क्रूड का फायदा आम आदमी को अभी तक नहीं दिया गया।
ज्ञात हो आखिरी बार 22 मई को पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम की गई थीं। यह भी केंद्र सरकार के एक्साइज ड्यूटी घटाने की वजह से ही थी। तेल कंपनियों ने कीमतों में कोई कटौती नहीं की थी।
जानकारों के मुताबिक अब तक तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे क्रूड का हवाला देते हुए पेट्रोल और डीजल दोनों की बिक्री पर ही अपना नुकसान दर्शा रही थीं। मगर अब पेट्रोल पर करीब 6 रुपए प्रति लीटर का सरप्लस कंपनियों को मिल रहा है।
इसकी वजह से आम आदमी के लिए भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम करने का दबाव कंपनियों पर काफ़ी बढ़ा है। साथ ही हिमाचल और गुजरात में चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद कीमतों में कटौती के कयास ज्यादा बढ़ गए हैं।
माना जा रहा है कि पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमत 2 रुपए प्रति लीटर तक घटाई जा सकती है।
रूस से आयात बढ़ा तो सबसे ज्यादा नुकसान यूएसए का, नाइजीरिया हमारे अब टॉप-5 सप्लायर्स से बाहर
पारंपरिक तौर पर भारत के सबसे बड़े क्रूड सप्लायर देशों में इराक, सऊदी अरब, यूएई, यूएसए और नाइजीरिया रहे हैं। 2021-22 के टॉप-5 सप्लायर देश यही थे। इसके अलावा सिंगापुर और कुवैत भी इसके बड़े सप्लायर हैं।
मगर 2022-23 में भारत के कुल आयात में रूस की हिस्सेदारी बढ़ने का सबसे ज्यादा नुकसान यूएसए को हुआ है। उसकी आयात में हिस्सेदारी 3.86% घट गई है। जबकि नाइजीरिया तो टॉप-5 सप्लायर्स से ही बाहर हो गया है।