AIN NEWS 1: गाजियाबाद के मेजर आशाराम त्यागी…। 1962 के भारत-पाक युद्ध में उन्होने दुश्मन देश के छुड़ा दिए थे छक्के। पाकिस्तान की 15 किलोमीटर सीमा में अंदर तक घुसकर दुश्मन को किया था ढेर उनके दुश्मन देश के टैंकों को नेस्तानाबूत कर दिया। और बाद में बंकर में छिपे हुए पाकिस्तानी सैनिकों की गोलियां अपने सीने पर खाकर मेजर आशाराम अपने देश के लिए शहीद हो गए थे। इन्हीं आशाराम त्यागी की याद में आज उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई है। जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा आज शाम 3 बजे इसका अनावरण भी करने के लिए आ रहे हैं।
इस का अनावरण जम्मू कश्मीर के LG करेंगे
शहीद मेजर आशाराम त्यागी की प्रतिमा गाजियाबाद में नंदग्राम क्षेत्र स्थित आदर्शनगर में ही स्थापित की गई है। इन्हीं के नाम पर यहां एक पार्क भी बना है, जिसमें ये प्रतिमा लगाई गई है। इसके अनावरण मे मुख्य अतिथि जम्मू और कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा हैं। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में केंद्रीय राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह, राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल, MLC अश्वनी त्यागी, पूर्व मंत्री बालेश्वर त्यागी समेत सभी जिले के विधायक और अन्य प्रमुख जनप्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे । त्यागी समाज से जुड़ी हुईं सभी संस्थाओं ने मिल-जुलकर इस कार्यक्रम का आयोजन किया है।
जाने मेजर आशाराम ने सीने पर गोलियां खाईं, पेट में संगीन घोंपा
ज्ञात हो मेजर आशाराम त्यागी मूल रूप से गाजियाबाद जिले के मोदीनगर क्षेत्र में फतेहपुर गांव के रहने वाले थे। उनका जन्म 2 जनवरी 1939 को ही हुआ। 17 दिसंबर 1961 को वे सिर्फ 20 साल की उम्र में ही इंडियन आर्मी की जाट रेजिमेंट में भर्ती हो गए थे। आशाराम त्यागी को सेना में उस समय तक सिर्फ 4 साल हुए थे कि 1965 में भारत-पाक युद्ध छिड़ गया। और इस युद्ध में जाट रेजिमेंट को दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने की जिम्मेदारी मिली। भारतीय सेना ने 6 सितंबर 1965 को पाकिस्तान की इच्छोगिल नहर के पश्चिम किनारे के बाटानगर पर अपना कब्जा कर लिया था। 21 सितंबर 1965 की रात को भारतीय सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले डोगरई गांव को छुड़ाने चले तो वहा आमने-सामने से खूब गोलियां चलीं। आशाराम त्यागी को भी दो गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने एक गोली पाकिस्तानी मेजर पर चलाई और फिर अपने संगीन ने हमला कर दिया। इस हमले में आशाराम को पॉइंट ब्लैंक रेंज से ही दो गोलियां फिर से लगीं। जबकि पाकिस्तानी सैनिक ने उनके पेट में संगीन भी घोंप दी। आशाराम का पेट पूरी तरह फट चुका था, खून बह रहा था। अंतत: 25 सितंबर को अस्पताल में इलाज के दौरान ही आशाराम त्यागी शहीद हो गए। उनकी शहादत से ठीक तीन महीने पहले ही आशाराम की शादी हुई थी।
जाने मोदीनगर में है पैतृक गांव फतेहपुर
शहादत के चार दिन बाद जब मेजर आशाराम त्यागी का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव फतेहपुर (मोदीनगर) में आया तो दर्शन के लिए एक बहुत बड़ा जन सैलाब उमड़ पड़ा था। आशाराम के बड़े भाई परशुराम त्यागी बताते हैं, ‘भैया ने अंतिम सांस लेने से पहले डॉक्टरों से कहा था- मेरे घर से जो भी आए, उसको सूचना देना कि मैंने पीठ पर नहीं, सीने पर गोलियां खाई हैं। इसलिए दुख मनाने की जरूरत नहीं है । ‘
मेजर आशाराम त्यागी की याद में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गांवों में उनकी प्रतिमाएं लगाई गईं। हर साल 2 जनवरी को उनकी याद में मोदीनगर में रेलवे रोड पर एक कार्यक्रम भी आयोजित होता है। गांव फतेहपुर में भी मेजर आशाराम की प्रतिमा के पास ही उनकी मां बसंती देवी की समाधि भी बनी हुई है।