AIN NEWS 1: दिल्ली हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में निदेशकों की जिम्मेदारी को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि जो निदेशक स्वयं चेक पर हस्ताक्षर करता है, वह केवल यह कहकर कि उसने बाद में इस्तीफा दे दिया था, परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द नहीं करवा सकता, खासकर तब जब उसका इस्तीफा विवादित हो।
यह फैसला न्यायमूर्ति संजीव नरूला की एकल पीठ ने सुनाया, जिसमें उन्होंने चेक बाउंस से जुड़े मामलों में निदेशकों की जवाबदेही और भूमिका को विस्तार से समझाया।
🔹 क्या है पूरा मामला?
यह मामला मेसर्स सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड, जो कि एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) है, द्वारा दायर किया गया था। कंपनी ने दो अन्य कंपनियों —
साउथ सेंटर ऑफ एकेडमी प्राइवेट लिमिटेड
संपूर्ण एकेडमी प्राइवेट लिमिटेड
और उनके निदेशकों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू की थी।
शिकायत के अनुसार, इन दोनों कंपनियों को सिंह फिनलीज द्वारा ऋण (loan facilities) प्रदान की गई थीं। जब समय पर भुगतान नहीं हुआ, तो कर्ज की अदायगी के लिए जारी किए गए चेक बैंक में बाउंस हो गए।
इसके बाद, सिंह फिनलीज ने नियमानुसार वैधानिक डिमांड नोटिस भेजे और फिर NI Act की धारा 138, धारा 141 के साथ पढ़ी गई, के तहत आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं।
🔹 याचिकाकर्ता का क्या तर्क था?
इन मामलों में एक निदेशक दिनेश कुमार पांडे ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने अपनी ओर से दायर याचिकाओं में कहा कि—
जिन चेकों के बाउंस होने के आधार पर केस दर्ज किया गया है,
वे चेक उनके निदेशक पद से इस्तीफा देने के काफी समय बाद बाउंस हुए,
इसलिए उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि उन्होंने कंपनी के रोजमर्रा के कामकाज से खुद को अलग कर लिया था और इस्तीफा दे दिया था, इसलिए उन पर जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकती।
🔹 शिकायतकर्ता (NBFC) की दलील
वहीं, सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि—
याचिकाकर्ता सिर्फ नाममात्र का निदेशक नहीं था, बल्कि
वही मुख्य निदेशक (Key Director) था,
उसी ने कर्ज की शर्तों पर बातचीत की,
ऋण से जुड़े दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए,
और सबसे अहम बात, चेक पर खुद हस्ताक्षर किए।
शिकायतकर्ता ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का इस्तीफा न केवल विवादित है, बल्कि उसका समय भी संदेह पैदा करता है।
🔹 हाईकोर्ट का कानूनी विश्लेषण
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में NI Act की धारा 141 की गहराई से जांच की। यह धारा बताती है कि कंपनी द्वारा किए गए अपराधों के लिए कौन-कौन जिम्मेदार माना जाएगा।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले SMS Pharmaceuticals Ltd. बनाम नीता भल्ला का हवाला देते हुए कहा कि—
जो व्यक्ति चेक का हस्ताक्षरकर्ता होता है, वह स्वतः ही उस लेनदेन के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चेक पर हस्ताक्षर करने वाला निदेशक एक विशेष श्रेणी (special position) में होता है, क्योंकि उसकी भूमिका सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि वित्तीय निर्णयों से सीधे जुड़ी होती है।
🔹 क्यों नहीं मिला राहत?
हाईकोर्ट ने कुछ अहम बिंदुओं पर जोर दिया—
याचिकाकर्ता ने ऋण वार्ता, दस्तावेजों के निष्पादन और चेक साइन करने में सक्रिय भूमिका निभाई।
इस्तीफा पूरी तरह विवादित है और अभी यह तय नहीं हुआ है कि वह वैध है या नहीं।
इस्तीफे का समय — जो कि पहले डिफॉल्ट के तुरंत बाद का बताया गया — उसकी सच्चाई पर सवाल खड़ा करता है।
इस स्तर पर, यानी धारा 482 CrPC के तहत, कोर्ट सबूतों की गहराई से जांच नहीं कर सकता।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन मामलों में पहले कार्यवाही रद्द की गई थी (जैसे राजेश विरेन शाह बनाम रेडिंगटन इंडिया लिमिटेड), वे तथ्यात्मक रूप से इस केस से अलग थे।
🔹 हाईकोर्ट का अंतिम फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि—
शिकायतों में अपराध के सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं,
याचिकाकर्ता न सिर्फ निदेशक था, बल्कि चेक का हस्ताक्षरकर्ता भी था,
इसलिए इस स्तर पर केस को रद्द नहीं किया जा सकता।
अंततः कोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं और यह स्पष्ट किया कि—
याचिकाकर्ता अपने इस्तीफे, कंपनी पर नियंत्रण की कमी या अन्य बचाव पक्ष की दलीलें ट्रायल के दौरान पेश कर सकता है, न कि कार्यवाही रद्द कराने के लिए।
🔹 क्यों अहम है यह फैसला?
यह फैसला उन निदेशकों के लिए एक स्पष्ट संदेश है जो चेक साइन करने के बाद जिम्मेदारी से बचने के लिए इस्तीफे का सहारा लेते हैं। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि—
चेक पर हस्ताक्षर = कानूनी जिम्मेदारी,
और विवादित इस्तीफा इस जिम्मेदारी से तुरंत राहत नहीं दिला सकता।
🔹 केस विवरण
केस टाइटल: दिनेश कुमार पांडे बनाम मेसर्स सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड व अन्य
केस नंबर: CRL.M.C. 8175/2025, 8176/2025, 8177/2025
कोर्ट: दिल्ली हाईकोर्ट
पीठ: न्यायमूर्ति संजीव नरूला
🔹 ENGLISH
The Delhi High Court has clarified that a director who signs a cheque cannot evade criminal liability under Section 138 of the NI Act merely by citing a disputed resignation. The court emphasized that cheque signatories hold a special responsibility in company transactions, especially when they have actively negotiated loans and executed financial documents, making this ruling significant for cheque bounce cases involving company directors.



















