Ainnews1.com:– शुक्रवार सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया। कि ऐसे जघन्य अपराध जो निजी प्रकृति के नहीं, और जिनका समाज पर बेहद गंभीर प्रभाव पड़ता है, उन मामलों में अपराधी और शिकायतकर्ता या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर एफआईआर को रद्द नहीं कर सकते है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता के साथ समझौते के आधार पर ही गंभीर और जघन्य अपराधों से संबंधित प्राथमिकी या शिकायतों को रद्द करने का आदेश एक ‘खतरनाक मिसाल’ कायम कर सकता है। जहां आरोपी से पैसे ऐंठने के लिए भी परोक्ष कारणों से शिकायतें दर्ज कराई जाएंगी। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और वी. रामसुब्रमण्यन की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ‘इसके अलावा आर्थिक रूप से मजबूत अपराधी हत्या, बलात्कार, दुल्हन को जलाने आदि जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में भी सूचना देने वालों और शिकायतकर्ताओं को खरीदकर,उनके साथ समझौता करके कोर्ट से बरी हो जाएंगे.’अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द किया। जिसमें मार्च 2020 में आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित अपराध के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था. अदालत के पिछले फैसलों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत एक प्राथमिकी,आपराधिक शिकायत या आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करने से पहले उच्च न्यायालय को चौकन्ने रहना चाहिए। यहा तक अपराध की प्रकृति और गंभीरता के बारे में विचार करना जरूरी हैं।
‘जघन्य या गंभीर अपराध, जो प्रकृति में निजी नहीं हैं और समाज पर गंभीर प्रभाव डालते हैं, ऐसे मामलों को अपराधी और शिकायतकर्ता और / या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हत्या, बलात्कार, सेंधमारी, डकैती और यहां तक कि आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे अपराध निजी नही हैं। और ऐसे अपराध समाज के खिलाफ हैं. किसी भी परिस्थिति में समझौता होने पर अभियोजन को रद्द नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ये समाज के खिलाफ अपराध के दायरे में आते है।