AIN NEWS 1: बता दें उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की नालियों में बहता हुआ कीचड़ भी सोना उगल रहा है. यहां एक जगह ऐसी है, जहां कचरे में सोना बहता मिल जायेगा. हर रोज इस कचरे में सोना तलाशने वालों की काफ़ी ज्यादा भीड़ रहती है. कचरे से मिलने वाले सोने को बेचकर 100 से अधिक परिवार अपनी आजीविका यहां चला रहे हैं. कुछ लोग तो यह काम लगभग 45 साल से कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इस काम को करने वाले बताते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो श्मशान घाट के पास नदी से भी सोना तलाशने का काम किया करते हैं.
गोरखपुर शहर मे घंटाघर स्थित सोनारपट्टी में जेवरात की कारीगरी करने वालों की सैकड़ों दुकाने हैं. इस जगह पर कारीगरी करते वक्त सोने के छोटे छोटे कण अक्सर छिटककर कचरे में चले जाते हैं. काम करने के दौरान औजार आदि में भी कई छोटे कण चिपक जाते हैं. ये कण धुलाई के दौरान एसिड में मिल जाते हैं और बाद में कारीगर इन्हें खोजने पर ज्यादा ध्यान नहीं देते और यह एसिड भी फेंक देते हैं.
जाने तेजाब और पारे से गलाकर कचरे से निकालते हैं सोना
यह एसिड बहकर नाली में ही चला जाता है. इसके साथ बहकर जाने वाले ये सोने के कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें दोबारा खोजना लगभग मुश्किल भरा है. इन कणों को तलाश कर पाना सामान्य तौर पर नामुमकिन है. ऐसे में शहर के सैकड़ों डोम जाति के लोग हर रोज सुबह कारीगरों की दुकानों के बाहर के नाली की कीचड़ को इकट्ठा करते हैं. इसे निहारी बोला जाता है. डोम जाति के लोग कीचड़ को एक तसले में भरकर नाली के ही पानी से इसे साफ भी करते रहते हैं. यहां घंटों तक कीचड़ को छाना जाता है. इसमें से मोटे कचरे को निकाल देते हैं. कड़ी मेहनत के बाद आखिर में बचे कचरे को वो तेजाब और पारे से गला दिया जाता है. इसके बाद कचरे से नाममात्र का सोना निकलता है, जिसे यह लोग दुकानदार को बेच देते हैं. यही इन लोगों की आमदनी का जरिया है.
यहां बंजारों का है खानदानी पेशा
बताया जा रहा है कि पहले यह काम खासकर नागपुर और झांसी आदि जगहों से आए बंजारे ही करते थे, लेकिन एक से दो घंटे की मेहनत में दो-चार सौ रुपए की कमाई को देख इन दिनों डोम जाति के लोगों ने भी नाली से सोना तलाशने का यह काम शुरू कर दिया है. हमने कचरे से सोना तलाशने वाले लोगों से बात की तो पता चला कि शहर में सैकड़ों लोग यह काम करते हैं. इस काम में ज्यादातर महिलाएं भी शामिल हैं. कई महिलाएं लंबे समय से कर रही है यह काम।
कुछ लोग नदी से भी निकालते हैं सोना
बीते करीब 45 साल से कचरे से सोना तलाशने का काम कर रहे लोगों का कहना है कि इस काम में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो श्मशान घाट स्थित नदी से भी सोना तलाशते हैं.यह लोग बताते हैं कि दाह संस्कार के दौरान ज्यादातर महिलाओं के शव से जेवरात नहीं निकाले जाते हैं. ऐसे में दाह संस्कार के बाद जब नदी में अस्थि विसर्जन होता है तो उसमें जेवरात आदि भी रहते हैं. अस्तियों की राख पानी में डालते ही बह जाती है, लेकिन जेवरात पानी में ही डूब जाते हैं, जिन्हें यह लोग खोज निकालते हैं.
जान ले हजारों में बिकता है दुकान से निकलने वाला कचरा
सोना तलाशने वाले लोगों का कहना है कि हम सभी के घरों में सफाई के बाद यह कचरा फेंक दिया जाता है, लेकिन सोने के कारीगर की दुकानों पर कचरा फेंका नहीं जाता, बल्कि उसे एक डिब्बे में इकट्ठा किया जाता है. जब यह डिब्बे भर जाते हैं तो इन डिब्बों में भरे कचरे की कीमत भी हजारों में होती है. इसे कचरे को भी यह लोग बाकायदा रेट तय कर खरीद लेते हैं और फिर उसमें से सोना तलाशते हैं.
मगर कुछ लोगो का कहना है गंदा काम है, सब लोग नहीं कर सकते
इस काम को 40 साल से कर रहीं रजिया बताती हैं कि मेरे पति दिव्यांग हैं. परिवार में और कोई भी कमाने वाला नहीं है. इसी काम के जरिए रोज वह दो-चार सौ रुपए की आमदनी हो जाती है. इसी से उसके परिवार का खर्च चलता है. वहीं गोपाल ने बताया कि वे इस काम को लगभग 15 साल से कर रहे हैं. तीन से चार घंटे की मेहनत के बाद काफ़ी अच्छी कमाई हो जाती है, चूंकि गंदा काम है, इसलिए यह सभी लोग नहीं कर सकते.