AIN NEWS 1 लखनऊ: बता दें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने समाजवादी पार्टी के संस्थापक और धरतीपुत्र के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण देने का ऐलान कर दिया है। पिछले साल 10 अक्टूबर को मुलायम सिंह यादव का लंबी बीमारी के बाद दुखद निधन हुआ था। उनके निधन के बाद ही यह मांग उठी थी कि ‘नेता जी’ को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाए। लेकिन किसी को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार इतनी जल्दी मुलायम सिंह यादव को पद्मविभूषण से इस प्रकार सम्मानित करेगी। मुलायम सिंह यादव को पद्मविभूषण के अपने सियासी मायने भी हैं। पिछले कुछ सालों में आपने देखा की बीजेपी यूपी में ओबीसी पर मजबूत पकड़ बनाने में कामयाब रही है लेकिन अब भी पिछड़ों में सबसे ज्यादा प्रभावशाली जाति यादव पर उसका कोई खास जादू अभी तक नहीं चल पाया है। मोदी सरकार का ये दांव उसी यादव वोट को सपा से छिटकाने की है यानी प्रतिद्वंद्वी के सबसे लॉयल वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की एक और कोशिश ही है। दरअसल मुलायम सिंह यादव का व्यक्तित्व दलगत राजनीति के बिलकुल परे था, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन भारतीय जनता पार्टी का यह फैसला इस ओर भी संकेत कर रहा है कि मुलायम सिंह यादव की विरासत पर अधिकार की लड़ाई मैनपुरी लोकसभा चुनाव के साथ ही खत्म नहीं हुई। पद्म सम्मान का ऐलान करके भारतीय जनता पार्टी ने यादव वोटों और मुलायम सिंह यादव के साथ दिल से जुडे़ एक बडे़ वर्ग को अपनी ओर खींचने की कोशिश की है।
जाने मैनपुरी जीतने में कामयाब हुई थी सपा
बीजेपी पूरे जी-जान से मिशन 2024 की तैयारी में जुटी हुई है। पार्टी जान चुकी है कि अब चुनावी समर के 400 कुछ दिन ही बचे हुए हैं। हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गाजीपुर से लोकसभा प्रवास कार्यक्रम की शुरुआत भी की। लोकसभा प्रवास के केंद्र में वे 14 लोकसभा सीटें है जिन्हें बीजेपी हार चुकी है। इनमें एक मैनपुरी भी है जो मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई और वहां से सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव को जिताने में कामयाब हुए।
जाने जानिए क्या हैं सियासी मायने
लोकसभा की 543 सीटों में से 80 सीटें यूपी से ही आती हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस लोकसभा सीट से ही सांसद हैं। ऐसे में वह चाहेंगे कि हर हाल में हारी हुई लोकसभा सीटों को बीजेपी फिर से जीते। हारी हुई 14 सीटों में 3 सीटें मैनपुरी, संभल, मुरादाबाद सपा के पास गईं। इन 3 सीटों पर जीत तभी मुमकिन है जब मुलायम सिंह यादव से लगाव रखने वाली जनता के दिल में बीजेपी अपनी कुछ पैठ बनाए। मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्मविभूषण देना बहुत कुछ बीजेपी के लिए सपा के पारंपरिक वोटर के रुख को अपनी तरफ नरम कर सकता है। खासकर ऐसे वोटर को जिसका अखिलेश यादव से कुछ हद तक मोहभंग हो गया हो और जो सपा का मजबूत राजनीतिक भविष्य न देखता हो।
जाने मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक करियर
1960 में मुलायम सिंह ने पहली बार भारतीय राजनीति में आपने कदम रखे। 1967 में मुलायम उत्तर प्रदेश के विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक बने। जब 1975 में इंदिरा गांधी ने आपाताल लगाया तो मुलायम सिंह काफ़ी सुर्खियों में आए। इस दौरान उन्हें 19 महीने तक हिरासत में भी रखा गया। 1980 में लोकदल के वह अध्यक्ष रहे। जनता दल पार्टी के साथ भी काम किया। जब जनता दल का विभाजन हुआ तो मुलायम सिंह यादव ने अपनी समाजवादी पार्टी की नींव रखी। 1989, 1993, और 2003 में तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री बनें।
जाने रक्षा मंत्री की कुर्सी भी संभाली
1995 में मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद मुलायम का कद सियासत में गिरा नहीं बल्कि वे और बड़े बनकर अपने दम पर खड़े हुए। 1996 में वे मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से 11वीं लोकसभा के सदस्य भी चुने गए। जब केंद्र में किसी पार्टी को भी बहुमत नहीं मिला तो मुलायम किंगेमकर बने। तीसरे मोर्चे की सरकार में रक्षा मंत्री बने और अपनी पार्टी के कई नेताओं को केंद्र में भी मंत्री उन्होने बनवाया। हालांकि उनका यह कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं रहा, क्योंकि 1998 में सरकार ही गिर गई। इसके बाद मुलायम सिंह ने 29 अगस्त 2003 को तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 11 मई 2007 तक राज्य की सत्ता संभाली।