दवाओं की बर्बादी रोकने के लिए सरकार ने की बड़ी तैयारी, 4 में से 3 परिवार फेंक देते हैं बची दवाएं
दवाओं की कीमतों से लेकर दवाओं की बर्बादी रोकने और खतरनाक दवाओं को बाजार से आउट करने तक सरकार लगातार नए नए कदम उठा रही है। छोटी-बड़ी बीमारियों में सभी परिवारों में दवाई खाई जाती है। आजकल के माहौल में तो दवाएं खरीदने के लिए बाजार भी जाने की जरूरत नहीं पड़ती है घर बैठे ऑनलाइन या ऑर्डर करने भी दवाईयां मंगाई जा सकती हैं। ऐसे में अक्सर ये भी होता है कि दवा पूरी खत्म होने से पहले ही हम ठीक हो जाते हैं और बची हुई दवा फेंकनी पड़ती है। लेकिन अब एक सर्वे में बची दवाओं को संभालने को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है।
लोकल सर्कल्स के सर्वे में बड़ा खुलासा
लोकल सर्कल्स के सर्वे के मुताबिक 4 में से 3 परिवारों का कहना है कि वो बची हुई दवा फेंकने को मजबूर हैं। सर्वे में शामिल परिवारों ने कहा है कि पिछले 3 बरसों में खरीदी गई 70 फीसदी बची हुई दवाओं को 4 में से 3 घरों ने फेंक दिया। सर्वे में शामिल परिवारों में से आधों का कहना है कि केमिस्ट जरूरत से ज्यादा मात्रा में दवाएं बेचते हैं। 18 परसेंट घरों ने कहा कि ई-फार्मेसी की न्यूनतम मात्रा भी जरूरत से ज्यादा है। 29 फीसदी ने कहा है कि वो कुछ दिनों के बाद या बेहतर महसूस होने पर दवा लेना बंद कर देते हैं।
4 में से 3 परिवार फेंकते हैं बची दवाएं
जानकारों का भी कहना है कि बची हुई दवाओं को फेंकना गलत तरीका है और इसके लिए सरकार को नियमों में बदलाव करके दवा की बर्बादी को बचाने का कदम उठाना चाहिए। ऐसे में अब इस सर्वे में ही दवाओं की बर्बादी को बचाने के लिए जो सुझाव निकलकर सामने आए हैं उनके मुताबिक लोग चाहते हैं कि सरकार नियमों में बदलाव करे जिससे केमिस्ट कम मात्रा में दवाइयां बेचें। साथ ही एक महीने के भीतर दवाएं रिटर्न लेने की सुविधा भी मिले।
दवाओं की बर्बादी रोकने के लिए सरकार तैयार
हालांकि कम मात्रा में दवा खरीदने की छूट देने पर सरकार काम कर रही है। इसके लिए हर टैबलेट पर एक्सपायरी डेट समेत सभी जरुरी जानकारियां देने की योजना पर काम जारी है। इसमें QR कोड के जरिए भी दवा की सारी जानकारी मरीजों को मिलने का इंतजाम करने की भी कोशिश की जाएगी। इस योजना पर कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री काम कर रही है। सरकार लोगों की सेहत सुधारने पर लगातार काम कर रही है। हाल ही में 14 दवाओं को बैन करने का फैसला भी इसी के मद्देनजर किया गया था। इन दवाओं को बैन करने से लोगों की सेहत का तो ख्याल रखा जा सकेगा लेकिन इससे भी अरबों रुपए की दवाएं अब बेकार हो गई हैं।