AIN NEWS 1: दिल्ली की जहरीली हवा से राहत दिलाने के लिए सरकार ने इतिहास में पहली बार ‘क्लाउड सीडिंग’ यानी कृत्रिम बारिश का प्रयोग किया। इस अभियान से उम्मीद थी कि प्रदूषण में कुछ कमी आएगी और हवा साफ़ होगी। लेकिन, तीन ट्रायल के बाद न तो आसमान खुला और न ही राहत की बारिश हुई। करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद परिणाम बेहद सीमित रहे।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें विमान से बादलों में विशेष रसायन छोड़े जाते हैं ताकि उनमें मौजूद नमी को बारिश में बदला जा सके। दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर के सहयोग से इस प्रयोग को अंजाम दिया। इसका उद्देश्य था – प्रदूषण के स्तर को कम करना और हवा की गुणवत्ता में सुधार लाना।
तीन ट्रायल और नतीजा?
मंगलवार को दिल्ली सरकार ने दो ट्रायल किए, लेकिन इनमें से किसी ने भी दिल्ली में बारिश नहीं कराई। IIT कानपुर की टीम ने बताया कि पड़ोसी इलाकों – नोएडा में 0.1 मिमी और ग्रेटर नोएडा में 0.2 मिमी की हल्की बूंदाबांदी दर्ज की गई। यह डेटा ‘Windy’ ऐप से लिया गया।
पहले ट्रायल में IIT कानपुर का Cessna विमान दोपहर 12:13 बजे कानपुर से उड़ा और 2:30 बजे मेरठ में उतरा। इस दौरान खेकड़ा, बुराड़ी, उत्तर करोल बाग, मयूर विहार, सदकपुर और भोजपुर जैसे क्षेत्रों में क्लाउड सीडिंग की गई।
दूसरा ट्रायल 3:45 बजे मेरठ से शुरू हुआ। विमान में 4 किलो सीडिंग मटेरियल था। 4:08 बजे खेकड़ा, फिर बुराड़ी, मयूर विहार, पावी सदकपुर, नोएडा, भोजपुर, मोदीनगर और अंत में मेरठ तक उड़ान भरकर विमान 4:45 बजे वापस उतरा।
प्रत्येक ट्रायल लगभग डेढ़ घंटे तक चला और हर उड़ान में 8 फ्लेयर्स छोड़े गए, जिनका वजन करीब 0.5 किलो था। इनमें ऐसे रासायनिक मिश्रण थे जो बादलों की नमी को बारिश में बदलने में मदद करते हैं।
कितना खर्च हुआ?
अब तक तीन ट्रायल किए जा चुके हैं—पहला 23 अक्टूबर को हुआ था, लेकिन उसमें भी बारिश नहीं हुई थी। तीनों उड़ानों पर कुल ₹1.9 करोड़ रुपये खर्च हुए।
दिल्ली सरकार और IIT कानपुर के बीच हुए समझौते के अनुसार, पांच ट्रायल के लिए ₹3.21 करोड़ का बजट तय किया गया था। लेकिन IIT कानपुर का कहना है कि वह इसी बजट में 9 ट्रायल तक करेगा, क्योंकि यह एक “लाभ-निरपेक्ष अनुसंधान परियोजना” है और इसका मकसद लोगों को स्वच्छ हवा देना है।
प्रदूषण में क्या फर्क पड़ा?
IIT कानपुर की रिपोर्ट के अनुसार, बारिश तो नहीं हुई, लेकिन हल्की नमी के कारण PM2.5 और PM10 के स्तर में थोड़ा सुधार देखा गया।
उदाहरण के तौर पर –
PM2.5: मयूर विहार (221 से 207), करोल बाग (230 से 206), बुराड़ी (229 से 203)
PM10: मयूर विहार (207 से 177), करोल बाग (206 से 163), बुराड़ी (209 से 177)
चूंकि उस समय हवा बहुत कम चल रही थी, वैज्ञानिकों ने माना कि यह सुधार सीडिंग के दौरान बनी नमी की वजह से हुआ, जिसने कुछ प्रदूषक कणों को नीचे बैठा दिया।
नमी की कमी बनी बड़ी चुनौती
IIT कानपुर के वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस पूरे ऑपरेशन के दौरान बादलों में नमी सिर्फ 10–15% थी, जबकि अच्छे परिणाम के लिए कम से कम 40–60% नमी चाहिए होती है। यही वजह रही कि बारिश नहीं हो सकी।
IIT कानपुर के निदेशक प्रो. मनींद्र अग्रवाल ने कहा – “हमारे अनुसार दिल्ली में बारिश नहीं हुई क्योंकि नमी का स्तर बहुत कम था। हालांकि, हमारी टीम डेटा इकट्ठा कर रही है ताकि आने वाले प्रयासों को बेहतर बनाया जा सके। बुधवार को दो और प्रयास किए जाएंगे।”
विशेषज्ञों की राय
IIT दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एमेरिटस मुकेश खरे ने कहा कि “सिर्फ क्लाउड सीडिंग से बिना बारिश के प्रदूषण घटाना मुश्किल है। प्राकृतिक बारिश ही प्रदूषक कणों को नीचे गिराकर हवा को साफ करती है।”
उन्होंने बताया कि सर्दियों में दिल्ली के बादलों में नमी की कमी होती है। सिल्वर आयोडाइड जैसे रासायनों से कुछ हद तक बादलों में प्रतिक्रिया होती है, लेकिन यदि पर्याप्त जलवाष्प नहीं बन पाता, तो बारिश नहीं हो पाती।
खरे ने यह भी कहा कि “केवल नमी बढ़ने से कण भारी तो हो जाते हैं, परंतु PM2.5 जैसे सूक्ष्म कणों को नीचे गिराने के लिए बारिश जैसी ताकत चाहिए। इसलिए प्रदूषण में जो गिरावट दिखी, वह किसी अन्य कारण से भी हो सकती है।”
सरकार की प्रतिक्रिया
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजींदर सिंह सिरसा ने कहा कि यह प्रयोग भारत के लिए एक बड़ा वैज्ञानिक कदम है और भविष्य में इससे बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। उन्होंने कहा – “मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में दिल्ली सरकार प्रदूषण से लड़ने के लिए हर संभव कदम उठा रही है।”
दिल्ली का ‘क्लाउड सीडिंग’ अभियान विज्ञान की एक बड़ी कोशिश जरूर थी, लेकिन नतीजे उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद शहर को राहत की एक भी ठोस बारिश नहीं मिली। फिलहाल वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक “सीखने की प्रक्रिया” है और भविष्य के प्रयासों में सफलता की संभावना बनी हुई है।
Delhi’s ambitious cloud seeding experiment to fight air pollution ended with limited success. The IIT Kanpur-led project spent around Rs 1.9 crore on three sorties, but the city received no rainfall—only traces in Noida and Greater Noida. Experts blamed low moisture levels (10–15%), making conditions unsuitable for artificial rain. Despite no rainfall, PM2.5 and PM10 levels dropped slightly, suggesting minor benefits. With Rs 3.21 crore budget for five trials, this remains Delhi’s biggest scientific climate experiment to improve air quality.



