दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला, निचली अदालतें बिना पूर्व अनुरोध के हाइब्रिड सुनवाई की दें इजाजत
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शहर की निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि वे पक्षकारों द्वारा पूर्व में अनुरोध नहीं किए जाने पर भी उनके समक्ष सूचीबद्ध मामलों की हाइब्रिड (ऑनलाइन और प्रत्यक्ष) सुनवाई की इजाजत हाईकोर्ट ने अपने निर्देश में बताया है कि निचली अदालतें सुनिश्चित करें कि वैवाहिक विवाद, बच्चों को गोद लेने या अभिरक्षा की जिम्मेदारी, यौन अपराध या महिलाओं के खिलाफ हिंसा और ऐसे मामले जिनमें पॉक्सो अधिनियम की धाराएं और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम की धाराएं लागू हैं, उनमें पक्षकारों और उनके वकील के अलावा डिजिटल सुनवाई में कोई और उपस्थित नहीं हो.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में बंद कमरे में सुनवाई हो रही है या न्यायाधीश द्वारा कोई विशेष निर्देश जारी किया गया है, ऐसे मामलों की डिजिटल या प्रत्यक्ष सुनवाई में केवल संबंधित व्यक्ति को ही शामिल होने दिया जाए. दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पांच जून को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि दिल्ली की जिला अदालतें पक्षकारों या उनके वकीलों को हाइब्रिड या वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई में बिना पूर्व अनुरोध के शामिल होने की अनुमति दे सकती हैं.
जानें, क्या होती है हाइब्रिड सुनवाई हाइब्रिड सुनवाई या रिमोट हियरिंग अदालती कामकाज का एक ऐसा मिश्रण है जिसमें पक्षकार, बैरिस्टर, गवाह और न्यायाधीश व इसमें शामिल होने वाले लोग वीडियो लिंक या टेलीफोन कॉन्फ्रेंस कॉल के माध्यम से इसमें शामिल होते हैं और अपना-अपना पक्ष राते हैं. कोरोना महामारी के दौर में इस तरह की अदालतों को भारत में तेजी से विस्तार मिला है. हाइब्रिड सुनवाई में न्यायाधीश हमेशा अदालत कक्ष में शारीरिक रूप से उपस्थित रहेंगे. पार्टियों का कोई भी संयोजन, उनके कानूनी प्रतिनिधि या गवाह तब अदालत कक्ष में भी शारीरिक रूप से उपस्थित हो सकते हैं. बाकी सभी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई में शामिल हो