Monday, December 23, 2024

धनकड़ के उपराष्ट्रपति चयन पर सरकार और विपक्ष में टकराव क्यों ?

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राज चौधरी ( लेखक पत्रकार )

भारतीय जनता पार्टी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखंड का चगन किया है। भारतीय जनता पार्टी की संसदीय दल की बैठक में उक्त निर्णय लिया गया है। निश्चित रूप से यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति और इच्छा को ध्यान में रखते हुए संसदीय बोर्ड ने अगेत निर्णय लिया है। जैसे ही उपराष्ट्रपति पद के लिए धनखड़ के नाम की घोषणा हुई। उसके बाद देशभर में इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई है उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं। राज्यसभा की कार्यवाही के संचालन और निर्णय लेने की समस्त शक्तिया सभापति में निहित होती है। भारतीय जनता पार्टी ने जगदीप धनखड़ के नाम पर विपक्षी दलों को भरोसे में नहीं लिया और एक तरफा उनके नाम की घोषणा कर दी। बहुमत के आधार पर उपराष्ट्रपति पद के लिए धनखड़ का चयन कर लिया है।

पिछले 3 वर्षों के कार्यकाल के देशभर में सबसे चर्चित राज्यपाल के रूप में जगदीप धनखड़ की पहचान बनी है। राज्यपाल के रूप में पश्चिम बंगाल में उन्होंने मंत्रिमंडल और मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए निर्णयों के आधार पर काम करने के स्थान पर अपने स्वयं के विवेक से पश्चिम बंगाल सरकार के निर्णयों को समय-समय पर बदलने या नका क्रियान्वय नहीं होने देने दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तेवरों को ढीला करके राज्यपाल के रूप में उन्होंने वही किया जो वह करना चाहते थे। जिसके कारण राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच लगातार टकराव बना

रहा। राज्यपाल के रूप में पश्चिम बंगाल सरकार के अधिकारियों को सीधा निर्देश देने जनता के बीच जाकर उनकी समस्याएं सुनने, निर्देश देने के कारण 2019 से अभी तक पश्चिम बंगाल सरकार के साथ उनका टकराव बना हुआ है।राजस्थान मूल के ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष

है। जगदीप धनखड़ भी राजस्थान के किशनगढ़ से

आते हैं। संसद के दोनों सदनों में राजस्थान मूल के ही

दो नेताओं के सभापति बनने से एक बड़ा असंतुलन

भी बन रहा है। जगदीप धनखड़ ने पिछले 3 वर्षों में

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में जिस तरह पश्चिम

बंगाल सरकार को घेरकर, भाजपा के लिए अनुकूलता

तैयार करने का काम किया है। निश्चित रूप से वह

भाजपा नेतृत्व के लिए सबसे अनुकूल राज्यपाल

साबित हुए हैं। संसद में जिस तरह से सरकार और

विपक्ष के बीच टकराव बढ़ रहा है। उसको देखते हुए

उच्च सदन में विपक्षियों को पूरी दबंगता के साथनियंत्रित करने तथा समय आने पर कठोर कार्यवाही

करने में संकोच नहीं करने वाले सभापति के रूप में

जगदीप धनखड़ उपयुक्त व्यक्ति और कोई नहीं हो

सकता था। बहुमत के बल पर उपराष्ट्रपति के पद पर

निर्वाचित होने के बाद, उच्च सदन में विपक्षियों को

नियंत्रित करने का काम वह अच्छी तरीके से कर

पाएंगे। सरकार के कामकाज को बिना किसी बाधा के

पूरा कराने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं होगा। पश्चिम

बंगाल के पिछले 3 साल के कार्यकाल में स्पष्ट है।

जगदीप धनखड़ पेशे से वकील है। वकील से

राजनेता बने धनखड़ का राजनीतिक सफर जनता दल

से 1989 में शुरू हुआ था। 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री

वीपी सिंह की सरकार में वह संसदीय राज्यमंत्री बने।

1991 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता लेकर अजमेर

लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, किंतु वह चुनाव हार

गए। 2003 में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो

गए थे। 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें पश्चिम

बंगाल का राज्यपाल बनाकर भेजा था। अति

महत्वकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी

हद तक जाकर कार्य करना, उनके स्वभाव में है।

राज्यपाल के रूप में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का

कार्यकाल को देखते प्रधानमंत्री मोदी ने उच्च सदन को

नियंत्रित करने के लिए कठोर प्रशासक के रूप में श्री

धनखड़ का चयन किया गया है। विपक्षी दलों में इसकी

बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। विपक्ष के एकजुट ना होने

का लाभ सरकार को मिल रहा है। राष्ट्रपति पद के

चुनाव में भी विपक्षी दल एकजुट नहीं हो पाए।

उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा

के सांसद ही मतदाता होते है। ऐसी स्थिति में जगदीप

धनखड़ का उपराष्ट्रपति चुना जाना और राज्यसभा का

सभापति बनना तय माना जा रहा है। चर्चाओं के

अनुसार सभापति के रूप में उनकी कार्यप्रणाली और

निर्णयों को लेकर सरकार और विपक्षी दलों के बीच

टकराव और बढ़ेगा।

 

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(यह लेख पूर्णतः लेखक के विचार है इससे ainnews1 की कोई जिम्मेदारी नहीं है )

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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