AIN NEWS 1: लोकतंत्र में पत्रकारिता को “चौथा स्तंभ” कहा जाता है। यह वाक्य हम अक्सर सुनते हैं, लेकिन शायद ही कभी इसके गहरे अर्थ को समझने की कोशिश करते हैं। आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है? इस सवाल का जवाब हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सत्ता पारदर्शी, जनता जागरूक और प्रशासन जवाबदेह हो — और इस काम में मीडिया की भूमिका सबसे अहम होती है।
लोकतंत्र के चार स्तंभ कौन-कौन से हैं?
लोकतंत्र की नींव चार स्तंभों पर टिकी होती है —
1. विधायिका (Legislature) – जो कानून बनाती है।
2. कार्यपालिका (Executive) – जो इन कानूनों को लागू करती है।
3. न्यायपालिका (Judiciary) – जो न्याय सुनिश्चित करती है।
4. पत्रकारिता या मीडिया (Press/Media) – जो इन तीनों पर निगरानी रखती है और जनता की आवाज़ बनती है।
अगर पहले तीन स्तंभ लोकतंत्र के ढांचे को मजबूती देते हैं, तो चौथा स्तंभ यानी पत्रकारिता उस ढांचे में ईमानदारी और पारदर्शिता की सांसें भरता है।
पत्रकारिता की असली भूमिका: जनता और सत्ता के बीच सेतु
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सिर्फ खबरें बताना नहीं, बल्कि सच्चाई को उजागर करना है। मीडिया जनता और सरकार के बीच सेतु की तरह काम करता है।
यह जनता की समस्याओं को सरकार तक पहुँचाता है,
और सरकार के निर्णयों को जनता तक ईमानदारी से लाता है।
अगर मीडिया न हो, तो आम जनता के लिए यह जानना मुश्किल हो जाएगा कि उसके प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं, देश किस दिशा में जा रहा है और उसके अधिकारों की स्थिति क्या है।
मीडिया क्यों कहलाता है लोकतंत्र का प्रहरी
मीडिया को लोकतंत्र का “Watchdog” यानी पहरेदार कहा जाता है। इसका कारण यह है कि पत्रकारिता सत्ता पर नज़र रखती है, और किसी भी गलत निर्णय या भ्रष्टाचार को उजागर करने की क्षमता रखती है।
जब सरकारें अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती हैं, जब अधिकारी जनता की आवाज़ दबाने की कोशिश करते हैं, या जब समाज में अन्याय होता है — तो मीडिया ही सबसे पहले इसे सामने लाती है।
पत्रकारिता का काम है सवाल पूछना, डराना नहीं। यही जिम्मेदारी इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बनाती है।
जनमत निर्माण में मीडिया की भूमिका
लोकतंत्र में जनमत (Public Opinion) की बड़ी भूमिका होती है।
मीडिया लोगों को जानकारी देकर उनकी सोच को दिशा देता है।
अखबार, टीवी, रेडियो और अब डिजिटल प्लेटफॉर्म के ज़रिए लोग न सिर्फ देश-दुनिया के हालात जानते हैं, बल्कि अपनी राय भी बनाते हैं।
किसी नीति का समर्थन या विरोध जनता तभी कर सकती है जब उसे सही जानकारी मिले।
इसलिए मीडिया को “लोकतंत्र की आंख और कान” भी कहा जाता है।
सूचना का अधिकार और पत्रकारिता
लोकतंत्र की असली ताकत जनता के सूचित होने के अधिकार (Right to Information) में छिपी है।
अगर नागरिकों को सच्ची जानकारी नहीं मिलेगी, तो वे अपने अधिकारों के लिए आवाज़ नहीं उठा पाएंगे।
पत्रकारिता यही सुनिश्चित करती है कि जनता तक सटीक, निष्पक्ष और विश्वसनीय जानकारी पहुँचे।
सिर्फ यही नहीं — मीडिया समाज में पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिकता को भी बढ़ावा देती है।
अगर पत्रकारिता कमजोर हो जाए तो क्या होगा?
कल्पना कीजिए, अगर मीडिया पक्षपातपूर्ण या डरपोक हो जाए —
तो सरकारें मनमानी करने लगेंगी,
भ्रष्टाचार बढ़ेगा,
न्याय की आवाज़ दब जाएगी,
और लोकतंत्र नाम का केवल एक ढांचा रह जाएगा।
इसीलिए कहा जाता है कि स्वतंत्र और निर्भीक मीडिया लोकतंत्र की आत्मा है।
डिजिटल युग में पत्रकारिता की नई जिम्मेदारी
आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है।
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म के आने से खबरें पहले से कहीं तेज़ी से फैलती हैं।
लेकिन इस तेज़ी के साथ गलत जानकारी फैलने का खतरा भी बढ़ गया है।
इसलिए आज के समय में पत्रकारों पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह है कि वे तथ्यों की जांच करें, सत्य बोलें और किसी के दबाव में न आएं।
सच्ची पत्रकारिता वही है जो सत्ता के खिलाफ भी सच कह सके, और जनता के साथ खड़ी रह सके।
लोकतंत्र तब तक जीवित है जब तक पत्रकारिता स्वतंत्र और जिम्मेदार है।
अगर मीडिया ईमानदारी से काम करे, तो वह समाज में न्याय, समानता और पारदर्शिता को बनाए रख सकती है।
इसलिए पत्रकारिता सिर्फ खबरों का माध्यम नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा, जनता की आवाज़ और सत्ता की जवाबदेही का सबसे बड़ा आधार है।
Journalism is often referred to as the fourth pillar of democracy because it ensures transparency, accountability, and freedom of expression within a democratic system. A free press acts as a bridge between people and government, exposing corruption, highlighting public issues, and strengthening citizens’ right to information. In today’s digital age, responsible journalism continues to play a key role in maintaining truth, democracy, and social justice.