AIN NEWS 1: बता दें व्यापार के क्षेत्र में भी भारत और भारतीय व्यापारियों का सादियो से ही हर जगह बोलबाला रहा है. दुनिया के बड़े से बड़े किसी भी प्रकार से बिजनेसमैन की जब भी बात होती है तो उसमे हमारा भारत पीछे नहीं रहता. आज भी हम आपको इतिहास में भारत के ही सबसे अमीर बिजनेसमैन के बारे में ही बताने जा रहे हैं. वैसे तो उसकी अमीरी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उसने भारत पर राज करने वाले बहुत से अमीरों और मुगलों तक को भी कर्ज दिया था.इस भारतीय बिजनेसमैन का नाम था वीरजी वोरा. इसकी अमीरी और उनके रुतबे का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अंग्रेज और मुगल भी इससे कई बार कर्ज लेते थे. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के फ़ैक्ट्री रिकॉर्ड्स की मानें तो 16वीं शताब्दी के दौरान भी वीरजी वोरा की संपत्ति लगभग 8 मिलियन डॉलर यानी लगभग 65 करोड़ रुपये से ज्यादा की थी. अगर इस रकम की तुलना आज के हिसाब से ही करें तो यह रकम खरबों रुपये में होगी. वीरजी वोरा को अंग्रेज मर्चेंट प्रिंस के नाम से भी जानते थे.

जान ले दक्षिण-पूर्व एशिया तक था कारोबार

वीरजी वोरा उस समय के ज़रूरी सामानों के एक बड़े थोक व्यापारी थे. पूरे बाजार की ही बेहतर समझ रखने वाले वीरजी को हमेशा ही मार्केट की डिमांड के बारे में पहले से ही पता रहता था और अपनी इस स्किल के जरिए ही वे व्यापार में बुलंदियों तक पहुंचे. कहा तो यह भी जाता है कि वीरजी वोरा की पकड़ दुनिया के हर बड़े बाजार में बनी हुई थी. फारस की खाड़ी, लाल सागर और दक्षिण पूर्व एशिया के बंदरगाहों तक पर उनका सिक्का चलता था.

जान ले ब्रिटिश इंडिया कंपनी का था फाइनेंसर

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बताया तो यह जाता है कि वीरजी वोरा ने उस समय अंग्रेजों को आज से 400 साल पहले भी लाखों रुपये उधार दिए थे. ईस्ट इंडिया कंपनी के ही रिकॉर्ड्स के अनुसार, वीरजी वोरा ने अंग्रेजों को 16वीं शताब्दी में ही अलग-अलग मौकों पर 25,000, 50,000 और 2 लाख रुपये तक का कई बार कर्ज दिया. ईस्ट इंडिया कंपनी को जब भी कभी पैसों की जरूरत होती तो वह वीरजी वोरा के पास ही जाती थी. बताया तो यह भी जाता है कि किसी भी ब्रिटिश बिजनेसमैन को भी जब व्यापार के लिए कुछ पैसों की जरूरत होती थी तो वह भी वीरजी वोरा से ही उधार लेता था.इतिहास में ऐसा भी बताया जाता है कि वीरजी वोरा ने मुगल बादशाह औरंगजेब को भी उनके मुसीबत के समय में पैसे उधार दिए थे. दरअसल दक्कन में औरंगजेब को युद्ध के समय पर काफी संकट का सामना करना पड़ा था. ऐसे समय में उसने अपने दूत को वहा से वीरजी वोरा के पास में आर्थिक मदद मांगने के लिए भेजा था.

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