AIN NEWS 1: यह बात साल 2016 की ही है। जब समाजवादी पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी थे। विदेश से पर्यावरण इंजीनियरिंग में पढ़ाई करने वाले अखिलेश यादव की राजनीति अब पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीति से एक अलग ही रूप ले रही थी । वैसे तो वह राजनीति में साफ-सुथरी छवि, लैपटॉप और अंग्रेजी को भी काफ़ी बढ़ावा दे रहे थे जबकि उनके पिता अंग्रेजी और कम्प्यूटर के सख़्त खिलाफ रहे थे। वो राजनीति और सरकार में भी सफाई चाहते थे।
उस समय अखिलेश: अखिलेश पार्टी में काफ़ी दबंग और माफिया डॉन टाइप के लोगों को लेकर भी पिता मुलायम और चाचा शिवपाल सिंह यादव की रणनीति से काफ़ी अलग चल रहे थे। राजनीति में भ्रष्टाचार और गुंडई के खिलाफ अपनी रणनीति को लेकर अब अखिलेश यादव अपने ही घर में अपनो से ही लड़ाई लड़ रहे थे। मुलायम के परिवार और पार्टी में इस मामले मे पहली बार ही तकरार हुआ था।
उस समय शिवपाल यादव के कई खास लोगों पर गिरी गाज
उस समय यह तकरार इतना बढ़ गया था कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार ने 2016 में भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्री गायत्री प्रजापति और राज किशोर को भी बर्खास्त कर दिया था। इसके अगले ही दिन उन्होंने मुख्य सचिव रहे दीपक सिंघल को भी उनके पद से हटा दिया था। सिंघल इससे पहले शिवपाल के विभाग यानी सिंचाई विभाग के ही प्रमुख सचिव थे। और ये तीनों ही शिवपाल गुट के माने जाते थे।
जाने जब भतीजे ने चाचा को ही हटाया
इसके बाद सपा में झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि मुलायम सिंह यादव ने इस मामले में दखल देते हुए अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया और शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया था। इससे बौखलाए अखिलेश ने चाचा शिवपाल से उनके सभी मंत्रालय छीन लिए। और अखिलेश के इस पलटवार से गुस्साए शिवपाल ने तब पार्टी और सरकार में सभी पदों से अपना इस्तीफा दे दिया। भाई और बेटे के बीच बढ़ती रार को देखते हुए मुलायम ने इस मामले में बीच-बचाव किया और अखिलेश के सभी फैसले रद्द कर दिए।
जाने अतीक अहमद पर क्या थी रार
2017 में ही यूपी विधान सभा चुनाव होने वाले थे। सपा के अंदर परिवार और पार्टी के मोर्चे पर काफ़ी ज्यादा जबरदस्त संघर्ष चल रहा था। यादव ने माफिया डॉन अतीक अहमद को कानपुर कैंट से ही उम्मीदवार बना दिया था। इसके साथ ही शिवपाल ने विधानसभा चुनावों के लिए अपने 22 उम्मीदवारों के नामों का भी ऐलान किया था। उनमें दूसरे नम्बर पर माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई को भी उन्होने टिकट दिया था।
उससे नाराज अखिलेश ने कर दिया तख्तापलट
इस घटना के बाद से अखिलेश यादव ने 2017 के जनवरी के पहले हफ्ते में ही सामाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर खुद को ही पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया और चाचा शिवपाल को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से भी हटा दिया। इससे नाराज शिवपाल यादव ने उस समय पार्टी ही छोड़ दी और सपा दो फाड़ हो गई।