AIN NEWS 1: फर्ज करिए कि आप पुरुष हैं और किसी नौकरी का इंटरव्यू देने गए हैं। क्या जॉब से जुड़ी जरूरी क्वालिफिकेशंस के साथ आपको ये बताया जाता है कि इस नौकरी के लिए किस तरह के कपड़े आपको पहनने होंगे, कैसे जूते आप को पहनने होंगे, किस तरह अपने बाल सजाने होंगे और चेहरे पर क्या-क्या मेकअप आपको लगाना होगा। क्या-क्या करना होगा के साथ-साथ एक लंबी लिस्ट उन कामों की, जो आप कभी नहीं कर सकते।
यह आपको अजीब लग रहा है न ? शरीर आपका, उस पर अधिकार आपका तो उससे जुड़ा फैसला कोई और आख़िर कैसे ले सकता है। जिस नौकरी के लिए आप अपना स्किल, अपनी काबिलियत दे रहे हैं, लेकीन अपना शरीर, मन, आत्मा और विचार नहीं।
हां, यदि आप तैराक हैं तो जाहिर है, लेदर की जैकेट पहनकर पूल में नहीं कूदेंगे या हवाई जहाज उड़ा रहे हों तो आप कुर्ते-पाजामे में नहीं जाएंगे। आप काम की जरूरत के हिसाब से कपड़े पहनेंगे, किसी की मर्जी, सनक और अधिकार के हिसाब से बिलकुल नहीं।
मगर औरतों के साथ ऐसा नहीं होता। उनके जॉब इंटरव्यू में सिर्फ उनका स्किल और काबिलियत ही नहीं देखी जाती। शरीर का आकार, चेहरे का डिजाइन, चमड़ी का रंग सबकुछ ही देखा जाता है। कई बार ये अलिखित नियम की तरह होता है और कई बार जॉब की डिमांड की तरह।
असल में वो जॉब की डिमांड कम, मर्दवादी दुनिया में मर्दों के बनाए नियमों और उनकी इच्छाओं की डिमांड पूरी करने के लिए ज्यादा होती है।
हाल ही में एयर इंडिया ने अपनी एयर होस्टेस और केबिन क्रू वगैरह के लिए गाइडलाइंस भी जारी की। ये गाइडलाइंस काम की, वर्क कल्चर की, परफॉर्मेंस की, बिहेवियर की गाइडलाइंस नहीं हैं। बल्के ये गाइडलाइंस हैं मेकअप और कपड़ों की।
इसमें साफ़ लिखा है कि वो किस तरह के कपड़े पहनेंगी, क्या क्या मेकअप करेंगी, कैसे अपने बाल बनाएंगी, कैसे जूते पहनेंगी और क्या-क्या वो नहीं पहनेंगी।
चूंकि एयर होस्टस और केबिन क्रू मे लड़के भी होते हैं, तो इस गाइडलाइन में उनके लिए भी इसमें विशेष ताकीद की गई है, लेकिन दोनों से की जा रही मांगें और सोशल मीडिया पर उस पर आ रही प्रतिक्रियाएं बिल्कुल ही अलग हैं।
लड़कियों से कहा गया है कि उनके लिए बाल बांधकर रखना, लिप्सटिक, काजल और आईशैडो लगाना सभी अनिवार्य है। वहीं लड़कों के लिए भी बालों में जेल लगाना अनिवार्य किया गया है। लड़कियों के लिए मेकअप की लंबी लिस्ट और लड़कों के लिए केवल बालों में जेल।
सोशल मीडिया पर लोगों को हंसी सिर्फ लड़कों के लिए बनाए गए नियमों पर ही आ रही है। लड़कियों से जबरन करवाया जा रहा मेकअप उन्हें बिलकुल विचित्र नहीं लग रहा। बेचारे लड़कों के लिए ये कैसे दुख भरे स्यापे हैं।
लड़कियों का क्या है, उन्हें तो आदत है कई तरह से नियमों का पालन करने की। मर्दों के लिए खुद को सजाने की। देह और सूरत को ही अपना सबसे कीमती खजाना समझने की। सैकड़ों सालों से औरतों को यही तो घुट्टी पिलाई गई है कि औरत का सबसे बड़ा हथियार और सबसे बड़ी कमजोरी उसका शरीर ही है।
ये पहली और आखिरी बार तो नहीं है कि लड़कियों के कपड़े, चेहरे, बाल, सबकुछ के नियम कंपनी तय कर रही है। तीन साल पहले जापान की एक कंपनी ने महिलाओं के लिए दफ्तर में हाई हील्स पहनकर आना बिलकुल कंपलसरी कर दिया।
लेकीन जब महिलाएं इस नियम के खिलाफ कोर्ट पहुंची गईं, तो वहां के हेल्थ और लेबर मिनिस्टर ने सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया कि ये नियम “सही और जरूरी” है। औरतों के लिए ऑफिस में हाई हील्स पहनना अनिवार्य होना ही चाहिए।
ये तो कुछ भी नहीं है। आपको थोड़ा अजीब इसलिए भी लग रहा है क्योंकि अब वक्त बदल रहा है। अब आप अभी बात-बात पर देश में, समाज में, कानून में जेंडर बराबरी की बात करने वाले युग में रह रहे हैं, लेकिन ये ज्यादा पुरानी बात नहीं।
आज से महज 30 साल पहले तक फैशन, मॉडलिंग की दुनिया में आने वाली औरतों के लिए नियमों की एक लंबी फेहरिस्त थी। इन नियमों में ये भी शामिल था कि उनका वजन एक खास पैमाने से ऊपर बिलकुल नहीं हो सकता।
वो शादी नहीं कर सकतीं, बॉयफ्रेंड नहीं रख सकतीं, सार्वजनिक रूप से अफेयर नहीं कर सकतीं, प्रेग्नेंट नहीं हो सकतीं और उनके लिए कॉन्ट्रेसेप्टिव पिल्स का सेवन बेहद अनिवार्य था।
ये मजाक नहीं है। ये नियम और शर्तें बाकायदा उनके कॉन्ट्रैक्ट में लिखी होती थीं, जिन्हें तोड़ने का मतलब था काम से आपको निकाल दिया जाना।
ये नियम सिर्फ फैशन और मॉडलिंग इंडस्ट्री पर ही लागू नहीं था। कितने दफ्तरों में ऑफिस सेक्रेटरी जैसी मामूली जॉब के लिए भी यह अलिखित नियम लागू था।
70 के दशक तक अमेरिका में सेना, माइन्स समेत कुछ खास जगहों पर नौकरी देने से पहले औरतों का प्रेग्नेंसी टेस्ट भी किया जाता था। यह भी एक अलिखित नियम था। ये देश के कानून में कही नहीं लिखा था, लेकिन ये भी कही नहीं लिखा था कि ऐसा करना गैरकानूनी है।
कानून में यह लाइन लिखवाने के लिए और इसे दंडनीय अपराध ठहराने के लिए औरतों ने एक सदी की लंबी लड़ाई लड़ी है। फिर भी अभी हम उस आपराधिक लैंगिक भेदभाव से ज्यादा दूर अभी तक नहीं आ पाए हैं।
बता दें डारलेन का केस तो सिर्फ 21 साल पुराना है। 2001 में अमेरिका के नेवादा में 20 साल की डारलेन जेसपरसन ने अपने इंप्लॉयर के खिलाफ एक केस कर दिया। डारलेन एक बार टेंडर थी, जिसने मेकअप करके काम पर आने से बिलकुल इनकार कर दिया।
जान ले ये भी एक अलिखित नियम था कि सारी फीमेल इंप्लॉइज को चेहरे पर ढेर सारा मेकअप लगाना ही होता था और खास तरह की उभार वाली पोशाक ही पहननी होती थी। जबकि लड़के सामान्य टी-शर्ट और जूते में बिना किसी भी मेकअप के अपने काम पर आ सकते थे।
लेकीन डारलेन को ये भेदभाव गलत लगा। उसने विरोध किया तो उसके मालिक ने उसे काम से ही निकाल दिया। डारलेन फेडरल इसके लिए कोर्ट पहुंच गई और वर्कप्लेस पर लैंगिक भेदभाव का एक मुकदमा ठोंक दिया।
और उस मुकदमे का फैसला क्या आया?
कोर्ट ने कहा कि लड़कियों से मेकअप की डिमांड करना हमारे सोशल कल्चर का ही एक हिस्सा है। ये कोई लैंगिक भेदभाव नहीं। और डारलेन केस हार गई।
कोर्ट ने बार के मालिक से कहा कि अब तो आप यह केस जीत ही गए हैं। अब अनुकंपा के आधार पर डारलेन को वापस अपने यहां नौकरी पर रख लीजिए। चूके आजकल अच्छे इंप्लॉई कहां मिलते हैं। इतनी मामूली बात पर नौकरी से निकालना बिलकुल भी ठीक नहीं।
जी हां, यह आपने ठीक पढ़ा। कोर्ट की नजरों में डारलेन को नौकरी से निकालना कोई भेदभावपूर्ण नहीं था, लेकिन दया करके उसे वापस नौकरी दे ही देनी चाहिए थी। 2006 में ये फैसला आया था। सिर्फ 14 साल पहले।
तो क्या, आपको सिर्फ ऐसा लगता है कि दुनिया बदल रही है।
दिन-रात चारों ओर जेंडर बराबरी का राग सुन-सुनकर आपके कान तो पक ही चुके हैं, लेकिन देख लीजिए, आज भी लिप्सटिक लगाने से इनकार करने, ऑफिस में हाई हील्स पहनने से इनकार करने पर किसी महिला की नौकरी बिलकुल जा सकती है और कोर्ट को इसमें लैंगिक भेदभाव जैसा भी कुछ नजर नहीं आएगा।
दुनिया जाहिर तौर पर बदली है, लेकिन उतनी भी नहीं, जितनी मर्दों को यह बदली नजर आती है।
आप एक औरत की तरह बस एक दिन दफ्तर जाकर देख लीजिए। एक दिन उसकी तरह सड़क पर चलकर देख लीजिए। एक दिन अपने शहर की पब्लिक बस में चढ़कर तो देख ही लीजिए। एक रात 12 बजे अकेले ऑफिस से घर ड्राइव करके देख लीजिए। सड़क पर, ट्रेन में या किसी भी सार्वजनिक जगह पर बस एक दिन औरत बनकर अकेले होकर देख लीजिए।
आप देख नहीं सकते, क्योंकि आप औरत हो नहीं सकते। मेरा यकीन करिए, अगर आप हो भी गए तो आप बिलकुल भी सह नहीं पाएंगे। आप एक दिन, एक पल के लिए भी वो जिंदगी सह नहीं पाएंगे, जो हम औरतें रोज जीती हैं। जीवन के हर कदम पर भेदभाव का हम सामना करती हैं। हम पर दबाव है कि हम दफ्तर बिना मेकअप के नहीं जा सकते। हम पर दबाव है कि हमें सबसे मुस्कुराकर ही बात करनी है।
जाने किस बराबरी की बात कर रही हैं ये औरतें। यकीन मानिए, हम उससे बहुत ही कम कर रहे हैं, जितना दुख, डर और गुस्सा हमारे दिलों में है। अभी तो हमने सच कहना बस शुरू ही किया है।
सचाई बराबरी की मे जाने कुछ बाते
1. आलिया को कैरेक्टर सर्टिफिकेट बांटने वाले रणबीर से क्यों नहीं पूछते कि 7 महीने में आख़िर तुम पापा कैसे बन गए?
आलिया भट्ट और रणबीर कपूर के घर में एक नन्ही मेहमान आई है। मौका खुशी का है, तो खुशी की बातें होनी चाहिए थी, लेकिन क्या आपको पता है कि उस नन्ही परी के जन्म के कुछ ही घंटों बाद गूगल और ट्विटर समेत पूरे सोशल मीडिया पर जो कहानी ट्रेंड कर रही थी। उसमे बस एक ही सवाल था की आख़िर आलिया भट्ट 7 महीने मे मां कैसे बन गई।
2. पत्नी अगर पढ़ाई-लिखाई या पैसों में पति से बेहतर है; तो बाहर भले ही उसकी कितनी भी तारीफ हो, लेकिन बंद कमरे में पति की हिंसा उसे झेलनी पड़ेगी ही
मेरी गलतियों को मेरे साथ सो जाने दो! तुम्हारी याद में जलता मेरा सिर बहुत जल्द पानी में समाकर ठंडा हो चुका होगा। भगवान हमेशा तुम्हारे साथ रहे..!’ मेरी जिंदा बच गईं। दोबारा कोशिश हुई, लेकिन वे फिर बच गईं। इस दौरान कई स्त्रियों के साथ रह चुके उसके पति ने अपनी पूर्व पत्नी को सनकी और मर्दखोर बताते हुए कह दिया कि उसके पास तर्कों के अलावा बात करने को कुछ और था ही नहीं।
3. डियर मेन! आप भी तो दीजिए वर्जिनिटी का सबूत:लड़कियों से पवित्रता का सर्टिफिकेट मांगने वाले लड़के भी तो बताएं वे कितने अनछुए हैं अब तक
ये किसी आदिम युग की बात नहीं है। 10 दिन पहले आपके घर से बस कुछ सौ किलोमीटर दूर इसी देश के एक गांव में हुई घटना है। बिहार के मोतिहारी जिले में एक लड़का बारात लेकर शादी करने गया। पूरे धूमधाम के साथ शादी हुई। माता-पिता ने अपनी हैसियत भर सब खर्च कर दिया कि बेटी ससुराल में सुख पाएगी। मगर उससे उसकी वर्जिनिटी का सबूत मागा जाता है।