AIN NEWS 1 : बिलासपुर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी भी संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना टेलीफोन पर उसकी बातचीत रिकॉर्ड करना ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन है। अधिवक्ता वैभव ए. गोवर्धन ने ही शनिवार को बताया कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने अपने इस फैसले में कहा है कि संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना टेलीफोन पर किसी की बातचीत को रिकॉर्ड करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन ही है।उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता के एक मामले में महासमुंद की परिवार न्यायालय के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया जिसमें साक्ष्य के रूप में मोबाइल फोन की भी रिकॉर्डिंग का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
अधिवक्ता गोवर्धन ने बताया कि याचिकाकर्ता (पत्नी) की तरफ से ही गुजारा भत्ता देने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत ही यह आवेदन दायर किया गया था, जो 2019 से परिवार न्यायालय महासमुंद के समक्ष लंबित पड़ा हुआ है।गोवर्धन ने बताया कि याचिकाकर्ता ने इससे संबंधित कुछ साक्ष्य अदालत में पेश किए थे। दूसरी तरफ, प्रतिवादी (पति) ने याचिकाकर्ता (पत्नी) के ही चरित्र पर संदेह के आधार पर उसको गुजारा भत्ता देने से साफ मना किया। उसने परिवार न्यायालय के समक्ष ही एक आवेदन दाखिल किया और कहा कि याचिकाकर्ता की बातचीत उसके मोबाइल फोन पर ही रिकॉर्ड की गई है। प्रतिवादी (पति) उक्त बातचीत के आधार पर ही अदालत के समक्ष उससे जिरह करना चाहता है। अदालत ने उक्त आवेदन को स्वीकार कर लिया और उसे अनुमति दे दी।
अधिवक्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता ने 21 अक्टूबर 2021 के उक्त आदेश से काफ़ी व्यथित होकर उच्च न्यायालय का उन्होने रुख किया और इसे रद्द करने की प्रार्थना भी की।उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता की तरफ से यह कहा गया कि यह उसके निजता के अधिकार का पूरी तरह से उल्लंघन होगा। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि निचली अदालत ने आवेदन की अनुमति देकर एक बड़ी कानूनी त्रुटि की है। यह आदेश याचिकाकर्ता की निजता के अधिकार का पूरी तरह से उल्लंघन करता है। इस सबमें यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना ही प्रतिवादी द्वारा इन बातचीत को रिकॉर्ड की गई थी, इसलिए इसका उपयोग उसके खिलाफ किसी भी प्रकार से नहीं किया जा सकता।गोवर्धन ने बताया कि प्रतिवादी के अधिवक्ता ने कहा कि प्रतिवादी (पति) याचिकाकर्ता (पत्नी) के खिलाफ मे आरोपों को साबित करने के लिए कुछ सबूत पेश करना चाहता है, इसलिए ही उसे अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड की गई सभी बातचीत को प्रस्तुत करने का अधिकार है।
उन्होंने यह भी बताया कि उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति राकेश मोहन पाण्डेय की एकल पीठ ने इस मामले में पांच अक्टूबर 2023 को सुनवाई के बाद महासमुंद परिवार न्यायालय द्वारा पारित 21 अक्टूबर 2021 के आदेश को भी रद्द कर दिया। अदालत ने यह माना है कि संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना टेलीफोन पर उसकी बातचीत रिकॉर्ड करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ही उसके ‘निजता के अधिकार’ का पूरी तरह से उल्लंघन है।