AIN NEWS 1 | बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों के बीच एक चर्चा सोशल मीडिया पर तेज़ी से घूमने लगी—कहा गया कि अखिलेश यादव जिन 22 सीटों पर चुनाव प्रचार करने गए, उनमें से 21 जगह महागठबंधन हार गया। दूसरी ओर दावा किया गया कि योगी आदित्यनाथ ने 31 सीटों पर रैलियाँ कीं, और उन क्षेत्रों में भाजपा ने 28 सीटें जीत लीं। चुनावी सीज़न में इस तरह के दावे आम हो जाते हैं, लेकिन सच्चाई जानने के लिए तथ्यों और रिपोर्ट्स पर नजर डालना बेहद ज़रूरी है।
सोशल मीडिया पर चलने वाले इन आंकड़ों ने लोगों को भ्रमित किया, क्योंकि चुनाव की असल स्थिति इससे काफी अलग थी। आइए दोनों नेताओं की रैलियों, उस पर आए परिणामों और पूरे वोटिंग पैटर्न को थोड़ा विस्तार से समझें।
अखिलेश यादव के प्रचार को लेकर असलियत क्या है?
अखिलेश यादव ने बिहार चुनाव के दौरान महागठबंधन उम्मीदवारों के समर्थन में लगभग 22 जनसभाएँ की थीं। यह सभाएँ उन इलाकों में आयोजित की गई थीं, जहाँ गठबंधन उम्मीद कर रहा था कि अखिलेश की मौजूदगी से माहौल उनके पक्ष में बनेगा।
लेकिन परिणाम उस उम्मीद के मुताबिक सामने नहीं आए। जिन क्षेत्रों में उन्होंने सभाएँ कीं, वहां से रिपोर्ट्स के अनुसार केवल 2 उम्मीदवार जीत हासिल कर सके। यह देखकर सोशल मीडिया पर यह कहा जाने लगा कि “अखिलेश की रैलियों ने सीटें डुबो दीं”, लेकिन यह दावा पूरी तरह वास्तविकता को नहीं दर्शाता।
वास्तविक विश्लेषण यह बताता है कि:
बिहार में महागठबंधन पहले से ही कमजोर स्थिति में लड़ रहा था।
कई सीटों पर स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवारों की लोकप्रियता ज़्यादा असरदार थी।
जातीय समीकरण और एनडीए की मजबूत बूथ रणनीति भी निर्णायक भूमिका निभा रहे थे।
इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि केवल अखिलेश यादव की सभाएँ इन हारों का कारण थीं। हाँ इतना जरूर है कि उनकी रैलियाँ बड़े पैमाने पर वोटों में परिवर्तन लाने में सक्षम नहीं हो पाईं।
योगी आदित्यनाथ के प्रचार पर भी गलत दावे क्यों फैलाए गए?
योगी आदित्यनाथ बिहार चुनाव में भाजपा के प्रमुख स्टार प्रचारकों में शामिल रहे। उन्होंने लगभग 31 चुनावी सभाएँ कीं और स्वाभाविक रूप से उनकी सभाओं में भारी भीड़ देखने को मिली।
सोशल मीडिया पर दावा उछाला गया कि “योगी जिन 31 सीटों पर गए, उनमें से 28 सीटें जीत ली गईं।”
लेकिन इस दावे के पीछे तथ्य मजबूत नहीं होते।
विश्वसनीय आंकड़ों की मानें तो:
योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रचारित क्षेत्रों में लगभग 25 सीटों पर एनडीए को बढ़त मिली।
यह बढ़त निश्चित रूप से प्रभावशाली है, लेकिन 28 सीटों वाली बात जांच में सही साबित नहीं होती।
यह साफ है कि योगी आदित्यनाथ की रैलियों ने भाजपा को ऊर्जा दी और संगठन स्तर पर माहौल मजबूत किया, लेकिन सोशल मीडिया में जिस तरह दावा बढ़ा-चढ़ाकर फैलाया गया, वह वास्तविकता से काफी अलग था।
दोनों नेताओं की प्रचार रणनीति में क्या था अंतर?
अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ दोनों ही अपने-अपने राज्यों में मजबूत राजनीतिक कद रखते हैं, लेकिन बिहार में परिस्थितियाँ अलग थीं।
योगी आदित्यनाथ की रैलियाँ क्यों ज्यादा असरदार रहीं?
उनके भाषणों की शैली भाजपा के वोटर बेस के बीच तेज़ी से प्रभाव पैदा करती है।
एनडीए के पास बिहार में पहले से मजबूत संगठनात्मक नेटवर्क मौजूद है।
भाजपा की ब्रांड छवि और केंद्र सरकार के समर्थन का लाभ भी उन्हें मिला।
अखिलेश यादव की रैलियों का असर सीमित क्यों रहा?
बिहार में समाजवादी पार्टी की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है जितनी यूपी में है।
कई जगह महागठबंधन आंतरिक कमजोरियों से जूझ रहा था।
उम्मीदवार चयन और लोकल फेक्टर ज्यादा निर्णायक साबित हुए।
इससे स्पष्ट होता है कि केवल एक नेता की रैलियों के आधार पर पूरे चुनावी माहौल को आंकना सही तरीका नहीं है।
सोशल मीडिया पर चुनावी दावों का बढ़ा-चढ़ाकर पेश होना
चुनाव के समय सोशल मीडिया पर आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर कई गलत आँकड़े वायरल होने लगते हैं। बिहार चुनाव में भी यही हुआ। एक-दूसरे से काटकर निकाले गए आंकड़ों को “सेंसेशनल” बनाकर फैलाया गया।
असलियत की बात करें तो:
अखिलेश यादव ने 22 रैलियाँ की थीं, लेकिन 21 हार वाला दावा गलत है।
योगी आदित्यनाथ की 28 जीत वाला दावा भी तथ्य से मेल नहीं खाता।
ऐसी गलत जानकारियाँ तेजी से लोगों की धारणा बदल देती हैं, इसलिए विश्वसनीय डेटा से फैक्ट-चेक करना बेहद महत्वपूर्ण है।
दोनों दावों की सत्यता क्या है?
✔ अखिलेश यादव
— 22 रैलियाँ
— जीत मिली: 2 सीटें
— “21 हार” वाला दावा असत्य और अतिशयोक्तिपूर्ण
✔ योगी आदित्यनाथ
— 31 रैलियाँ
— एनडीए को बढ़त: लगभग 25 सीटें
— “28 सीटें जीत” वाला दावा तथ्यात्मक रूप से गलत
कुल मिलाकर दोनों ही दावों को बढ़ा-चढ़ाकर सोशल मीडिया पर फैलाया गया था। वास्तविक स्थिति संतुलित है और इसे समग्र संदर्भ में समझना चाहिए।



















