कोविड-19 के मामले देश में एक बार फिर से सिर उठाने लगे हैं। ऐसे में लोगों की हेल्थ के साथ ही देश की आर्थिक सेहत को दुरुस्त रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी को रोकने के लिए जानकार सलाह दे रहे हैं कि वैक्सीन की दूसरी खुराक के बाद बूस्टर डोज़ का गैप कम कर देना चाहिए। दरअसल, मौजूदा नियमों के तहत कोरोना वैक्सीन की दूसरी खुराक लगने के 9 महीने बाद ही बूस्टर डोज़ लगवाई जा सकती है। जबकि डेटा के मुताबिक कोरोना वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी 4 से 6 महीने बाद कम होने लगती हैं। ऐसे में जानकारों का सुझाव है कि बुस्टर डोज़ लगाने के लिए 9 महीने की जगह अंतर को कम करके 6 महीने कर देना चाहिए। साथ ही उनका मानना है कि कोविड-19 अब हमेशा के लिए इंसानों के साथ रहेगा। ऐसे में इसके साथ जीने के लिए ज़रुरी है कि आगे की प्लानिंग की जाए जिससे बचाव भी हो सके और आर्थिक रफ्तार भी ना थमने पाए। अगर दुनिया के दूसरे मुल्कों से तुलना करें तो वहां पर भी वैक्सीन की बूस्टर डोज़ के लिए भारत के बराबर गैप नहीं है। अमेरिका में बूस्टर डोज़ के लिए 5 महीने का अंतर है। ब्रिटेन, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में ये गैप 3 महीने का है। WHO के मुताबिक भारत में भी कोविशील्ड और कोवैक्सीन की बूस्टर डोज़ के लिए 4 से 6 महीने का ही अंतर होना चाहिए। जानकारों का भी मानना है कि भले ही कोरोना के मामले ज्यादा गंभीर नहीं है लेकिन मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग के साथ सही अंतर पर वैक्सीन लगाने से ही इससे बचाव मुमकिन है। हाल ही में सीरम इंस्टीट्यूट के CEO अदार पूनावाला ने भी सरकार से बूस्टर डोज़ के गैप को घटाकर 6 महीने करने की मांग की थी। अब देखना यही है कि सरकार इन सुझावों पर किस तरह का फैसला करेगी जिससे कोरोना के मामलों में कमी लाई जा सके।
By:-
पवन चौधरी
न्यूज़ डायरेक्टर